उत्तराखण्ड से जुड़ा एक मामला आजकल विभिन्न लॉ पोर्टलों के माध्यम से राज्य के सोशल मीडिया तक पहुंच चर्चा में बना हुआ है. उत्तर प्रदेश निवासी निशांत रोहल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी कि उत्तराखण्ड के आइपीएस अमित श्रीवास्तव व उनके सहयोगियों द्वारा भारी भ्रष्टाचार और मोहन सिंह नाम के एक शख्स की हत्या किये जाने की जांच की जाये. याचिकाकर्ता ने बाद में याचिका वापस लेने का प्रयास किया. न्यायालय द्वारा इनकार के बाद यह मामला सुर्ख़ियों में आया. एक भूमि घोटाले से जुड़े इस मामले को समझने की कोशिश करते हैं. (Uttarakhand Land Scam IPS Connection)
दिल्ली निवासी ने मूलनिवासी होने के फर्जी दस्तावेज लगाकर खरीदा पहाड़
साल 2011 में आशा यादव और चन्द्रमोहन सेठी के खिलाफ अल्मोड़ा प्रशासन द्वारा धोखाधड़ी, जालसाजी, फर्ज़ी दस्तावेज प्रस्तुत करने आदि धाराओं के तहत मुकदमा कायम किया गया. आरोप था कि फर्जी भू-अभिलेखों का इस्तेमाल कर आशा यादव ने अल्मोड़ा में करीब सौ नाली जमीन चन्द्रमोहन सेठी से खरीदी. आशा यादव उत्तराखण्ड की मूल निवासी न होने की वजह से कृषि भूमि के इतने बड़े रकबे को खरीदने की पात्रता नहीं रखती थीं. आशा यादव ने राज्य गठन से पहले से मुखानी, हल्द्वानी की निवासी होने का दावा करते हुए जमीन खरीदने के लिए फर्जी खतौनी प्रस्तुत की थी. जांच में पाया गया कि प्रस्तुत खतौनी में किसी दीगर व्यक्ति की जगह आशा यादव का नाम डालकर फर्जी खतौनी बनाकर राजस्व विभाग में प्रस्तुत की गयी.
मामला कोर्ट पहुंचा तो की हाई कोर्ट को झांसा देने की कोशिश
यह मुकदमा अल्मोड़ा कोर्ट में सिविल जज (सीडी) अभिषेक कुमार श्रीवास्तव की बेंच पर विचाराधीन था. इस दौरान जानकारी मिली कि सह अभियुक्त चन्द्रमोहन सेठी भारत में नहीं है वे कनाडा जा चुके हैं. सो 2021 में न्यायाधीश ने मुक़दमे की मूल फ़ाइल से सेठी की पत्रावली अलग करने के आदेश दिए, ताकि मुख्य अभियुक्त के खिलाफ मुकदमा सुचारू किया जा सके. दोनों पत्रावलियों को अलग कर कोर्ट द्वारा आशा यादव के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया गया.
इसके बाद आशा यादव की पत्रावली अलग कर उनके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी किये जाने को आधार बनाकर दिल्ली निवासी कुसुम चौधरी द्वारा उच्च न्यायालय में सिविल जज अभिषेक श्रीवास्तव के खिलाफ शिकायत की गयी कि न्यायाधीश को सपरिवार दिल्ली में सेठी के साथ घूमता पाया गया है. इसके बाद ही जज द्वारा सेठी और आशा यादव की फाइलें अलग कर आशा यादव के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी कर दिया. न्यायाधीश पर भ्रष्टाचार का संगीन आरोप लगाने वाले इस पत्र पर फौरी कार्रवाई करते हुए हाई कोर्ट द्वारा अभिषेक श्रीवास्तव को निलंबित कर देहरादून भेज दिया गया. साथ ही कुसुम चौधरी द्वारा लगाये गए आरोपों की जांच हाई कोर्ट के विजिलेंस विभाग को सौंप दी गयी.
नौकरानी के कंधे पर रखी बंदूक
विजिलेंस ने जज के खिलाफ लगाये गए भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच करते हुए पाया कि वे झूठे और निराधार हैं. जांच में यह भी सामने आया कि शिकायतकर्ता कुसुम चौधरी और कोई नहीं आशा यादव की ही एक अदना सा कर्मचारी है. कुसुम चौधरी मामूली पढ़ी-लिखी हैं जबकि उच्च न्यायालय को भेजा गया पत्र सधी हुई अंग्रेजी में लिखा गया था. पत्र की मूल प्रति को आशा यादव द्वारा संचालित अल्मोड़ा स्थित एनजीओ के कार्यालय के कम्यूटर में तैयार करने के भी साक्ष्य मिले. इसी तरह के कई अन्य साक्ष्यों के आधार पर पाया गया कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन खरीद मामले की अभियुक्त आशा यादव और उनके पति एवी प्रेमनाथ ने कुसुम चौधरी के साथ मिलकर हाई कोर्ट, नैनीताल में झूठी शिकायत करने का यह षड्यंत्र रचा है. आशा यादव उर्फ़ आशा प्रेमनाथ के पति दिल्ली सरकार के प्रशासनिक अधिकारी हैं और इस दौरान विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर बने रहे हैं.
हाई कोर्ट ने सतर्कता विभाग को दिया रपट दर्ज करने का आदेश
जांच सामने आने पर हाई कोर्ट ने एसपी विजिलेंस अमित श्रीवास्तव के माध्यम से सतर्कता विभाग हल्द्वानी में अभियुक्तों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए. गौरतलब है कि इन अमित श्रीवास्तव का न्यायाधीश अभिषेक श्रीवास्तव से कोई सम्बन्ध नहीं है. मार्च 2021 में सतर्कता विभाग हल्द्वानी में धोखाधड़ी, जालसाजी, दस्तावेजों की कूट रचना व अपराधिक षड्यंत्र रचने आदि धाराओं में मुकदमा कायम कर जांच शुरू कर दी गयी. जांच में पाया गया कि कुसुम चौहान के साथ मिलकर आशा यादव और एवी प्रेमनाथ ने एक षड्यंत्र के तहत हाई कोर्ट में शिकायत की. इस जांच में यह भी पाया कि [email protected] की जिस मेल आईडी से जज अभिषेक कुमार श्रीवास्तव के बारे में उत्तराखण्ड के विभिन्न न्यायिक अधिकारियों को भ्रामक सूचनाएं भेजी गयीं वह एवी प्रेमनाथ द्वारा बनाया व संचालित था. अभियुक्तों के खिलाफ कई महत्वपूर्ण साक्ष्य इकठ्ठा करने के बाद आशा यादव, एवी प्रेमनाथ और कुसुम चौधरी को मामले में अपने बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया. तीन बार नोटिस भेजे जाने के बाद भी जब वे जांच के लिए उपस्थित नहीं हुए तो सीजेएम कोर्ट ने उनके गैरजमानती वारंट जारी कर दिए. गिरफ्तारी से बचने के लिए आशा यादव और एवी प्रेमनाथ ने हाई कोर्ट से स्टे ले लिया, कुसुम चौधरी को स्टे नहीं मिला और मार्च 2022 को कुसुम को गिरफ्तार कर लिया गया जो अब जमानत पर हैं.
अब सतर्कता विभाग को घेरने की तैयारी
अपने खिलाफ जांच करने वालों के विरुद्ध झूठी अपराधिक साजिशें करने का अभियुक्तों का सिलसिला अब भी न रुका. जुलाई-अगस्त 2021 में अमित श्रीवास्तव के खिलाफ किसी मोहन सिंह द्वारा डायरेक्टर, सीबीआई तथा सचिव, केन्द्रीय सतर्कता आयोग में भ्रष्टाचार की शिकायत दर्ज करवाई गयी. बताया गया कि उत्तराखण्ड के आईपीएस अफसर एक भ्रष्ट अधिकारी हैं जिन्होंने अपने सहयोगियों – अपूर्व जोशी और गीतिका क्वीरा और सब इंस्पेक्टर श्याम सिंह रावत – के माध्यम से सौ करोड़ से ज्यादा के बैंक व अन्य घोटाले किये हैं. इनमें यूनियन बैंक और सिंडिकेट बैंक के भ्रष्ट अफ़सरों, फ़र्ज़ी सप्लायर्स, ऑडिटर्स, फेब्रीकेटेड बुक्स एंड डॉक्यूमेंट्स, झूठे और जाली काग़ज़ात, टैक्स इनवॉइस, फ़र्ज़ी बिल और रिसिप्ट, चार्टेड अकाउंटेंट के साथ मिलीभगत कर करोड़ों रुपए की धोखाधड़ी के आरोप लगाये गए. आरोप है कि इस तरह 31 करोड़ रुपए बिना ब्याज के इन बैंकों से लेकर अपनी बेनामी कंपनियों में डमी डायरेक्टरों, बैंक अफ़सरों की मदद से लिए और फर्जीवाड़ा कर 100 करोड़ रुपए के एक्सपोर्ट इंसेंटिवस सहित करोड़ों की आय से अधिक संपत्ति अर्जित की गई.
अब तक की जानकारी के अनुसार शिकायतकर्ता मोहन सिंह न आरटीआई कार्यकर्ता थे, जैसा कि बताया जा रहा है. बल्कि
मोहन और निशांत के नाम से एवी प्रेमनाथ द्वारा ही ये शिकायतें की जा रही हैं जैसा कि कुसुम चौधरी के जरिए पहले की गयी थीं. इनका मकसद विजिलेंस विभाग पर उसी तरह का दबाव बनाना है जैसा कि पहले कइयों पर बनाने की साजिश की जा चुकी हैं.
उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका वापस लेने की कोशिश
इसके बाद उत्तर प्रदेश निवासी निशांत रोहल ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर करते हुए कहा गया कि अगस्त 2021 के आखिर में ही अमित श्रीवास्तव व उनके सहयोगियों द्वारा उनके भ्रष्टाचार की जांच की मांग करने वाले मोहन सिंह की हत्या करा दी गयी और उसे सड़क दुर्घटना का रूप दे दिया गया. इस याचिका में निशांत रोहल ने मोहन सिंह की हत्या की जांच के साथ अमित श्रीवास्तव, अपूर्व जोशी और गीतिका क्वीरा के घोटालों की जांच के लिए एसआईटी गठित करने और विभिन्न जांच एजेंसियों को निदेशित करने की भी मांग की.
जमीनों की लूट से हुई मामले की शुरुआत
क्या इन आरोपों को आशा यादव, एवी प्रेमनाथ द्वारा पहले न्यायाधीश अभिषेक श्रीवास्तव पर लगाये गए आरोपों की कड़ी में ही देखा जाना चाहिए? लगता यही है. तब अपूर्व जोशी और गीतिका क्वीरा को अमित श्रीवास्तव के साथ जोड़े जाने का मामला भी साफ होता है, जो एक-दूसरे को जानते तक नहीं.
दरअसल इन साजिशों की शुरुआत होती ही है लेखक पत्रकार अपूर्व जोशी के संपादन में निकाले जाने वाले साप्ताहिक अखबार ‘संडे पोस्ट’ में प्रकाशित रिपोर्टों के सामने आने से.
20 जून 2010 ‘संडे पोस्ट’ के अंक में ‘जमीन की लूट’ शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई. इसमें बताया गया कि उत्तराखण्ड के अल्मोड़ा जिले की मझखाली तहसील के डांडा कांडा गांव में ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ के नाम पर स्थानीय लोगों की पुश्तों से चली आ रही जमीन को हथियाने के प्रयास किये जा रहे हैं. रपट में फाउंडेशन द्वारा स्कूल के नाम पर आलीशान भवन निर्माण, बेनाप भूमि पर कब्ज़ा, वन विभाग की जमीन पर अवैध सड़क निर्माण, पेड़ों के कटान और उत्तराखण्ड के मूलनिवासियों को उनकी जमीन से बेदखल करने पर अपनी चिंता जाहिर की. ‘संडे पोस्ट’ के यू ट्यूब चैनल में सम्पादक अपूर्व जोशी बताते हैं कि इसी गांव के काश्तकार बिशन सिंह अधिकारी को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा आवंटित जमीन का आवंटन निरस्त कर भी ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ के नाम जमीन आवंटित कर दी गयी. अधिकारी इस जमीन पर खेती, बागवानी कर रही दूसरी पीढ़ी थे. खबर में यह भी बताया गया कि एवी प्रेमनाथ और उनकी पत्नी द्वारा अपने नौकर गोपाल सिंह बिष्ट के नाम से 150 नाली जमीन जमीन खरीदी गयी. इस बारे में विस्तार से जानने के लिए अपूर्व जोशी के इस वीडियो को देखें:
बहरहाल बिशन सिंह अधिकारी अपनी पुश्तैनी जमीन से बेदखली को विभिन्न सरकारी विभागों में मय कागज़-पत्र के चुनौती देते हुए घूमने लगे लिहाजा जमीन की खुली लूट के आड़े आने का सबसे पहला शिकार वही बने. उनके नाम से एक अंग्रेजी दैनिक के दिल्ली, एनसीआर संस्करण में डांडा कांडा की अपनी जमीन बेचने का विज्ञापन छपवाया गया. विज्ञापन पर उनका फोन नंबर भी दिया गया. अधिकारी ने अखबार को अपने वकील के माध्यम से नोटिस भेजा ही था कि उन्हें दिल्ली के उत्तम नगर थाने से आये सिपाही ने उन्हें सूचना दी कि वे अखबार में विज्ञापन देने के बाद अपनी जमीन का टुकड़ा बेच चुके हैं और अब क्रेता को उस जमीन पर पैर नहीं रखने दे रहे हैं. अधिकारी के खिलाफ दिल्ली में बाकायदा धोखाधडी का मुकदमा भी चलने लगा. बस यहां से शुरुआत हुई. जल्द ही बिशन सिंह अधिकारी ने खुद को चन्द्रमोहन सेठी की पत्नी सुषमा सेठी द्वारा कायम छेड़छाड़, मारपीट के मुक़दमे में फंसा हुआ पाया. फिर बिशन सिंह अधिकारी को एससी, एसटी एक्ट में भी फंसा दिया गया और वे गिरफ्तार भी हुए, रपट लिखाने वाले इस एनजीओ के मामूली कर्मचारी थे.
काश्तकार, पत्रकार, सम्पादक के खिलाफ फर्जी शिकायतों का सिलसिला
‘संडे पोस्ट’ ने 1 अगस्त 2010 के अंक में अधिकारी के उत्पीड़न पर खबर छापी तो संवाददाता आकाश नागर को भी मुक़दमे में फंसा दिया गया. इस तरह नागर इस सनक के अगले शिकार बने. इस अंक के निकलने से पहले एवी प्रेमनाथ स्वयं अपूर्व जोशी से अपने बारे में भ्रामक खबरें न प्रकाशित करने का विनम्र अनुरोध कर चुके थे. खबरें तथ्यात्मक थीं तो आगे भी प्रकाशित हुई सो सम्पादक अपूर्व जोशी अगले शिकार बने. उनके बारे में छुटभैय्या अखबारों में अनर्गल खबरें प्रकाशित करवाने से लेकर पोस्टर लगवाने तक का काम किया गया. अपूर्व जोशी को परेशान करने के लिए विभिन्न एजेंसियों के पास फर्जी शिकायतें भेजी गयीं. इनमें उन्हें ड्रग डीलर, नकली नोटों का व्यापारी, सीरियल रेपिस्ट, हत्यारोपी तक बताया गया. ये शिकायतें प्रायः गुमनाम व्यक्तियों द्वारा की गयी होती थीं जिनकी विवेचना के लिए एजेंसियों के पास रसूखदार लोगों की सिफारिशें गयी होतीं. लिहाजा जांच के नाम पर अपूर्व जोशी पर मानसिक दबाव बनाया जाता.
इसके बाद ‘संडे पोस्ट’ ने प्रकाशित किया वह समाचार 29 अगस्त 2010 को प्रकाशित समाचार में बताया गया कि आशा यादव नाम की महिला ने सौ नाली जमीन मैणी, हवालबाग तहसील में खरीदी है ये आशा यादव और कोई नहीं बल्कि ‘प्लीजेंट वैली फाउंडेशन’ की संचालिका आशा प्रेमनाथ हैं जो कि एवी प्रेमनाथ की पत्नी हैं. इन आशा यादव ने फर्जी खसरा, खतौनी के जरिये खुद को उत्तराखण्ड का मूलनिवासी बताते हुए यह जमीन खरीदी है. समाचार में प्रस्तुत तथ्य सही पाए गए और शासन ने इस जमीन की खरीद को ख़ारिज कर उसके अधिग्रहण की प्रक्रिया शुरू कर दी.
जांच में पाया गया कि इस जमीन की खरीद के लिए प्रस्तुत पता व खतौनी दोनों गलत हैं. कि मूल खतौनी में छेड़छाड़ कर भूमिधर का नाम हटाकर आशा यादव का नाम लिख दिया गया है. आशा यादव पूरी कार्रवाई के दौरान प्रकट नहीं हुईं तो शासन द्वारा उपयुक्त कार्रवाई करते हुए 2011 में उपरोक्त भूमि को सरकार में निहित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी.
आशा यादव पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर जमीन खुर्द-बुर्द करने का मुकदमा
इसी आधार पर आशा यादव पर धोखाधड़ी और फर्जीबाड़े का केस भी दर्ज कर लिया गया. लगभग 8-10 साल बाद जनवरी 2021 में आशा यादव और उनको जमीन बेचने वाले चन्द्रमोहन सेठी की फ़ाइल को इस आधार पर अलग किया गया कि सेठी फिलहाल कनाडा में हैं और आशा यादव के खिलाफ गैर जमानती वारंट भी जारी कर दिया गया.
इसके बाद कुसुम चौधरी के नाम से न्यायालय को गुमराह करने की कोशिश की गयी. न्यायाधीश अभिषेक श्रीवास्तव के खिलाफ हाई कोर्ट को झांसे में लेने की कोशिश का विजिलेंस विभाग द्वारा पर्दाफाश किये जाने के बाद अब विजिलेंस के ही जाँच अधिकारियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया गया है.
इस तरह बिशन सिंह अधिकारी, अपूर्व जोशी, आकाश नागर, जज अभिषेक श्रीवास्तव के खिलाफ लगातार षड्यंत्र की यह मुहीम आजकल उत्तराखण्ड के सतर्कता विभाग पर केंद्रित हो गयी है. जिस षड्यंत्र की पूरी कहानी शुरू में ही कह दी गयी है.
रमन राघव 2.0 से प्रभावित लगते हैं साजिशकर्ता
इस मामले के अभियुक्त नवाज के किरदार से प्रेरित लगते हैं. फिल्म में नवाजुद्दीन का किरदार सड़क पर काली-सफेद पट्टियों पर चलने का आदी होता है. वह काले पर चलता है और सफेद पट्टी को लांघ जाता है. जहां काली सड़क सामने आती है वहां वह अपने दिमाग़ से सफ़ेद पट्टियाँ बना लेता है. उसका मानना है कि भगवान से उसे ऐसा करने की शक्ति मिली है. (Uttarakhand Land Scam IPS Connection)
-सुधीर कुमार
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