भारत में 80 प्रतिशत प्लास्टिक को बिना रीसाइकल किये ही फेंक दिया जाता है. आज हमारे घरों में रसोई घर से लेकर पाखाने तक प्लास्टिक घुसा हुआ है. ऐसे में एक शहर जहां पर्यटन अधिक होता हो वहां प्लास्टिक और बड़ी समस्या बन जाती है.
मसूरी के पास बंगलो की कांडी नाम के गांव के लोगों ने 15000 प्लास्टिक की बोतलों से बनाई है उम्मीद की दीवार. हिन्दुस्तान टाइम्स की एक ख़बर के अनुसार यह दीवार 12 फीट ऊंची और 1500 फीट लम्बी है.
सारी उँगलियाँ समेटों तो मुट्ठी बन जाती हैं,
यहीं ताकत की निशानी कहलाती हैं. #BadlavKiDeewar #WallofHope #Comingsoon #Mussoorie #visiblechange #plasticupcycling pic.twitter.com/LLrpypXDbp— Hilldaari (@hilldaari) June 18, 2019
दीवार को म्यूजियम ऑफ़ गोवा के फाउंडर सुबोध केरकर ने किया है. मसूरी के स्कूल और कॉलेज के 50 बच्चों और कैम्पटी फॉल के नजदीक स्थित बंगलो की कांडी गांव की महिलाओं ने इस दीवार को बनाने में सहायता की. दीवार के निर्माण के लिये प्रयोग में लाई गयी सभी प्लास्टिक को बोतलें आस-पास के क्षेत्रों से ही उठाई गई हैं.
इस दीवार के माध्यम से कचरे के जिम्मेदार प्रबंधन का एक मजबूत सन्देश दिया गया है. इस संबंध में गांव की सरपंच रीना रंगाद का कहना है कि इस दीवार के माध्यम से यहां न केवल पर्यटकों की संख्या बढ़ेगी बल्कि उन तक प्लास्टिक के रियूज का एक सन्देश भी जायेगा. दीवार का उद्घाटन मसूरी के पास बंगला की कंडी गांव की रहने वाली ग्राम प्रधान रीना रंगल ने किया
Pictures from a glorious ceremony | Launch of Wall of Hope on 18th June 2019! #BungalowkiKandi #Mussoorie #Wallofhope #wastemanagement #Hilldaari pic.twitter.com/occPITv9hR
— Hilldaari (@hilldaari) June 18, 2019
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस उम्मीद की दीवार से हमारा गांव और सुंदर दिख रहा है जब लोग इस दीवार को देखने आयेंगे तो उन्हें प्लास्टिक के रचनात्मक पुनः उपयोग के बारे में भी सीखने को मिलेगा.
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