बी आर फिल्म्स की यश चोपड़ा निर्देशित पहली फिल्म थी धूल का फूल. यश चोपड़ा ने फिल्म निर्माण का पहला पाठ अपने अग्रज बी. आर. चोपड़ा से ही पढ़ा. यह भी मजेदार बात है कि यश चोपड़ा ने अपने निर्देशकीय व्यक्तित्व अपने भाई के पद चिह्नों पर चलकर नहीं गढ़ा जबकि ऐसा होना स्वाभाविक होता.
अपने समय के हिसाब से इस फिल्म का विषय क्रांतिकारी था. यह शादी से पूर्व मां बन गई युवती की कहानी थी जो सामजिक मर्यादा की विडम्बना के कारण अपने बेटे को फेक दिया.
एक ईमानदार मुसलमान पाल-पोसकर उसे बड़ा करता है. आज परिस्थितियां बहुत बदल चुकी हैं और विषय कुछ ऐसा महत्वपूर्ण प्रतीत नहीं होता पर 1959 में ऐसी सोच पर मानो तूफान ही खड़ा हो गया था. पर जनता ने इस फिल्म को बेहद पसंद किया और यह अपने समय की सबसे कामयाब फिल्म साबित हुई.
‘ हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा’ तो आज भी सांप्रदायिक सद्भाव की मिसाल बना हुआ है. ‘ तेरे प्यार का आसरा चाहता हूँ, वफ़ा कर रहा हूँ वफ़ा चाहता हूँ’ जैसा रोमांचक खुलापन तब तक हिंदी सिनेमा के दर्शकों ने नहीं पाया. राजेन्द्र कुमार, माला सिन्हा, अशोक कुमार, मनमोहन कृष्ण, राधाकिसन, जीवन और लीला चिटनिस प्रमुख कलाकार थे. फिल्म में गीतकार साहिर और संगीतकार एन. दत्ता थे.
हालांकि एन. दत्ता. बहुत बड़े संगीतकार नहीं रहे, पर उन्होंने अनेक फिल्मों में अत्यंत मधुर संगीत दिया. बी. आर. फिल्म्स की आरंभिक फिल्मों में उनका संगीत अत्यंत मधुर था और उनके द्वारा तैयार की गई धुनों ने बहुत लोकप्रियता पाई थी.
सबसे महत्वपूर्ण बात यही होती है कि किसे कब कितना अवसर प्राप्त होता है. अनेक प्रतिभाशाली लोग उचित अवसर न मिलने के कारण शिखर तक नहीं पहुंच पाते. यद्यपि इनमें प्रतिभा की कोई कमी नहीं थी.
वसुधा के हिन्दी सिनेमा बीसवीं से इक्कसवीं सदी के आधार पर.
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