हर सुबह की तरह इस सुबह भी श्रीमतीजी और बच्चे बाथरूम के दरवाजे पर रुक कर, मुझे कुछ इस तरह देख रहे थे, जैसे राह चलते लोग रुक कर बन्दर का तमाशा देखते हैं. मैं गलगलिया की तरह मुँह ऊपर कर के कभी शुद्ध ग, तो कभी कोमल ध लगाने की कोशिश कर रहा था. कभी मंद्र में, तो कभी मध्य सप्तक में. पिछले कुछ समय से रोज़ रियाज़ कर रहा हूँ. आज भी कर रहा था. मैं गरारे कर रहा था.
(2021 Satire by Priy Abhishek)
श्रीमतीजी ने कहा, “तुम एक मंझे हुए गराराकार बनते जा रहे हो. यूँ ही मन लगा कर रियाज़ करते रहो; एक दिन तार सप्तक में भी गरारे करोगे.”
बच्चे बोले, “पापा गार्गल करते हुए अगर छाती पीटें, तो पूरे गोरिल्ला लगेंगे.”
बच्चे संगीत की बारीकी नहीं समझते हैं. जो मैं गा रहा हूँ, यह राग प्रिय गरारा है. इसकी उत्पत्ति गरारा थाट से हुई है. भातखंडे अंकल जी और पलुस्कर अंकल जी गरारा थाट के बारे में लिखना भूल गए थे. राग गरारा इसका प्रतिनिधि राग है. कुछ राग सम्पूर्ण होते हैं, पर राग गरारा सम्पूर्णेस्ट है. वैसे तो इसके गायन का समय प्रातःकाल है, पर कोरोना-काल में ये कभी भी गाया जा सकता है. ये इतना सम्पूर्णेस्ट है कि इसको ध्रुपद, ख़्याल, ठुमरी, टप्पा, किसी भी शैली में, तीनों सप्तक, तीनों लय और सभी तालों में गाया जा सकता है. कर्नाटक संगीत में भी इस राग का प्रचलन है.
(2021 Satire by Priy Abhishek)
भारत में गरारा थाट के राग बहुत लोकप्रिय हैं और शौक से गाये जाते हैं. भजन-संध्या की तर्ज पर भारत के मोहल्लों और मल्टियों में गरारा-उषा का आयोजन किया जाता है, जहाँ लोग सुबह-सुबह अपने गले का हुनर दिखाते हैं. गरारा थाट के अंतर्गत आने वाले कुछ प्रमुख राग हैं- गुप्ताजी का गरारा, शर्मा अंकल का गरारा, बी-ब्लॉक वाले रावत भाईसाहब का गरारा, कारी-काकी का गरारा, योगीराज गरारा, एक गोपनीय गरारा आदि.
राग गुप्ताजी का गरारा में गुप्ता जी पहले आलाप लेते हैं. फिर गरारे को मध्य से उठा कर तार सप्तक तक ले जाते हैं. उनका गरारा दो ब्लॉक दूर तक सुनाई देता है. उनका रियाज़ कई लोगों के लिए सुबह का अलार्म भी है. वे अपने गरारे में मुरकियों का ख़ूबसूरत प्रयोग करते हैं.
शर्मा अंकल अपनी पत्नी से पीड़ित रहते हैं. उनके राग गरारा में प-नी वर्जित हैं. और म-रे वादी-सम्वादी हैं. उनके गरारे से मरे-मरे सुनाई आता है. अवरोह में मेरा गरारा भी मरे-मरे करता है. शर्मा अंकल मुरकियों के अलावा मींड, खटके का भी लाजवाब प्रदर्शन करते हैं.
राग रावत भाईसाहब का गरारा, रावत भाईसाहब की तरह एक गम्भीर प्रकृति का राग है. वे अपने राग को मन्द्र सप्तक से उठाते हैं. उनके आस-पड़ोस में भी किसी को नहीं पता कि रावत जी भी गरारे का रियाज़ करते हैं. किसी कार्य से सुबह-सुबह उनके घर जाना हुआ तब ये राज़ खुला.
(2021 Satire by Priy Abhishek)
राग कारी-काकी गरारा केवल कारी-काकी ही नहीं, समस्त बुढियाओं का प्रिय राग है. उम्र बढ़ने के साथ आत्मविश्वास बढ़ता जाता है और लज्जा कम होती जाती है. कारी-काकी मुहल्ले के चौक पर लगे नल पर अपना रियाज़ करती हैं. वे तराने से शुरू करके राग को तार सप्तक तक ले जाती हैं और आक्-थू पर छोड़ती हैं. कारी-काकी की बंदिशें स्पष्ट सुनाई नहीं आती हैं. लगता है जैसे वे व्यवस्था को कोस रही हों. फिर जब वे आक्-थू पर छोड़ती हैं, तब समझ आता है कि वे व्यवस्था को ही कोस रही थीं.
योगीराज ने अपने राग में नवीन प्रयोग किए हैं. उन्होंने अपने राग में यौगिक क्रिया कुंजल को मिलाया है. वे वॉयलिन की डंडी की तरह दो उंगलीयों को अपने गले में डाल कर ज़ोर से हिलाते हैं. इससे उनके आलाप में अद्भुत गमक पैदा होती है. वे अपने गरारे के प्रारम्भ में नोम-तोम का आलाप भी लेते हैं.
रही बात राग प्रिय गरारा की तो अभी रियाज़ जारी है. गला अभी कच्चा है. सैद्धांतिक रूप से तैयारी पूरी है, बस व्यवहारिक रूप की कमी है. कोई कितना भी बेसुरा हो, जब मन ही मन में गाता है, तब सुर पक्के और सही-सही लगाता है. सारा मसला आवाज़ के गले से बाहर निकलने पर होता है. तो मन में तो मैं भी बहुत सुरीला हूँ; बस सुरों को गले से बाहर निकालने की ज़रा सी कसर रह गई है.
श्रीमतीजी गरारा राग के लिए तरल पकड़ा गई हैं. और गई कहाँ हैं, वही रुक गई हैं. बच्चे भी आ गए हैं. बालकनी में श्रीमतीजी और फर्स्टक्लास में बच्चे. तमाशा निःशुल्क है. तरल में फ़िटकरी, हल्दी जैसे प्राणघातक पदार्थ मिलाए गए हैं. लगता है कोई सात जन्मों के कॉन्ट्रैक्ट को जल्दी निपटाना चाहता है. मैं तरल को गले में डालता हूँ. फिर नीलकंठ महादेव की तरह उसे गले में धारण करने का असफल प्रयास करता हूँ. परन्तु मैं नराधम ऐसा करने में सक्षम नहीं हूँ.
(2021 Satire by Priy Abhishek)
अब मैं मिक्सर-ग्राइंडर की तरह तरल को गले में घुमा कर, एक ज्वार-भाटा उठाता हूँ. मुझे बेलन का आयतन, बेलन का पृष्ठीय क्षेत्रफल के सवाल याद आ रहे हैं. मैं तरल से गले की पूरी कोटिंग कर लेना चाहता हूँ. गायकी अपनी जगह, पर कोरोना वायरस को भी तो मारना है. मैं श्वांस के बल से तरल को गले की दसों दिशाओं में उछालता हूँ. परन्तु हो सकता है वायरस थोड़ा नीचे खिसक कर बैठा हो. मैं तरल को थोड़ा और नीचे तक ले जाने की कोशिश करता हूँ, और कुछ तरल पेट में चला जाता है. मैं भयभीत हो उठता हूँ. क्या मैं बचूँगा? तभी मुझे राग गोपनीय गरारा याद आ गया और मेरा भय जाता रहा.
पहले मैंने सोचा था मैं आपको राग गोपनीय गरारा के बारे में नहीं बताऊँगा. बता रहा हूँ, पर अपने तक ही रखियेगा. मेरे घर पर पता न चले.
गरारा क्या, गरारी कहना उचित होगा. प्यारी, कमसिन, राग गरारी. कोई दो महीने पहले ही वो बगल वाले फ्लैट में आई है. संयोग कहूँ या कोरोना मईया का प्रताप; एक दिन सुबह-सुबह बालकनी में दिखी वह. सुमधुर ध्वनि में कुड़-कुड़ करके गरारे कर रही थी. गरारे भी कितने ख़ूबसूरत हो सकते हैं; उस दिन मुझे अहसास हुआ. दाएँ हाथ में गिलसिया पकड़े हुए वह कुड़-कुड़ करके गरारा करती, फिर बायाँ हाथ अपने सीने पर रख कर फुचुक से पानी बाहर निकालती. उफ़्फ़! हमारे बीच सिर्फ़ आठ फ़ीट की दूरी थी, कि तभी मुझे हमारे बीच की अस्सी फ़ीट गहराई का ख़्याल आ गया. पर एक दिन हम दोनों साथ में गरारे का रियाज़ ज़रूर करेंगे. इंशाअल्लाह!
अभी तरल का दूसरा कोट गले में लगाना है. इस बार मध्य सप्तक से उठाऊँगा. बंदिश है- गरारा, गरारा, मैं हूँ एक गरारा. अत्यंत ‛प्रतिभावान’ शमिता शेट्टी ने पूरी ताक़त लगा दी थी इस गीत में. आप में से कुछ विद्वान कहेंगे कि सही शब्द शरारा है, गरारा नहीं. मित्रों, जो तरल मुझे गरारा करने के लिए दिया गया है न, उस मान से गरारा ही शरारा है.
(2021 Satire by Priy Abhishek)
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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