हिंदी सिनेमा में सही मायने में अगर क्लासिक फिल्मों की बात की जाय, तो चलती का नाम गाड़ी (Chalti Ka Naam Gaadi) सभी मानदंडों पर खरी उतरती है. कहा तो यह भी जाता है कि, किशोर कुमार ने इस फिल्म का निर्माण घाटा खाने के इरादे से किया था. वे टैक्स के मारे थे, इस प्रोजेक्ट में मात खाकर हिसाब चुकता कर देना चाहते थे, लेकिन होनी को कुछ और ही मंजूर था. फिल्म सुपर हिट रही. साल 1958 की बॉक्स ऑफिस में सबसे ज्यादा कलेक्शन करने वाली फिल्मों में यह मधुमती के बाद दूसरे नंबर पर रही. फिल्म को ऑल टाइम क्लासिक का दर्जा हासिल हुआ.
अब उन बिंदुओं पर विचार करना लाजमी हो जाता है, कि, कैसे यह फिल्म क्लासिक दर्जे में अग्रगण्य साबित हुई.
कहा तो यह भी जाता है कि, गांगुली ब्रदर्स, मार्क्स ब्रदर्स से प्रभावित थे, लेकिन मात्र इस संयोग के, कि तीनों भाई इस फिल्म में पहली बार एक साथ नजर आए, अन्य कोई प्रभाव नजर नहीं आता. इससे पहले भाई-भाई (1956) और बंदी (1957) में अशोक कुमार और किशोर कुमार साथ-साथ नजर आए. यह एक म्यूजिकल, कॉमिकल एवं थ्रिलर फिल्म थी.
एसडी बर्मन का मेलोडियस संगीत, जिसे माँझने में जयदेव और आर डी बर्मन का भरसक सहयोग रहा, मजरूह सुलतानपुरी के जबरदस्त गीत, फिल्म के ब्लैक एंड व्हाइट होते हुए भी, आज भी तरोताजा से लगते हैं.
बारिश में भीगी रेनू (मधुबाला) देर रात मोहन गैराज पहुँचती है. वो दस मिनट का दृश्य, उसका छींकना, तुर्शमिजाजी, सकुचाना और उसका ब्लैक पर्स कौन भूल सकता है. ‘इक लड़की भीगी भागी सी’ जैसा मेलोडियस गीत, उस दौर के लिहाज से उम्मीद से ज्यादा लगता है.
मन्नू उसकी गाड़ी में सो जाता है. उसे अक्सर कहीं भी नींद आ जाती है. वो नींद में सपना देखता है, ‘पाँच रुपैया बारह आना’ गीत वह सपने में ही देखता है.
पाँच रुपया बारह आने वसूलने के लिए वह उसके घर पर आ धमकता है, रात के दो बजे. मधुबाला का सहज अभिनय, अनिंद्य सौंदर्य, मोहक मुस्कान और निश्छल हास्य दर्शकों को सम्मोहित करता है.
रेनू, मन्नू को सैर-सपाटे के लिए अपने साथ ले जाती है. ‘हाल कैसा है जनाब का..’ सदाबहार गीत, तब के समय से बहुत आगे का महसूस होता है. सुधी दर्शकों का दावा है कि, वे उस नॉस्टैल्जिया से आगे के पाँच दशक तक भी नहीं उबर पाएंगे.
खास बात यह है कि, फिल्म में मधुबाला और वीना, अपने-अपने समय में सौंदर्य प्रतिमान रचने वाली तारिकाएँ रही हैं. दोनों का एक साथ दिखना, दर्शकों को अभिभूत कर जाता है.
राजा हरदयाल (केएन सिंह) के यहाँ, ‘हम तुम्हारे हैं..’मुजरे में, हेलन और कुक्कू की जुगलबंदी, कत्थक के शीर्ष नृत्यों में से एक में शुमार की जाती है, खासकर हेलन के नयनों का भाव- प्रदर्शन. कुक्कू के बाद का जिम्मा हेलन ने ही संभाला.
तीनों भाई एक पुरानी शेवरलेट गाड़ी को बीच सड़क पर स्टार्ट कर रहे होते हैं. तीनों एक ही यूनिफॉर्म में नजर आते हैं. आगे के एक दृश्य में भी, जब रेनू छुट्टी के दिन उनके घर पहुँच जाती है, उस दृश्य में भी तीनों भाई एक जैसी नाइट ड्रेस में नजर आते हैं, मानो तीनों के कपड़े एक ही थान से सिलवाये गये हों. खैर बृजमोहन (अशोक कुमार) अपने दोनों भाइयों से सवाल करते हैं, “तुम दोनों में से आज सुबह-सुबह लड़की का मुँह किसने देखा?”
गाड़ी खराब होने के लिए वे ‘लड़की-दर्शन’ को उत्तरदायी ठहराते हैं. तभी उन्हें सड़क के किनारे एक लड़की दिखाई पड़ती है. सामूहिक रूप से उल जलूल प्रतिक्रिया करके, वे उसे वहाँ से भागने को मजबूर कर देते हैं. तीनों गाड़ी को पीछे से किक मारकर स्टार्ट करते हैं. गाड़ी बिना ड्राइवर के ही सरपट सड़क पर दौड़ने लगती है. तीनो भाई गाड़ी के पीछे दौड़ लगाते हैं और कूद-कूदकर सवारी पर सवार होते हैं. पचास के दशक में मुंबई की सड़कों पर शेवरलेट गाड़ी का दौड़ना, दर्शकों को रोमांचित करता है. वे तरह- तरह के करतबों के साथ, ‘बाबू समझो इशारे… हॉरन पुकारे…’गीत गाते हैं. यह फिल्म का शीर्षक गीत है और पूरी धज के साथ गाया गया है.
मौजिया (मोहन चोटी) उनके मोहन गैराज में काम करता है. बृजमोहन, सीढ़ियों के पास किसी शो की तस्वीर टँगी हुई देखते हैं. उसमें किसी तारिका का चित्र लगा रहता है. वे चित्र को देखते ही ‘लाहौल विला कूवत’ कहते हैं और मन्नू को डाँटने लगते हैं, “देख! ये वाहियात तस्वीर.”
वे गुस्से में पूछते हैं, “किसने लगाई.”
फिर दोनों को समझाइश वाले अंदाज में कहते हैं, “ऐसी तस्वीर लगाना चाहता, तो मैं लगा लेता.” फिर उनसे सवाल पूछते हैं, “मैंने क्यों नहीं लगाई?” जग्गू उनकी हाँ में हाँ मिलाता हुआ नजर आता है. वे खुद इस सवाल का जवाब देते हुए कहते हैं, “मैं नहीं चाहता कि, इस घर में कोई, औरत के साथ वास्ता रखे.”
जग्गू, बड़े भाई के दृष्टिकोण को दोहराता है.
तो मौजिया, एक एक्सेप्शनल सिचुएशन खड़ी करते हुए सवाल पूछता है, “मोटर लेकर कोई आ गई तो?”
ब्रजमोहन इसे अपवाद मानते हुए कहते हैं,”इमरजेंसी की बात अलग है.”
“जग्गू! इस तस्वीर को तेल डालकर जला दो.” ऐसा कहकर वे चले जाते हैं.
जग्गू, मन्नू को कमांड सुनाता है, “इस तस्वीर को मोबिल ऑयल में डाल के..” तो मन्नू भी क्यों पीछे रहता. वह मौजिया को हुकुम देता है.
मौजिया, शो देखने के बहाने मन्नू से छुट्टी ले लेता है. रात को गैराज में कौन रहेगा? इस बात को लेकर जग्गू और मन्नू में तकरार होती है, तो जग्गू समाधान देते हुए कहता है, टॉस करते हैं. वह टॉस की शर्त, मन्नू को बताता है, “चित मैं जीता, पट तुम हारे.”
मजे की बात ये है कि, वह शर्त रखने में चतुराई खेल जाता है. वह दोनों शर्तें अपने फेवर की रखता है. जाहिर सी बात है कि, दोनों ही कंडीशन में मन्नू को ही हारना है.
मन्नू को गैराज पर रुकना पड़ता है. वह रात को गैराज में सोया रहता है. देर रात, दरवाजा खटखटाने की आवाज आती है. वह अलसाये स्वर में कहता है, “कौन है बे!”
फिर से आवाज आती है, तो मन्नू चिल्लाकर कहता है, “अबे, बोलता क्यों नहीं.” वह एक हाथ में रॉड उठाए दरवाजा खोलता है और आक्रामक मुद्रा में तैयार रहता है, तभी उसे बरसात में तरबतर एक युवती दिखाई देती है. वह उसे गौर से देखने लगता है. रेनू (मधुबाला) उसे टोकती है, “क्या देख रहे हो.”
वह शिकायती लहजे में कहती है, “तुम सो रहे थे?” यह बात वह दो बार कहती है और उसे वार्निंग देती है, “मैं तुम्हारी रिपोर्ट करूँगी.” वह मन्नू को आड़े हाथों लेते हुए कहती है, “डे-नाइट सर्विस की बत्ती जला रखी है और तुम सो रहे हो.” मन्नू, हाथ लंबा करके स्विच बंद कर देता है और फिर उससे कहता है, “लीजिए मेमसाहब, बत्ती गुल हो गई. अब आप भी गुल हो जाइए.” वासु चटर्जी की फिल्म: चमेली की शादी
वह दरवाजा बंद कर देता है. वह विनती की मुद्रा में नजर आती है, “बड़ी मुश्किल में हूँ. मेरी गाड़ी खराब हो गई है.”
तो मन्नू चिढ़कर कहता है, “कल रिपोर्ट करने आएंगी, तो ठीक करवा लेना.”
वह कहती है, “नहीं-नहीं. वो तो मैंने गुस्से में कहा था. प्लीज! दरवाजा खोलो. मैं लड़की हूँ. तुम्हें मेरी मदद करनी चाहिए.”
बाहर मूसलाधार बारिश हो रही होती है. मन्नू दरवाजा खोल लेता है. वह मजाक में कहता है, “गुस्सा उतर गया. एकदम उतर गया. बिल्कुल उतर गया.”
वह पूछता है, “ड्राइवर किधर है?”
“मैं खुद ड्राइव कर रही थी.” यह सुनते ही मन्नू, अपनी पारिवारिक फिलॉस्फी का पूरा निचोड़ निकालकर रख देता है, “अच्छा! तब तो गाड़ी जरूर खराब होनी चाहिए थी.” कुंदन शाह की कालजयी कॉमेडी फिल्म: जाने भी दो यारो
दोनों गाड़ी के पास जाते हैं. जब वह गाड़ी का बोनट खोलने को कहती है, तो मन्नू कहता है, “ऐसी बारिश में बोनट कैसे खोला जा सकता है.”
वह उससे गाड़ी में धक्का लगवाता है. गैराज में वह उससे फ्लास्क मँगाता है. तो वह तैश में आकर कहती है, “मैं तुम्हारी नौकर नहीं.” मन्नू भी गाड़ी मरम्मत करने से हाथ खड़े करते हुए उसी अंदाज में कहता है, “तो मैं भी किसी का नौकर नहीं.” वह बोनेट बजाते हुए टूटे- फूटे अस्पष्ट से बोल निकालता है. बेचारी मजबूरी में फ्लास्क लेकर आती है. वह फ्लास्क के ढक्कन में उसे चाय पेश करता है. वो चाय पीने से इंकार कर देती है, तो मन्नू इस इंकार पर आनंदित होते हुए कहता है , “नहीं पीती, चलो अच्छा हुआ.”
वह बोनट से चुल्लू भर पानी निकालते हुए कहता है, “गाड़ी भी मेमसाहब की तरह, भीगी बिल्ली बनी हुई है.”
वह उससे तरह-तरह से बेगारी करवाता है. कभी हाथ ग्रीस से सने होने के बहाने, पिछले पॉकेट से सिगरेट निकलवाता है, तो कभी उससे माचिस मँगाता है. ज्यादा भीग जाने की वजह से, उसे छींक पे छींक आती है. मन्नू चुप नहीं रह सकता. वह कमेंट्री करता है, “सर्दी से काँप रही हैं, मगर दिमाग अभी तक ठंडा नहीं हुआ हुआ.”
वह गैराज में, ‘इक लड़की भीगी भागी सी…’कालजयी गीत गाता है.
वह औजारों के साथ खेलते हुए, काम भी करता चला जाता है. रेनू का अनिंद्य सौंदर्य और मोहक मुस्कान दर्शकों को प्रभावित करती है. वे उस मोहपाश से नहीं बच पाते.
गाड़ी ठीक होने पर, वह मन्नू से कहती है, “तुम जैसा अजीब आदमी, आज तक नहीं देखा.”
तो वह कहता है, “मैं थोड़ा पागल हूँ.”
वह इस बात पर एतराज जताते हुए कहती है, “तुम! और पागल! तुम तो अच्छे-भले आदमी को पागल बना दो.”
वह चली जाती है, तब जाकर मन्नू को याद आता है, “अरे! मेरी मजदूरी. मुफ्त में काम करवा दिया.”
तभी उसे उसका काला पर्स नजर आता है. वह पर्स लहराते हुए कहता है, “अब बचकर कहाँ जाएगी.”
सुबह गैराज में उसके भाई उससे हिसाब-किताब माँगते हैं, तो वह पर्स उनके हवाले कर देता है. बृजमोहन उन्हें हुकुम देता है, “पर्स खोलो! और उसमें से पाँच रुपये बारह आना निकाल लो.” मन्नू, पर्स बड़े भाई के ऊपर फेंक देता है.
जब अपने पर बन आती है, तो बड़े भाई की नैतिकता जाग्रत हो उठती है. वह कहता है, “यह शराफत के खिलाफ है.”
पर्स के अंदर पैसे नहीं निकलते, तब जाकर यह तय पाया जाता है कि, मन्नू को पैसा वसूलने उसके घर भेजा जाय.”
वह टिकट के सहारे, शो में पहुँचता है, जहाँ रेनू की परफॉर्मेंस होने वाली है, लेकिन गोरखा उसे अंदर घुसने से रोक देता है. वह उसकी गाड़ी पहचान लेता है. फिर खुद से कहता है, “अब बचकर कहाँ जाएगी.” और पीछे की सीट पर सो जाता है. शो खत्म होने के बाद वह गाड़ी स्टार्ट करती है. उधर मन्नू, सपने में, ‘पाँच रुपैया बारह आना…’ डुएट गाता है. इस गीत में वह अरेबियन फेंटेसी ड्रेस से लेकर, करताल बजाते हुए वैष्णव साधु के स्वरूप में नजर आता है. मधुबाला बला की हसीन-ओ-जमील दिखती हैं.
वह रात के दो बजे, अंधेरे में टटोलते हुए उनके किचन में पहुँच जाता है. रेफ्रिजरेटर से कुछ फल निकालकर खाता है, तो किचन में बर्तनों की गिरने की आवाज सुनकर, पठान चौकीदार सजग हो जाता है. नौकर- चाकर, हो-हल्ला मचाते हैं. वह खिड़की के रास्ते, रेनू के कमरे में कूद जाता है. रेनू के पिता (एस एन बनर्जी) नौकरों के फौज-फाटे के साथ पिस्तौल लहराते हुए उसके कमरे में आ धमकते हैं. इससे पहले, मन्नू के पैंतरा बदलने पर, रेनू को उसे छुपाने में मदद करनी पड़ती है.
मन्नू, मौका देखकर भाग निकलता है. एक निर्जन इमारत के कोने में वह साँस ले रहा होता है, तभी एक मोटर आकर रुकती है. किसी जौहरी की लाश को बीच सड़क पर फेंक कर गाड़ी चली जाती है, लेकिन मन्नू संदिग्ध आदमी (सज्जन) को पहचान लेता है, जो एक खास अंदाज में रुमाल से दाहिने गाल से पसीना पोंछता है.
वह सुबह गैराज में अपने भाइयों को कल रात का अपना थ्रिलर एक्सपीरियंस ब्यौरे के साथ सुनाता है. जग्गू कहता है, “कहानी तो बड़ी धांसू है. अब प्रश्न ये उठता है…”कहकर वह शिगूफा छोड़ देता है. हल्के-फुल्के मिजाज की फिल्म चश्मेबद्दूर
बड़े भैया मार्के की बात पर आते हुए कहते हैं, “मोटी बात ये है कि, तुमसे पाँच रुपये बारह आने वसूल करते नहीं बना.”
जग्गू अपने स्वभाव के मुताबिक उनकी हाँ में हाँ मिलाता है. मन्नू, कस्टमर का बचाव करते हुए बयान देता है, “वह चुका देगी. आज दस, साढे दस बजे तक चुका देगी.”
बड़े भैया के जाते ही जग्गू, मन्नू से उस कस्टमर की तफ्सील सुनना चाहता है. वह लड़कियों के बारे में सुनने को उतावला सा दिखता है, तो मन्नू उसे यह कहकर घुड़की देता है, “भैया से शिकायत करुँगा कि, ये अकेले में मुझसे लड़कियों की बातें पूछता है.”
मौजिया को गाड़ी काली करने को कहा जाता है, लेकिन वह पहलवाननुमा कस्टमर के चेहरे पर ब्लैक स्प्रे कर देता है. इस पर पहलवान उसे मारता है, तो उसकी मदद को दोनों भाई सामने आते हैं. पहलवान दोनों को एक साथ धो देता है. दोनों चीखते हुए बड़े भैया से गुहार लगाते हैं. इस पर, बड़े भैया उन्हें डाँटते हैं. वे जग्गू से कहते हैं, “तू पचास रोटी रोज खाता है. घूँसों में वजन नहीं ला सकता.”
दोनों, ‘भैया! एक अपर कट, एक अपर कट’ कहकर अपने बॉक्सर भाई को उकसाते हैं. बड़े भैया, पहलवान को धूल चटा देते हैं. उसके बाद मौजिया और दोनों भाई भी बहती गंगा में हाथ धो लेते हैं. फिल्म : अंगूर
रेनू के घर से, फिर गाड़ी दुरुस्त करने के लिए पैगाम आता है, तो इस बार भैया मन्नू के स्थान पर, जग्गू को गाड़ी ठीक करने वहाँ भेजते हैं. जब रेनू पूछती है कि, ‘मन्नू क्यों नहीं आया’, तो जग्गू आत्म प्रशंसा से लबरेज होकर कहता है, “वो मैकेनिक है. मैं ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ.”
शीला, उसे तरह-तरह से परेशान करती है और आख़िर में उसे गाड़ी के नीचे भेज देती है. जग्गू, दस गिलास पानी पी जाता है, लेकिन गाड़ी ठीक नहीं कर पाता. फिर, मन्नू को जाना पड़ता है. वह अपनी ट्वेंटी वन मॉडल शेवरलेट से विशेष अंदाज में उनके घर में दाखिल होता है.
वह गाड़ी ठीक कर देता है, लेकिन कल रात के वाकये को लेकर, वहाँ पुलिस तफ्तीश करने आई होती है. रेनू के पिताजी थानेदार को बताते हैं कि, चोर, तीन केले और दो सेब खाकर चला गया. उन्हें अंदेशा रहता है कि, जरूर वह खूनी गिरोह का सदस्य रहा होगा.
गाड़ी में जाते हुए मन्नू, रेनू के पिता से पूछता है, “क्या सचमुच चोर आया था.” तो उसके पिता बताते हैं कि उसने कोई चोरी तो नहीं की, लेकिन इस बात की उन्हें चिंता है कि, वह निश्चित रूप से खूनी गिरोह का सदस्य होगा. मन्नू, खुद ही जवाब देता है, “वह चोर नहीं था, बहुत बड़ा साधु था. तभी तो, पाँच फल खाकर चला गया.”
रेनू, मन्नू को छोड़ने जाती है. वह मन्नू से कहती, “तुम पागल हो.”
इस पर मन्नू कहता है, “मैं अपने भाइयों के मुकाबले बहुत ही कम पागल हूँ.” वह उसे बताता है कि, बड़े भैया को लड़कियों से खास चिढ़ है. यहाँ तक कि, लड़कियों की तस्वीरों से भी चिढ़ है.
रेनू, इस बात को गहराई से महसूस करती है. वह जब उसे गैराज पर छोड़ती है, तो जग्गू, रेनू को उचक-उचककर देखता है. उसके जाते ही, वह मन्नू से तफ्सील पूछना चाहता है. मन्नू, ‘हम थे वो थे और शमाँ…’ गाकर उसे सब्जबाग दिखाता है.
उधर राजा हरदयाल (केएन सिंह) रेनू के पिता से अपने छद्म भाई प्रकाश (सज्जन) की शादी की बात चलाते हैं.
सहसा रेनू गैराज में पहुँचती है. मौजिया, उसे सीधे ऊपर के कमरे में भेज देता है. छुट्टी के दिन, तीनों भाई बड़ी देर तक सोते हैं. वह सीधे मन्नू के कमरे में पहुँचती है. मन्नू अकबकाकर खड़ा हो जाता है. वह डर के मारे दरवाजे- खिड़कियों से झाँकता है, कि, किसी ने देखा तो नहीं. वह रेनू से कहता है, “जग्गू भैया, बिरजू भैया ने देख लिया, तो मेरा हुलिया टाइट कर देंगे.”
वह एक-एक करके, सब के कमरों में जाती है और अंत में बृजमोहन के कमरे में. दरअसल, वह उस परिवार की स्त्री विरोधी भावना को आजमाती है. उसे स्त्री-अस्मिता का सवाल मानकर, वह उन्हें सीधे-सीधे चुनौती देती है. उसे देखकर बड़े भैया, खुद को चादर से ढँक लेते हैं. वहाँ से दौड़ लगाते हुए, वे दोनों भाइयों के पास आते हैं. फुसफुसाकर कहते हैं, “बड़ी गड़बड़ हो गई. मेरे कमरे में रेनू आई है. रेनू एक लड़की है.”
वह उसी कमरे में पहुँच जाती है. वह उनसे मन्नू को अपने साथ भेजने को कहती है, तो बड़े भैया कहते हैं, “मैं ऐसी बातों के सख्त खिलाफ हूँ.”
वह बड़े भैया के कमरे से एक लड़की की तस्वीर दिखाकर, उनका भयदोहन करती है और मन्नू को अपने साथ ले जाती है.
सैर-सपाटे के स्थान पर पहुँचकर, वह मन्नू से मुर्गी पकड़ने की शर्त रखती है. वह अपनी हरकतों से उसे खूब हँसाता है. उसकी निश्छल हँसी, दर्शकों के जेहन में आज भी गूँजती है. दोनों बड़ा मोहक सा डुएट सॉन्ग गाते हैं- “हाल कैसा है जनाब का…”
कई पीढ़ियों तक यह गीत, युगल जोड़ों का सदाबहार रोमानी गीत बना रहा, जिसके मुकाबले का कोई दूसरा गीत सिनेमा में देखना मुश्किल है.
रेनू ,अपनी शादी की खबर देकर, मन्नू की प्रतिक्रिया जानना चाहती है, लेकिन मन्नू अपने जज्बातों को जज्ब कर जाता है.
राजा हरदयाल जब हार लेकर रेनू के घर जाता है, तो रेनू की प्रतिक्रिया देखने लायक होती है. वह बड़ी ही सधी प्रतिक्रिया देती है; ऐसी भंगिमा जिससे मेहमान बुरा भी ना माने और रिश्ते के लिए उसकी हां भी न समझी जाए.
राजा हरदयाल अपने प्यादे प्रकाश को प्रिंस प्रकाश कुमार के रूप में पेश कर रेनू से उसकी शादी कराना चाहता है. दरअसल उसकी निगाह रेनू के पिता की दौलत पर रहती है. वह प्रकाश को तैयार करते हुए कहता है, “एक ही महीने में तुम रेनू के दिल पर और उसके बाप के दिमाग पर इतना असर जमाओ कि, उन्हें लगे कि तुमसे बढ़िया दामाद उन्हें नहीं मिलने वाला.”
प्रकाश आगे का प्लान बताते हुए बात पूरी करता है, “अचानक रेनू के पिताजी दम तोड़ देंगे और सारी दौलत…”
राजा हरदयाल खुद के मामले में भी ऐसा कर चुका है. उसने कामिनी(वीना) को बंधक बनाया हुआ है और उसे पागल घोषित करके हवेली में कैद किया हुआ है. कामिनी बदहवासी में कह डालती है, “तुमने मुझे कैद कर लिया और मेरे पिता को जहर देकर मार डाला.”
प्रकाश, रेनू से मुलाकात करता है और असली स्पीड दिखाने के लिए उसे रेस में बुलाता है.
उधर गैराज में जग्गू को शीला का फोन आता है. आसपास उसके दोनों भाई मंडरा रहे होते हैं, तो वह शीला को शेवरलेट कहकर भाइयों को टरका देता है. शीला, उसे एरोड्रम पर हो रही मोटर रेस को देखने के लिए बुलाती है.
मन्नू अपनी ट्वेंटी वन मॉडल के साथ रेस में भाग लेता है. वे शेवरलेट को बाकायदा माला पहनाते हैं. उसके आगे नारियल फोड़ते है, दंडवत लोट लगाते हैं, लेकिन गाड़ी ऐन मौके पर स्टार्ट ही नहीं होती. दोनों फिर उसे अपने पेटेंट तरीके से अर्थात् किक मारकर स्टार्ट करते हैं. मन्नू हंसी-दिल्लगी करते हुए फर्स्ट प्राइज जीत लेता है. प्राइज सेरिमनी के मौके पर रेनू, कुमार साहब से मन्नू का परिचय कराती है. उसे देखते ही मन्नू को वह वाकया याद हो आता है. वह रेनू को एकांत में बुलाकर बता देता है कि, लालचंद जौहरी की लाश फेंकते हुए मैंने इसी आदमी को देखा था. डार्क ह्यूमर का शानदार नमूना : नरम गरम
मन्नू के रेनू के साथ बढ़ते मेलजोल को लेकर बृजमोहन उसे आगाह करते हैं, तो मन्नू विद्रोह पर उतर आता है. वह अपने भैया से कहता है कि, आप मेरी आजादी नहीं छीन सकते. उसके भैया ग्लव्स मँगाते हैं. मन्नू चुनौती स्वीकार कर लेता है. तो जग्गू भैया को एक हाथ से लड़ने के लिए तैयार करता है और मन्नू को उकसाता है. दोनों भाई बॉक्सिंग लड़ते हैं. एकबारगी तो वह बड़े भैया को गिरा देता है. बकौल जग्गू, “तुमने घूँसे में वज़न डाल दिया.”
बॉक्सर भाई एक ही हाथ से मन्नू की हालत पस्त कर देता है. मजे की बात यह है कि, रेफरी बना जग्गू पहले नॉकआउट होता है, फिर मन्नू.
यहाँ से कोई नतीजा निकलता न देखकर, बृजमोहन रेनू को हिदायत देते हैं कि, तुम मन्नू से मिलना-जुलना छोड़ दो, लेकिन रेनू अपने दृढ़ता के सहारे उनकी राय बदल कर रख देती है.
मन्नू और रेनू, राजा हरदयाल के द्वारा धर लिए जाते हैं. कामिनी उनकी मदद करती है. वह ब्रजमोहन को खबर करती है. फिल्म का सुखांत समापन होता है. तीनो भाइयों को उनकी संगिनीयाँ मिल जाती हैं.
केएन सिंह एकबार फिर से स्टाइलिश विलेन की धज में नजर आए और उन्होंने प्रभावित किया. सज्जन का अभिनय नपा- तुला नजर आता है. मधुबाला का स्कूली बच्चियों की तरह दो चोटियों में रिबन लगाना और तर्जनी उठाकर बात करना दर्शकों को लंबे अरसे तक याद रहा. यह फिल्म हिंदी सिनेमा की शुरुआती फिल्मों में से एक ऐसी फिल्म है, जिसे सर्वकालिक हास्य फिल्मों में शुमार किया जाता है.
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ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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