सौंग से लगभग 40 किमी दूर नंदाकोट पर्वत पूर्वी हिस्से के दक्षिण की तरफ से प्रवाहित होती है. सरयू के स्रोत को सरमूल (सहस्त्रधारा) कहा जाता है. नंदाकोट पर्वत का ही एक हिस्सा सरयू और पिंडर घाटी को अलग-अलग करता है.
(Saryu River Kumaon)
रामगंगा में मिलने से पहले कपकोट पहुँचने पर लहुरीगाड़ इसमें आकर मिलती है. बालीघाट पहुँचने से पहले पुंगर (पुंगराऊ) गाड़ इससे आकार मिलती है.
तल्ला दानपुर क्षेत्र से निकलने के बाद झुंडी, सूपी, खाती के प्रसिद्द घाट इसके बहाव में आते हैं. इसके बाद यह पश्चिम कीई ओर मुड़ जाती है और मल्ला दानपुर में कनालगाड़, पुनारगाड़, लाठुर, पुठाल, गासों गधेरा, देवती गंगा की जलधाराएँ सरयू में समाहित हो जाती हैं.
आगे चलकर सरयू का संगम मल्ला कत्यूर की ओर से आने वाली लहोर के साथ होता है. आगे चलकर बागेश्वर में यह गोमती के साथ मिलकर उत्तराखण्ड के अध्यात्मिक महत्त्व के घाट का निर्माण करती है.
बागेश्वर में संगम से निकली नदी को सरयू ही कहा जाता है और यह गंगोली परगने में भद्रापतिगाड़, चौगर्खा की घटगाड़, जलौरगाड़, भौरागाड़, अलकनन्दी, सनियौनगाड़ आदि पहाड़ी गाड़-गधेरों के पानी को समाहित करती चलती है.
(Saryu River Kumaon)
रामेश्वर पहुँचने से पहले पनार नदी के साथ इसका संगम हो जाता है. रामेश्वर पहुंचकर यह रामगंगा नदी में विलीन हो जाती है. इसके आगे यह रामगंगा कहलाने के साथ ही अपनी सरयू नदी की पहचान भी बनाये रखती है.
यहाँ से 18 किमी दूर पंचेश्वर में महाकाली में समाहित होने तक यह पिथौरागढ़ के सोर तथा काली कुमाऊं जनपदों की सीमा के रेखांकन का काम भी करती है. काली में समाहित होकर अपना नाम इसमें विलीन कर देने तक सरयू का सफ़र 132 किमी का है.
सरयू के तट पर तीन संगम हैं— बागेश्वर, रामेश्वर, पंचेश्वर. तीनों को ही तीर्थस्थलों का दर्जा हासिल है. यह कहना गलत न होगा कि इस समूचे क्षेत्र में सरयू नदी का वही दर्जा है जो कि गढ़वाल मंडल में भगीरथी और गंगा का.
(Saryu River Kumaon)
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