इस बात पर कोई शक नहीं की इस देश के सबसे काबिल अर्थशास्त्रियों में एक नाम पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का है. देश की आम जनता के अलावा भारतीय राजनेता भी पार्टी लाइन से हटकर भी डॉ. मनमोहन की खुले दिल से प्रशंसा करते हैं. संघर्षों से भरे डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन की कई सारी रोचक बातें हैं जिनके बारे में आज भी बहुत कम लोग जानते हैं.
(Unknown Facts About Dr. Manmohan Singh)
भारत विभाजन से पूर्व पेशावर में रहने वाले डॉ. मनमोहन सिंह भारत की उन महान हस्तियों में शामिल हैं जिन्होंने विभाजन का दंश झेला. विभाजन के समय डॉ. मनमोहन सिंह की उम्र महज 14 साल की थी. पेशावर में उनके पिता एक प्राइवेट कम्पनी में क्लर्क थे.
विभाजन के दंगों में डॉ. मनमोहन सिंह के दादाजी की भी हत्या की गई थी. घटना को याद करते हुए डॉ. सिंह ने कहा है कि हमारे पिताजी की चाचा के चार शब्दों का एक टेलीग्राम मिला जिसमें लिखा था – फ़ादर किल्ड. मदर सेफ.
इस दिनों भारत के विभाजन पर राष्ट्रीय स्तर पर बातचीत चल रही थी. डॉ. मनमोहन सिंह के पिता विभाजन से दो-तीन महीने पहले ही उत्तर प्रदेश के हल्द्वानी शहर में बसने के विषय में सोच लिया था. हल्द्वानी में उनके पिता के व्यापार के चलते कुछ संबंध थे उन्हें उम्मीद थी कि वे लोग उन्हें यहां अस्थाई रुप से बसने में मदद करेंगे.
मई-जून के मध्य डॉ. मनमोहन सिंह का परिवार हल्द्वानी के लिये निकल पड़ा. उस समय हल्द्वानी उत्तर प्रदेश का हिस्सा हुआ करता था. अपनी इस यात्रा के बारे में डॉ. सिंह कहते हैं कि हम ट्रेन से लाहौर, अमृतसर, सहरानपुर, बरेली जैसे बड़े शहरों से होते हुये हल्द्वानी पहुंचे.
(Unknown Facts About Dr. Manmohan Singh)
डॉ. सिंह की यह यात्रा विभाजन की तारीख से कुछ महीनों पहले की थी इसलिये वह बिना किसी ख़ासी परेशानी के हल्द्वानी पहुंच गये थे. उनके पिता ने अपने परिवार के लिये हल्द्वानी में रहने की अस्थाई व्यस्था की और ख़ुद फिर से नौकरी के लिये पेशावर लौट गये.
दिसम्बर 1947 तक का समय डॉ. सिंह के लिये काफ़ी कठिन रहा. वह कहते हैं कि उन्हें नहीं पता था की उनके पिता कहाँ और कैसे हैं, देश में हो रहे भयानक दंगों के बीच वह हर सुबह काठगोदाम रेलवे स्टेशन इस उम्मीद से जाकर बैठ जाते की शायद आज आने वाली ट्रेन में उनके पिता भी हों.
अंत में एक दिन डॉ. सिंह के पिता शरणार्थियों के एक काफ़िले के साथ किसी तरह भारत लौट आये. हल्द्वानी आकर उन्होंने परिवार के साथ भारत में किसी नये काम की तलाश की ख़ोज शुरु की और अमृतसर जाकर एक किराने की दुकान शुरु की.
(Unknown Facts About Dr. Manmohan Singh)
संदर्भ: मल्लिका अहलूवालिया की किताब डिवाइडे बाई पार्टेशन यूनाटेड रिसाईलेंस
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