बीती 30 सितंबर को प्रतुल जोशी जी से मुलाकात हुई. वे कथाकार पिता के प्रतिनिधि के तौर पर द्वितीय विद्यासागर नौटियाल सम्मान प्राप्त करने देहरादून आए हुए थे. पिता की नासाज हालत को लेकर वे खासे उद्विग्न लगे. बातचीत में उन्होंने बताया कि आईसीयू में भर्ती पिता के निर्देश पर मुझे यहां आना पड़ा, अन्यथा मैं उन्हें छोड़कर न आता. (Tribute to Shekhar Joshi)
उन्होंने पिता का काव्य-संग्रह ‘पार्वती’ भी भेंट किया. अनौपचारिक बातचीत में उन्होंने पिता के रचना-कर्म पर भी हल्की-फुल्की चर्चा की. पिता के ईमई सेवाकाल को उन्होंने सबसे ज्यादा याद किया. उनके मुताबिक पिता के अंदर का कथाकार वहीं निखरा. प्रगतिशीलता और संवेदना को उन्होंने जीवन-अनुभव से जज्ब किया था. वास्तविक जीवन की कथाओं ने वहीं जाकर आकार लिया. चाहे वो कामगारों पर केंद्रित कहानी ‘डांगरीवाला’ हो या महानगरीय जीवन की त्रासदी को व्यक्त करती कहानी ‘बदबू’. उनके लेखन में संगी-साथियों के बीच के जीवन-अनुभव अनायास ही प्रतिध्वनित होते रहे.
हालांकि ‘दाज्यू’ और ‘कोसी का घटवार’ उनकी सबसे चर्चित कहानियां रहीं. ‘कोसी का घटवार’ एक ऐसी प्रेम कहानी है, जिसमें प्रेम भी है और पीड़ा भी. पर्वतीय लोक जीवन पर आधारित एक शानदार कहानी. इस कहानी में अतीत और वर्तमान के मध्य लगातार आवाजाही होती रहती हैं.
बिंबों के मामले में इस कहानी का कोई जवाब नहीं. चक्की के पाट, गूल के पानी से खस्स खस्स की ध्वनि के साथ अत्यंत धीमी गति से चलता ऊपर का पाट, गुसाईं सिंह के सर के बालों और बाहों पर आटे की एक हल्की सी सफेद परत, एक से एक शानदार बिंब.
यह कहानी यूपीएससी के पाठ्यक्रम में भी थी. प्रसेनजित सिंह के मुताबिक घराट के पाटों के बीच आटे की जो परत पड़ी रहती है, वो गुसाई सिंह और लछिमा के अलगाव के पंद्रह सालों के कालखंड को दर्शाती है.
कहानी में ऐसी ध्वन्यात्मकता जो आपको कथा के ऐन भावलोक में पहुंचा देती है-
चक्की के निचले खंड में छिच्छर छिच्छर की आवाज के साथ पानी को काटती हुई मथानी. किट किट किट किट की आवाज करता अनाज गिराने का सूप, जो लगातार चक्की के पाट पर टकराता रहता है. घराट ऐसी जगह पर है, जहां मिहल के पेड़ की छाया छोड़कर कोई बैठने लायक स्थान नहीं.
नई कहानी में तरोताजापन भरनेवाले ऐसे संवेदनशील रचनाकार को भावभीनी श्रद्धांजलि. (Tribute to Shekhar Joshi)
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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