4G माँ के ख़त 6G बच्चे के नाम – आठवीं क़िस्त
पिछली क़िस्त का लिंक: माँ की इच्छाओं की अकाल मृत्यु
आज अपने एक दोस्त के साथ दो-ढाई घंटे बतियाई, बहुत अच्छा लगा. थोड़ी सी दिमागी भूख मिटी. वो उम्र में मुझसे छोटा है, लेकिन न सिर्फ डिग्री बल्कि ज्ञान में भी मुझसे बहुत बड़ा है. मुझे उससे बेहद लगाव है और मैं उसकी बहुत इज्जत भी करती हूं. मैं इसलिए उसकी इज्जत नहीं करती कि वो ज्ञानी-ध्यानी है, बल्कि इसलिए करती हूं क्योंकि वो एक बेहद ‘अच्छा इंसान‘ है. तुम्हें पता है मेरे बच्चे! इस दुनिया में सबसे मुश्किल काम क्या है? सबसे मुश्किल काम है ‘अच्छा इंसान‘ बनना और बने रहना!
हालांकि डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक, चिंतक, विश्लेषक, प्रबंधक, अध्यापक, या फिर विचारक बनना भी मुश्किल काम ही है, पर ये सब बनना सिर्फ मुश्किल है, सबसे मुश्किल नहीं! सबसे मुश्किल ‘अच्छा इंसान‘ बनना इसलिए है मेरी जान, क्योंकि डॉक्टर, इंजीनियर या ऐसा ही कुछ बनने के लिए सिर्फ कुछ साल जी तोड़ मेहनत करनी पड़ती है. और जब आप एक बार वो बन जाते हैं, तो फिर जीवन भर के लिए आप वही बने रहते हैं, क्योंकि आपके पास उसकी डिग्री होती है. लेकिन अच्छा इंसान बने रहने के लिए मरते दम तक हर रोज हमें प्रयास करना पड़ता है, अच्छा इंसान बने रहना सिर्फ कुछ सालों की मेहनत नहीं है मेरी जान.
शायद यही कारण है कि दुनिया में अच्छे इंसान बहुत कम हैं, क्योंकि हर कोई जीवन भर ये मेहनत करते हुए नहीं रह सकता. यदि अच्छा इंसान बनना सबसे मुश्किल काम न होता, तो समाज में और सभ्यता के विकास में उनकी संख्या भी बहुत होती. और तब ये समाज तुम्हारे जीने लायक होता मेरी बच्ची. अब तुम पूछोगी कि ‘अच्छा इंसान‘ कौन होता है? कैसा होता है? इस सवाल का जवाब मैं तुम्हें एक छोटी सी घटना से देती हूं…
एक बार मैं और तुम्हारे पिता ऑटो से कहीं जा रहे थे. सफर पूरा होने पर जब हम उतरे और हमने ऑटो वाले को उसके अच्छे व्यवहार के लिए शुक्रिया कहा, तो उसने एक बात बोली – ‘‘मैडम इस दुनिया में पैसा कमाना हर कोई जानता है…लेकिन दुआ लेना हर कोई नहीं जानता!…मैं तो बस दुआ लेना चाहता हूं.‘‘ तो अच्छा इंसान होना मतलब ‘दुआ लेना’ है. जितने ज्यादा लोग आपके लिए दुआ करते हैं, उतने अच्छे इंसान आप हैं. तुम्हारे इस सवाल का इससे अच्छा और सीधा-सादा जबाव मैं नहीं दे सकती तुम्हें. मेरी तुमसे यही अपेक्षा है मेरे बच्चे, कि तुम अच्छे इंसान बनो और बने रहो. अच्छा बने रहना ज्यादा मुश्किल और बड़ी चुनौती है मेरी जान, जो तुम्हें स्वीकार करनी ही चाहिए…
मेरा पहला प्रेमी अक्सर कहा करता था – ‘‘सच तो यही है कि ‘भय बिनु प्रीत न होई गोसांई!’’ और मैं हमेशा उससे कहती – ‘‘जिससे भय है उससे प्यार हो ही नहीं सकता. ‘भय’ में व्यक्ति को सिर्फ अपने सामने झुकाने की ताकत होती है, जबकि ‘प्यार’ में व्यक्ति आपके पीछे भी आपके लिए झुका रहता है …(सजदा करेगा)!’’ ‘असर’ वही है मेरी जान, जो किसी के जाने के बाद भी देर तक रहे! …और प्यार में वह असर होता है.
उत्तर प्रदेश के बागपत से ताल्लुक रखने वाली गायत्री आर्य की आधा दर्जन किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में महिला मुद्दों पर लगातार लिखने वाली गायत्री साहित्य कला परिषद, दिल्ली द्वारा मोहन राकेश सम्मान से सम्मानित एवं हिंदी अकादमी, दिल्ली से कविता व कहानियों के लिए पुरस्कृत हैं.
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