बीसवीं सदी के सबसे बड़े थियेटर अभिनेताओं में गिने जाने वाले सर लॉरेन्स ओलिवियर, जिनका आज जन्मदिन है (जन्म: 22 मई 1907), को आज भी उनके द्वारा अभिनीत शेक्सपीयर के सबसे मशहूर पात्र हैमलेट के लिए जाना जाता है. दुनिया के सबसे बड़े नाटककार विलियम शेक्सपीयर (1564-1616) के नाटक हैमलेट का संसार भर में चर्चा होता रहता है और दुनिया के शायद किसी भी देश की कोई यूनीवर्सिटी नहीं होगी जहां अंगरेजी साहित्य के सिलेबस में इसे न पढ़ाया जाता हो. (Hamlet in Indian Cinema)
इस नाटक पर 1948 में सर लॉरेन्स ओलिवियर ने इसी नाम से एक फिम्ल का निर्देशन किया था. निर्देशक के रूप में यह उनकी दूसरी फिल्म थी. मुख्य किरदार भी लॉरेन्स ओलिवियर ने ही निभाया था. यह एक शानदार प्रोडक्शन था जिसे उस साल सर्वश्रेष्ठ फिल्म का ऑस्कर मिला. हैमलेट यह इनाम जीतने वाली पहली ब्रिटिश फिल्म थी. इस नाटक पर बनी यह पहली अंग्रेज़ी फिल्म थी. (Hamlet in Indian Cinema)
इस बात से बात निकलती है कि ‘हैमलेट’ पर फिल्म बनाने का काम भारत में एक दशक पहले हो गया था. 1935 में सोहराब मोदी ने शेक्सपीयर के इसी महान नाटक को आधार बनाकर ‘खून का खून’ नाम से एक साउंड-फिल्म बना दी थी. बताया जाता है कि यह फिल्म हैमलेट पर बनी सबसे पहली फिल्म थी. तो अगर सर लॉरेन्स ओलिवियर को दुनिया में शेक्सपीयर के किरदारों की वजह से पहचान मिली तो शेक्सपीयर को भारत की फिल्मों में लाने का श्रेय सोहराब मोदी को जाता है.
‘खून का खून’ में खुद सोहराब मोदी ने हैमलेट की भूमिका निभाई थी जबकि अपने समय की बड़ी अदाकारा नसीम बानू की यह डेब्यू फिल्म बनी जिन्होंने ओफीलिया का किरदार किया.
फिल्म के बाकी कलाकारों में शमशाद बाई, गुलाम हुसैन और फज़ल करीम वगैरह थे. ध्यान रहे कि शमशाद बाई नसीम बानू की माँ थीं जिनसे सोहराब मोदी ने हैमलेट की माँ गर्ट्रूड का रोल करने का अनुरोध किया था ताकि युवा नसीम को सेट पर काम करने में मानसिक सुविधा हो. उस ज़माने में लड़कियों का फिल्मों में काम करना बहुत हेय समझा जाता था.
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