गर्मियों की छुट्टियां शुरू हो चुकी हैं. पहाड़ों में इन दिनों दिल्ली और अन्य बड़े शहरों के बच्चे ठंडी हवा में खूब मौज भी काट रहे होंगे. उत्तराखंड के लोग इस लिहाज बड़े सौभाग्यशाली हैं कि उनके पास अपने बच्चों को पहाड़ों में बिना टिकट दिखाने को बहुत कुछ है.
जंगल हैं, पेड़ हैं, नदियां हैं और मंदिर हैं. इन सबसे जुड़ी बहुत आकर्षक कहानियां और किस्से हैं. इनकी परम्पराओं और मान्यताओं से जुड़ा एक लम्बा इतिहास हमारे पास है. मंदिरों में रखी मूर्तियों का अपना एक इतिहास है उनकी अपनी एक विशेषता है जो हमारे बच्चों को किताबों में कहीं नहीं मिल सकती.
आज पढ़िये उत्तराखंड में सूर्य की मूर्ति की विशेषताएं. बाघनाथ मंदिर परिसर में रखी सूर्य की मूर्ति पर अशोक पांडे का लिखा एक लेख :
चित्रों-मूर्तियों में अमूमन सूर्य को उसके इन्द्रधनुष के रंगों के प्रतीक सात घोड़ों वाले रथ पर सवार दिखाया जाता है. कहीं कहीं उसके दोनों हाथों में तलवारें भी होती है जिनकी मदद से वह अंधेरी शक्तियों को नष्ट करता है.
अनेक पुरानी प्रतिमाओं में उसे ऊंचे बूट और लहरदार अंगवस्त्र पहने हुए दिखाया गया है. इनमें उसके मस्तक पर रत्नजड़ित मुकुट और हाथों में कमल दिखाए जाने की परम्परा है. कोणार्क के सूर्य मंदिर में ऐसी विश्वविख्यात प्रतिमा है. कुमाऊँ के जागेश्वर में स्थित म्यूजियम में भी एक ऐसी ही अतीव सुन्दर प्रतिमा प्रदर्शित है.
ठीक ऐसी ही एक और दुर्लभ प्रतिमा कुमाऊँ के ही बागेश्वर कस्बे में मौजूद बाघनाथ मंदिर परिसर में देखने को मिलती है जिसकी फोटो आप देख रहे हैं.
निरन्तर यात्रारत रहने के प्रतीक सूर्य के ये मजबूत, कलात्मक और सुन्दर जूते सूर्य के देवता स्वरूप को मेहनतकश आदमी की सादगी बख्शते हैं. सूर्य के ये जूते मुझे बहुत अच्छे लगते हैं इसीलिये मैं सूर्य को दुनिया भर के यात्रियों-ट्रेकरों का देवता भी मानता हूँ!
-काफल ट्री डेस्क
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