उत्तराखंड सरकार पंचायतीराज एक्ट में यह प्रावधान करने जा रही है. पंचायत चुनाव लड़ने के लिए अब पढ़ा-लिखा होना जरूरी होगा. अगले साल होने प्रस्तावित पंचायत चुनावों में दो से अधिक बच्चों वाले लोग चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. राज्य सरकार नगर निकायों की भांति पंचायतों में भी यह प्रावधान करने जा रही है. हरियाणा और राजस्थान की तर्ज पर पंचायत प्रतिनिधियों के लिए न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता का भी निर्धारण किया जाएगा.
राज्य में अगले साल पंचायत चुनाव प्रस्तावित हैं. इसी क्रम त्रिस्तरीय पंचायतों के लिए 2016 में बने एक्ट की कुछ व्यवस्थाओं में सरकार ने संशोधन पर जोर दिया. सचिवालय में समीक्षा बैठक के बाद विभागीय मंत्री अरविंद पांडेय ने कहा कि ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत में वार्ड सदस्य से लेकर प्रधान, बीडीसी, जिपं अध्यक्ष पद के लिए शैक्षिक योग्यता का निर्धारण किया जाएगा.
वार्ड सदस्य से लेकर प्रधान, बीडीसी, जिपं अध्यक्ष पद के लिए शैक्षिक योग्यता का क्रम क्रमशः आठवीं, दसवीं, इंटरमीडिएट व स्नातक शैक्षिक योग्यता निर्धारित की जाएगी. इसके लिए भी मसौदा तैयार करने के निर्देश दिए गए हैं. इस समय देश में हरियाणा में अब पंचायत का चुनाव लड़ने के लिए कम से कम दसवीं पास होना अनिवार्य है. महिला उम्मीदवार के लिए ये मापदंड आठंवी क्लास का है और दलित उम्मीदवार के लिए पांचवी पास होना जरूरी है.
इस समय प्रदेश में ग्राम पंचायत 7958,क्षेत्र पंचायत 95,जिला पंचायत 13 है. अभी तक प्रावधान के हिसाब से पंचायतीराज एक्ट में अभी तक पंचायत चुनाव के लिए कोई शैक्षिक योग्यता की शर्त नहीं है. सिर्फ मतदाता सूची में नाम है तो पंचायत में किसी भी पद पर चुनाव लड़ सकते हैं.
गौरतलब है कि संविधान सभा में भी सांसदों, विधायकों की शिक्षा का सवाल उठा था. लेकिन शिक्षा पर अनुभव को तरजीह दी गई. जिसकी वजह से सांसदों, विधायकों के लिए शिक्षा का मानदंड नहीं है और चुनाव लड़ने के लिए शिक्षित होना जरूरी नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार का फैसला बरकरार रखते हुए कहा है कि शिक्षा ही सही गलत का फर्क करना सिखाती है. पंचायतों के बेहतर प्रशासन के लिए शैक्षिक योग्यता प्रासंगिक है. इसी के मद्देनजर अब उत्तराखंड सरकार भी इस दिशा में कार्य कर रही है.
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