भले ही आज भारत में सबसे लोकप्रिय होने वाले चुटकुले पत्नी प्रताड़ित पतियों के हों, भले ही आज संसद में बैठे पुरुष, महिला आयोग की तर्ज पर एक पुरुष आयोग की मांग कर रहे हों पर हकीकत यह है कि वर्तमान में भारत की लोकसभा में महिलाओं का संख्या प्रतिशत 11.8 है. भारत की संविधान सभा में भाग लेने वाली पंद्रह की पंद्रह महिलाओं ने संसद में महिलाओं के लिये सीटों के आरक्षित किये जाने का एक आवाज में विरोध किया था. उन्हें उम्मीद थी कि वे बिना किसी विशेष अधिकार के अपना प्रतिनिधित्व पा लेंगी. वास्तविकता यह है कि महिलायें इतिहास के पन्नों से हमेशा गायब रही हैं.
फिर चाहे वो वैदिक युग हो, मध्यकाल हो या फिर आधुनिक काल महिलायें हर जगह इतिहास के पन्नों से गायब रही हैं. किसी ऐतिहासिक पुरुष के नाम में तू या आप की गलती हो जाये तो देश में हडताल देश बंद जैसे हालात हो जाते हैं लेकिन महिलाओं का नाम ही दर्ज नहीं है इस पर कोई सवाल करने वाला तक नहीं. जहाँ महिलाओं का नाम दर्ज हुआ वहां पुरुषों की तूती बोली.
वैदिककाल और मध्यकाल के विषय में एक बार के लिये मान भी लिया जाए की बात पुरानी थी भले ही पुरुषों के सबंध में यह पूरा हिस्सा दंगे तक का स्कोप रखता हो. लेकिन आधुनिक काल में भी किसी ने महिलाओं के योगदान को विशेष नहीं समझा. दुखद यह है कि सामान्य रुप से इतिहासकारों ने योगदान को छुपाने का पूर्ण प्रयास किया.
ब्रिटिश वर्चस्व के खिलाफ हुये 40 बड़े विद्रोहों में महिलाओं के नाम नदारद हैं. फिर चाहे वो कोल विद्रोह हो, खारवार विद्रोह हो, नील विद्रोह हो, संथाल विद्रोह हो,विरसा मुंडा विद्रोह हो, महिलाओं की बिना भागीदारी के प्रत्येक विद्रोह अधूरा है. नील विद्रोह में शामिल महिलाओं पर ब्रिटिश अत्याचार का जानकारी प्रायः सभी इतिहास की किताबों में मिल जायेंगी लेकिन ऐसी गिनती की किताबें हैं जो नील विद्रोह में महिलाओं द्वारा थालीयों को बजाकर हमलावरों को डराने व मजबूत बेत के बने हथियारों के प्रयोग की जानकारी देती हैं. ऐसे कितने लोग हैं जो 1857 की क्रांति की चिंगारी फैलाने में मंगल पांडे के अलावा मातादीन और उसकी पत्नी लाजो का नाम जानते हैं?
अधिकांश ऐतिहासिक किताबों में रानियों का गौरवपूर्ण नाम मिल जाता है जिसने पिता पुत्र या पति की खातिर युद्ध लड़े. लेकिन वास्तविकता में मुख्य भूमिका में रहने वाली हजारों गरीब महिलओ को भुला दिया जाता है. कित्तूर की रानी चेन्नमा हो झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई हो या लखनऊ की बेगम हजरत महल हो सभी की सेना में हजारों वीर महिलायें थी. न लक्ष्मीबाई की हमश्क्ल झलकारी बाई को इतिहास के पन्नों में स्थान दिया गया न बेगम हजरत के साथ लड़ने पासी महिला जगरानी पासी थी, अंग्रेजों को उसके मरने के बाद पता चला की वह पुरुष नहीं महिला है. 1857 की क्रांति की चिंगारी को हवा देने वाली मुज्जफ्फरनगर की महाबीरी देवी और उनकी टोली की 23 अन्य महिलाओँ का उल्लेख तक किसी ऐतिहासिक पुस्तक में देखने को नहीं मिला. अत्यधिक दबाव के चलते नागा हीरो रानी गडियालो का नाम एनसीआरटी की इतिहास की किताब में केवल दर्ज किया गया लेकिन वर्णन अभी भी नहीं.
आधुनिक काल के इतिहास में गाँधी के आगमन पश्चात महिलाओं की भागीदारी में तीव्र वृध्दि का उल्लेख ऐतिहासिक किताबों में मिलता है लेकिन हमारा दुर्भाग्य ये है कि इस दौर में महिलाओं के स्वतंत्रता आँदोलन में भागीदारी से अधिक लोगों की दिलचस्पी गाँधीजी और महिलाओं से उनके संबंध के विषय में हैं. बाकी भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से प्रभावित महिलाओं के नाम हों या सुभाष चंद्र बोस की लक्ष्मीबाई रेजिमेंट की हजारों महिलाओं के नाम इतिहास में खोजने पर भी मुश्किल से मिलेंगे.
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