औद्योगिक क्रांति से अब तक इंसान बेहद गैर-ज़िम्मेदारी से अपने पर्यावरण को तोड़ने-मरोड़ने में लगे रहे. नतीजतन जलवायु से सम्बंधित एक बड़ी आपदा आज हमारे मुंह बाए खड़ी है. जिन तकनीकों के साथ आज हम खेल रहे हैं, उन्हें लेकर यदि सतर्क न हुए, तो इंसान ख़ुद अपने लिए यानी मनुष्य प्रजाति के लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. यह कहना है यरुसलम स्थित हिब्रू विश्वविद्यालय में इतिहास के प्राध्यापक प्रो. युवाल नोह हरारी का. (Yuval Harari on Man and Machines)
मिलान में आयोजित एक सम्मलेन को संबोधित करते हुए हरारी ने निकट भविष्य की वह झलक दिखाई, जब इंसानी शरीर और मशीन एक हो जाएंगे. यह बात आपको किसी विज्ञान फंतासी का हिस्सा लग सकती है, लेकिन हरारी के मुताबिक यह हकीक़त अब बहुत दूर नहीं है. एप्पल से लेकर फेसबुक और गूगल जैसी टेक कम्पनियां ऐसे स्मार्टफोन और ऑनलाइन स्पेस तैयार कर चुकी हैं, जहां आज हम अपना अधिकांश समय बिताते हैं. (Yuval Harari on Man and Machines)
हरारी कहते हैं, “यह बता पाना मुश्किल होता जा रहा है कि कहां मैं ख़त्म हुआ और कहां कंप्यूटर शुरू हो गया. भविष्य में स्मार्टफोन आपके शरीर से अलग नहीं होगा. यह आपके शरीर या दिमाग में जड़ दिया जाएगा, जो आपके बायोमेट्रिक डेटा और आपके मन को अनवरत स्कैन करता रहेगा.”
उत्तर-मनुष्य युग में आपका स्वागत है!
अगर हम किसी तरह इन तकनीकों को एक चिप के जरिए मानव शरीर या मस्तिष्क में जड़ पाने में कामयाब होते हैं तो हरारी के मुताबिक़ यह मानव इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति मानी जाएगी. एक प्रजाति के रूप में अब तक हम अपने पर्यावरण को तोड़ने-मरोड़ने में और ऐसे उपकरण विकसित करने में बेहद कामयाब रहे हैं जो हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं. लेकिन हम ख़ुद को अब तक तोड़-मरोड़ नहीं पाए हैं.
“अतीत में इंसान हमेशा एक जैसे बने रहे- एक जैसा शरीर, मस्तिष्क और मन- चाहे वह रोमन साम्राज्य का दौर रहा हो या बाइबिल का ज़माना या फिर पाषाण युग. अगर हम पाषाण युग के अपने पुरखों को अपने वर्तमान जीवन के बारे में बता पाते तो वे हमें ईश्वर तुल्य समझते. लेकिन सच तो यह है कि भले ही हमने बेहद जटिल उपकरण विकसित कर लिए हों, हम अब भी बिलकुल अपने पुरखों जैसे ही हैं. हमारी भावनाएं वैसी ही हैं और वैसा ही दिमाग़ भी है. आने वाली क्रांति इसे बदल कर रख देगी. यह न केवल हमारे उपकरणों को बदलेगी बल्कि यह स्वयं हम इंसानों को ही बदल डालेगी.”
हरारी के अनुसार यह अवश्यम्भावी है कि आने वाले वर्षों में हम मनुष्य प्रजाति को बहुत गहराई तक बदल डालेंगे. जानवरों में हम पहले ही जैविक परिवर्तन कर चुके हैं और आईवीएफ (परखनली में निषेचन) जैसी तकनीकों के माध्यम से इंसान के जन्म को नया आकार देने में भी हमें कामयाबी हासिल हुई है.
आगे मनुष्य जाति के लिए अविश्वसनीय संभावनाएं हो सकती हैं. फिलहाल, प्राकृतिक चयन का यही अर्थ रहा है कि इंसान केवल पृथ्वी पर ही रहने के लिए पूरी तरह अनुकूलित हैं, किसी अन्य ग्रह पर नहीं. लेकिन हरारी कहते हैं. “जीवन पृथ्वी के दायरे को तोड़कर बाहर निकलेगा और इस उड़ती हुई चट्टान तक सीमित नहीं रहेगा.”
“धरती के सबसे सख्तजान बैक्टीरिया भी मंगल ग्रह पर जीवित नहीं रह पाते. होमो सेपियन्स दूसरे ग्रह या गैलेक्सी में बस्ती नहीं बसा सकते.” लेकिन भविष्य में ऐसा री-डिज़ाइंड मानव शरीर तैयार किया जा सकता है जो ब्रह्माण्ड में कहीं भी जीवित रह सके.
जहां कंप्यूटर और मानव शरीर के एक हो जाने के कई संभावित फायदे हैं, हरारी को चिंता है कि इंसान इस शक्ति का दुरुपयोग भी अवश्य करेंगे. वास्तव में इंसानों ने बार-बार साबित किया है कि नई तकनीकों को इजाद करने से पहले वे उनसे होने वाले नफे-नुकसान की चिंता नहीं करते. जलवायु आपदा का उदाहरण हमारे सामने है. पिछली कुछ सदियों के दौरान, हम नई-नई औद्योगिक मशीनें इस धरती पर थोपते गए बिना यह सोचे कि हमारे पारिस्थितिकी तंत्र पर क्या प्रभाव पड़ेगा. इस उदाहरण को एक चेतावनी की तरह लेना चाहिए जब हम उन तकनीकों के बारे में सोचें जो हमारे शरीर और मन को प्रभावित करती हों.
मिसाल के लिए, सरकारों व कंपनियों की दिलचस्पी मनुष्य की बुद्धिमत्ता और अनुशासन को बेहतर बनाने में हो सकती है. वे ऐसी तकनीकें चाहेंगी जो इन गुणों को बढ़ाती हों. लेकिन उनकी दिलचस्पी मनुष्य में करुणा, सृजनशीलता और आध्यात्मिकता को बढ़ाने में नहीं होगी. हम गायों के साथ ऐसा कर चुके हैं. हम ऐसी सीधी-साधी और अत्यंत उत्पादक गाएं तैयार करने में कामयाब हुए जो उनके जंगली बिरादरों में पाए जाने वाले अनेक मूल्यवान गुणों को खो चुकी थीं. हरारी बताते हैं, ” अपने जंगली पुरखों की तुलना में पालतू गायों में चपलता व जिज्ञासा कम होती है.
हरारी तकनीक-वेत्ताओं से लगातार संवाद में रहते हैं. हाल ही में उन्होंने एक सार्वजनिक मंच पर मार्क जुकरबर्ग से बातचीत की. उनकी चिंता है कि अधिकतर तकनीकी विशेषज्ञ तकनीक के बारे में तो बहुत कुछ जानते हैं लेकिन मानव अनुभव के अन्य पहलुओं पर उनकी जानकारी सीमित है. वह उन्हें सलाह देते हैं कि इस बात पर ज्यादा समग्रता से विचार करें कि उनकी तकनीकें स्वयं मनुष्य को किस तरह बदल रही हैं. उदाहरण के लिए, आज फेसबुक और गूगल जैसे प्लेटफ़ॉर्म “मनुष्य के ध्यान को खींचने और बंधक बनाने” के लिए डिज़ाइन किए गए हैं. हरारी कहते हैं, “यह उनके बिजनेस मॉडल का आधार है. उनके लिए इस मॉडल को बुरा कहना बहुत मुश्किल होगा. ऐसा कहेंगे तो उनके शेयरहोल्डर क्या सोचेंगे? अपने नेक इरादों के साथ-साथ उनकी ही बनाई मशीनों ने उन्हें बंधक बना लिया है. वे फंस गए हैं.”
अंततः, अगर हम अभी बनाई जा रही तकनीकों को लेकर ज्यादा सावधान नहीं हुए तो बहुत कुछ खोने वाले हैं. हरारी सुझाते हैं कि हमें मात्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर ही निवेश नहीं करना चाहिए बल्कि उतना ही निवेश हमें मानव चेतना को समझने और पालने-पोसने पर भी करना चाहिए- यानी उन लाज़वाब खूबियों पर जो हमें सृजनशील, दयालु और तर्कशील बनाती हैं.
(अनुवाद: आशुतोष उपाध्याय)
https://www.foxnews.com/tech/humans-merge-with-machines से साभार
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अजय
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