गुडी गुडी डेज़
अंतर देस इ उर्फ़… शेष कुशल है! भाग – 20
अमित श्रीवास्तव
हीरामन के पास एक बक्सा था. बक्से में एक पिटारा था. पिटारे में अखबारी कतरनों का एक बंडल. बंडल पर हाथ फेरते हुए हीरा ने बताया कि जब से सस्सू की चिट्ठी आई थी, गुडी गुडी में हलचल बढ़ गई थी. पुष्ट-अपुष्ट सूचनाएं सतह पर दिखने लगी थीं. ये बंडल उन्हीं सूचनाओं, पुष्ट-अपुष्ट ख़बरों का संग्रह है. चूंकि सूचनाएं मुखबिर ख़ास द्वारा दी गई थीं, सम्पादक ने उन्हें बस संकलित किया और निर्लिप्त भाव से प्रस्तुत किया, इसलिए इनके श्रोत जानने की कोशिश नहीं की गई.
हीरामन ने जो बंडल दिया उसके अन्दर कागज़ों में कुछ ख़बरें पूरी थीं. कुछ अधूरी. कुछ सिर्फ हेडलाइन काटकर रख ली गयी लगती थीं. कुछ कागजों पर कलम से खुद ही खबर की तरह लिखा गया था. कुछ सादे कागज़ भी थे संभवतः जिनपर लिखा जाना बाकी रह गया होगा. सब कुछ बिना क्रम का बेतरतीब सा था. उन दस्तावेजों के अंडरलाइन्ड-हाईलाइटेड भाग को यहाँ उसी बेतरतीबी से प्रस्तुत किया जा रहा है-
गुडी गुडी की सुरक्षा दीवार गिरी. घायलों की संख्या की गिनती जारी. इस बात की जानकारी की जा रही है कि जो मरे हुए थे वो घायल कैसे हुए. जांच कमीशन बैठा. आधिकारिक बयान में कहा गया कि `फेन्स है! गिरती रहती है!‘ गुडी गुडी की परम्परानुसार फेंस को फैन्स पढ़ा गया. तत्काल चुटकुले बनाने के राष्ट्रीय उद्योग को ईंधन मिल गया. अब घायलों का इलाज और फेफड़ा-फाड़ हंसी, साथ चल रही है.
थियेटर में एक युद्ध हुआ. नाटक जैसा. मुहल्ले के भीतर एक नाटक हुआ. युद्ध जैसा. सैनिक दर्शक में और दर्शक सैनिक में तरमीम हुए. अब जगह-जगह रणभेरी बज रही है. जगह-जगह मुखौटे बन रहे है. युद्ध का माहौल है. लोग अपने-अपने किरदार घोंट-घोंट कर पी रहे हैं. कल बतकुच्चन मामा और पप्पन पांडे के बीच क्राइम मास्टर गोगो और प्रेम के बनावटी युद्ध की तरह सवाली-जवाबी कार्यवाही के दौरान कमर हिलाई, आँख दबाई, ताली बजाई, `सौंह कराई, भौंहन हंसाई, देन कहैं नटि जाई’ देखा गया.
कक्षा पांच-छः-सात की इतिहास की पुस्तकों से बहुत से अध्याय हटा कर वहां स्तुति-गीत रक्खे गए. बदलाव वाली कमेटी ने अपने प्रस्ताव के साथ एक फुटनोट भी लगाया जिसका सार ये है- `इस मुहल्ले का विकास क्रम ऐसा ही है. वही होने वाला होता है जो हो चुका होता है. इसलिए जो हो चुका है वो, चूंकि होने वाला है इसलिए उसपर वो समय, जो बर्बाद किया जा चुका है, उसे बर्बाद न किया जाए.’
चमड़े के सिक्के! इसमें बड़ी बात यही थी कि जो सिक्के बदले गए वो पहले से ही बदले-बदले से सरकार नज़र आते थे. (इस बात के प्रमाण उपलब्द्ध नहीं हो सके, पूरा बंडल उलटने-पुलटने के बाद भी, कि आधुनिक गुडी गुडी में प्राचीन इतिहास से मुहम्मद बिन तुगलक़ कहाँ से आ गया)
गोबर, बाई एनी अदर नेम वुड स्मेल ऐज़ स्टिंकी! (वाक्य ऐसे ही मिला लिखा हुआ. पूरा वाक्य इटैलिक्स में था. सम्पादक ने इस वाक्य में `गोबर’ और `स्टिंकी’ को बोल्ड लेटर्स में किया था और जाने क्यों एक ऐस्टेरिक के साथ `शेक्सपियर से माफ़ी सहित’ लिख रक्खा था. हीरामन ने इन दोनों शब्दों को नहीं बल्कि `नेम’ को हाईलाईट कर रक्खा था. सम्पादक और हीरामन में ज़्यादा तराशी हुई नाक किसकी थी, इसका निर्णय आप कर लें.)
विश्व `डीप पिट डिग’ खेल सम्पन्न हुए. इस बार कुछ और रिकॉर्ड टूटे. जिस तरह से टूटे उस हिसाब से टूटना बहुत मासूम शब्द लगता है. तोड़-मरोड़ के, फींच-फांच के, लुगदी बना के किनारे कर दिए गए. जीते हुए खिलाड़ियों ने हारने वालों से ज़्यादा सहानुभूति बटोरी. हारने वालों के पास बुहारने-बटोरने भर की भी इज्ज़त बाकी न रही.
ग्रीन… सैफ्रन… सैफ्रन-ग्रीन… ग्रीफ़्रन… सैफ्रीन… गैंग्रीन… कैफ़ीन… (इसके बाद पूरे पन्ने पर डॉट्स लगाकर अंत में एक प्रश्नचिन्ह बना हुआ था.)
अखिल `गुडी गुडी साहित्य सम्मेलन’ हुआ जिसके मुख्य अतिथि कम मुख्य वक्ता कम प्रवक्ता कम आयोजक कम कवि-रचनाकार-आलोचक (इसके बाद विधाओं के साष्टांग लेट जाने के प्रमाण सचित्र उपलब्द्ध हैं) स्वयं बतकुच्चन मामा थे. उन्होंने सरस्वती वंदना से शुरुआत की. राष्ट्रगान उर्फ़ गुडी गुडी गीत पर समाप्ति. बीच में एकालाप, युगल गीत और कोरस सभी सिद्धह्स्तता से सम्पन्न किये.
कुछ लोग एक एक्स-क्लूज़िव एनकाउंटर स्टोरी कवर कर रहे थे कुछ लोग उन लोगों को. फिर कवर-कवर रह गया मूल दस्तावेज़ मिला नहीं. अब कुछ लोग इस बात को कवर कर रहे हैं. अनावृत होते ही स्टोरी या कवर, जो भी साबुत उपलब्द्ध हुआ आपके सम्मुख रक्खा जाएगा– सम्पादक
नॉट इन रफ वाटर्स, डील इज़ इन रफ ऑयल (इस एक वाक्य के बाद दो बड़े-बड़े धब्बे पड़े हुए थे अखबार की कतरन पर. ऐसा लगता था उसपर पकौड़े रखकर खाए गए हों. कुछ पढने में नहीं आ रहा था, बस साइड बार में जाने क्यों देवी स्तुति श्लोक `ॐ अम्बे अम्बिके अम्बालिके नमानयति कश्चन…’ रिपीट में सात बार लिखा हुआ था)
लाइसेंस मिलने में घपला हुआ है. अब लाइसेंस देने में घपला हो रहा है. इस बारे में जानकारी की जा रही है कि किस बात का लाइसेंस.
अलग-अलग ज़माने रहे हैं. जमाने के अलग-अलग चलन. आजकल ज़माना अलग चलने का है. इस चाल से ही अलग ही तरह की कुछ संस्थाएं निकल पड़ी हैं. कुछ एसजीओ अस्तित्व में आये हैं. न! न! एनजीओ नहीं. नॉन नहीं सुपर. इनका काम ओवर एंड अबव वाला है. सपोर्ट देने वाला नहीं, सब सरपोट देने वाला. ऐसा ही एक कुछ अति उत्साही लोगों द्वारा बनाया गया एसजीओ खूब चर्चा में है. इसका प्रमुख प्रतिपाद्य लड़का-लड़की के बीच प्रेम पनपने से पहले ही चोपड़ा बन के प्रगट हो जाना है.
एक एस जी ओ एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है. अभी ज़्यादा खुलासा तो नहीं कर सकते लेकिन अपुष्ट ख़बरों के अनुसार इसके हाथ में तीली देखी गई है और मुहल्ले के पीछे वाले घूरे के पास धुंवा उठता देखा गया है. कहते हैं इस मुहल्ले में कभी नालन्दा भी था.
लेकिन सबसे बड़ा, वृहद, विशालकाय (बिग एंड माइटी के सभी पर्यायवाचियों को घोलकर कोई शब्द बने तो यहां लगा लीजिए) एस जी ओ ठप्पामार गिरोह की तरह काम करता है. भक्ति और द्रोह इसके पास दो ठप्पे हैं. हर घटना, दुर्घटना के बाद ये गिरोह हरकत में आ जाता है और ज्ञात अज्ञात समस्त साधनों से लोगों की पीठ पर ठपाठप चिपकाता जाता है.
गुडी गुडी के लोग बहुत भावुक, भावनात्मक, भाव भीने लोग हैं. उनके पास बहुत सी भावनाएं हैं. जिनके जिम्मे कोई और काम नहीं सौंपा गया है सिवाय आहत होने के. ये भावनाएं वक्तव्य, शब्द, अक्षर, क्वामा, बिंदा, पॉज, इशारे, ख़ामोशी, किसी भी व्यक्त-अव्यक्त माध्यम की वजह से आहत हो जाती हैं. खासकर के धार्मिक वाली…
इसके बाद पन्ने फटे और जले हुए थे, ऐसा लगता है इसे हीरामन से छीन कर किसी ने पढ़ने की कोशिश की और आहत हो गया. ऐसे बहुत से और अधजले पन्ने मिले हैं. कुछ मुकम्मल समझ आने पर आपके सम्मुख रक्खे जाएंगे. इंतज़ार कीजिये.
डिस्क्लेमर – ये लेखक के निजी विचार हैं.
पिछली क़िस्त : गुडी गुडी के राष्ट्रीय प्रतीक
अमित श्रीवास्तव
उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी दो किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता).
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