गाँव के सारे कुत्ते बाघों के पेट में चले गये
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree साल-दो साल पहले जब पिथौरागढ़ (उत्तराखण्ड) के नैनी-सैनी हवाई पट्टी से विमान सेवा शुरू होने की खबर पढ़ी थी तो दिल-दिमाग स्मृत... Read more
अभिनय और संगीत पियूष की रगों में दौड़ता था
“कोमलांगी सिया प्यारी तू कहाँ? ढूँढता फिरता तुझको मैं यहाँ.” मंच पर राम का विलाप चल रहा है. सीता के आग्रह पर स्वर्ण मृग का आखेट करने गए राम लौटकर कुटिया में सीता को नहीं पाते. उन्हें मालूम न... Read more
करीब छह-सात वर्ष पहले जब कुमाऊं मंडल विकास निगम का बेहतरीन प्रकाशन ‘थ्रोन ऑफ गॉड्स’ (धीरज सिंह गर्ब्याल और अशोक पाण्डे) हाथ में आया था तब उसके पाठ की बजाय उसमें प्रकाशित अत्यंत सुंदर-कलात्मक... Read more
कीड़ाजड़ी – पिण्डर घाटी के जीवन का जादुई आईना
अनिल यादव की ‘कीड़ाजड़ी’ में कीड़ाजड़ी उतनी ही है जितनी कीड़े में जड़ी या जड़ी में कीड़ा होता है. नाम अवश्य एक सनसनी पैदा करता है. कीड़ाजड़ी अब अपने नाम, काम और दाम से एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय... Read more
बात ‘गलता लोहा’ से शुरू करते हैं, जो शेखर जोशी जी की अपेक्षाकृत कम चर्चित कहानी है. पहाड़ के एक गांव में दो सहपाठी हैं- धनराम और मोहन. धनराम लोहार का बेटा है जो कुमाऊं में शिल्पकार यानी अछूत... Read more
जीवन और जंगल से बेदखल जंगल के राजा
शोभाराम शर्मा जी का नाम मैंने प्रयाग जोशी जी से सुना था. प्रयाग जी ने 1972-73 में पिथौरागढ़ जिले के अस्कोट-जौलजीवी क्षेत्र के बीहड़ जंगलों/बस्तियों में घूम-घूम कर वनराजियों या वनरावतों (बणरौ... Read more
गांव पर लटका ताला
‘प्रधानी का चुनाव लड़ा जाए?’ एक सुबह बिल्कुल अचानक पुष्कर ने पूछा. ‘बहुत अच्छा रहेगा,’ कविता खुश हुई. ‘सही में?’ ‘बिल्कुल! जानते हो, कई बार सोचती हूं कि गांव में रहने तो हम आ गए लेकिन कर क्य... Read more
उनचास फसकों की किताब ‘बब्बन कार्बोनेट’
बब्बन कार्बोनेट: द हो, अशोक पाण्डे की क्वीड़ पथाई के क्या कहते हो! पहाड़ की मौखिक कथा परम्परा में ‘क्वीड़’ कहने का भी खूब चलन है. जब फुर्सत हुई, दो-चार जने बैठे तो लगा दी क्वीड़. किस्सागोई त... Read more
पहाड़ ने भी खूब संवारा लखनऊ का चेहरा
किसी भी नगर की सबसे पहली पहचान उसकी नागरिक सुविधाओं से बनती है. लखनऊ अब एक बड़ा महानगर है. सन 1947 में यह छोटा-सा नगर था. इसका प्रबंध नगर पालिका करती थी जिसकी आर्थिक हालत बड़ी खस्ता थी. कुछ... Read more
परदेस को चिठ्ठी लिखने का भी कोई कायदा होता होगा. बाबू ने ही तो कहा था – “दुःख में जो-जो मुंह से निकला सब लिख देना हुआ क्या?” फिर तो परदेस में चिठ्ठी बांचने का भी कोई कायदा... Read more