गंगा नदी का हमारे देश में अध्यात्मिक महत्त्व भी है, हिन्दू धर्मग्रंथों में इसे देवी का दर्जा प्राप्त है. कई वजहों से गंगा लगातार प्रदूषित होती चली गयी और अब मैदानी इलाकों में इसका पानी नहाने योग्य भी नहीं रह गया है.
विगत कुछ सालों से गंगा को लेकर जमकर राजनीति भी होती रही है. वर्तमान भाजपा सरकार ने गंगा की स्वच्छता को अपना प्रमुख चुनावी मुद्दा भी बनाया है. इसके बावजूद गंगा की स्थिति बदतर होती ही जा रही है.
अंतर्राष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन ‘वर्ल्ड वाइड फण्ड’ ने अपनी हालिया रिपोर्ट में इसे दुनिया की संकटग्रस्त नदियों में एक बताया है. इसमें बताया गया है कि भारत की सभी नदियों की तरह गंगा लगातार पहले बाढ़ और फिर सूखे की स्थिति से जूझ रही है. जो इस नदी के अस्तित्व के लिए खतरनाक है.
गंगा के प्रदूषण के स्तर को लेकर विभिन्न चिंताजनक रिपोर्टें आती रही हैं. रिपोर्टों के मुताबिक गंगा में ऋषिकेश से प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है. गंगा किनारे लगातार बस रही कालोनियों में से कई में शौचालय तक नहीं हैं, यह गंदगी गंगा में ही मिल रही है, ऋषिकेश से लेकर कोलकाता तक गंगा के किनारे लगे कई कारखानों की गन्दगी को सीधे गंगा में डाला जा रहा है. ऐसे कई कारणों से गंगा का प्रदूषण स्स्तरलगातार बढ़ता ही जा रहा है.
देश की सबसे पवित्र मानी जाने वाली गंगा का उद्गम गोमुख है. यह गंगोत्री हिमनद से निकलती है. गंगा उत्तराखण्ड से लेकर बंगाल की खाड़ी तक विशाल भू-भाग को सींचती है. गंगा भारत में लाखों वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ भूभाग की सृजक है. गंगा की चिंताजनक हालत अच्छे भविष्य का संकेत नहीं है. असके अस्तित्व के खतरे में पड़ जाने से देश के बड़े हिस्से में पेयजल का संकट उत्पन्न हो सकता है. विशाल भूभाग के बंजर हो जाने से देश में खाद्यान्न संकट भी बढ़ सकता है. इन रिपोर्टों से फिलहाल सरकार की नमामि गंगे परियोजना भी संदेह के घेरे में आती दिख रही है. इन गंगा सुधार योजनाओं में करोड़ों रुपया फूंके जाने के बावजूद इसकी हालत में कोई सुधार होता नहीं दीखता.
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