यह सुनकर एकबारगी यकीन नहीं हुआ कि मोहब्बत के शायर राहत इन्दौरी दुनिया से रुख़सत हो गये. तकरीबन आधी सदी तक दिलों पर राज़ करने वाले अत्यंत मुखर, प्रेमी और अभिभावक की भूमिका में प्राय: आगाह करने की जिम्मेदारी से लबरेज़ शायर का यूँ जाना अत्यंत दु:खद है.
(Tribute to Rahat Indori)
मैं आखिर कौन सा मौसम तुम्हारे नाम कर देता
यहाँ हर एक मौसम को
गुज़र जाने की जल्दी थी.
हिन्दुस्तान सहित करीब दुनिया के तमाम मुल्कों में उनकी गायी ग़ज़लों के अशआर लोगों की जुबान पर हमेशा ज़िन्दा रहेंगे.वे अपने समकालीन शायरों से कई मामले में उम्दा थे .लोकप्रियता का तो आलम यह है कि उनको सुन सुनकर हज़ारों युवा शायरी करने लगे.
एक जनवरी 1950 को रिकतउल्लाह कुरैशी के घर जन्में मझले बेटे राहत कुरैशी बचपन से ही शेर-ओ-शायरी के दिवाने थे. परिवार की माली हालत बहुत अच्छी नही थी, परंतु ईमान के पक्के राहत ग़ुरबत के तंग रास्तों से पसीने बहाकर आगे बढ़ते रहे.
मेरे अंदर से एक एक करके सब हो गये रुखसत
एक चीज़ बची है जिसे
ईमान कहते हैं.
शायरी करने के थोड़ा पहले उनकी पेंटिंग में रुचि थी. हाथ में बुरुश थामने के शुरुआती दिनों में वे इंदौर की कोर्ट वाली गली की दुकान में साइनबोर्ड पर लिखते थे. कालान्तर में उनकी बनायी कलाकृतियों को अच्छे दाम मिलने लगे. उनका मानना था कि शायरी और पेंटिंग दोनों जुड़वा बहनें हैं. इस्लामिया करीमिया कॉलेज से उन्होंने एम करने के बाद पीएच.डी की. कुछ साल वे देवी अहिल्याबाई वि. वि. इंदौर में उर्दू साहित्य के प्राध्यापक भी रहे.
(Tribute to Rahat Indori)
राहत की शाइरी की बुनियाद में एक तरफ मोहब्बत थी तो दूसरी तरफ सियासत की चालाकियों पर सामने- सामने जोरदार तंज़ कसना उन्हीं के अकेले के वश का काम था. उनमें गलत को गलत कहने के साहस की कमी नहीं थी.इस लिहाज से मुशायरे की दुनिया के चाँद का हमेशा के लिए ओझल हो तकलीफदेह है.
कश्ती तेरा नसीब चमकदार कर दिया
इस पार के थपेड़ों ने
उस पार कर दिया
दो ग़ज सही ये मेरी
मिल्कियत तो है
ऐ मौत तूने मुझे जमींदार कर दिया .
सपने को आँखों में ज़िंदा रखने का पाठ पठाते हुए राहत साहब कहते हैं….
ये ज़रूरी है कि आँखों का भरम काएम रक्खो.
नींद रक्खो न रक्खो ख्वाब मेयारी रक्खो..
प्राय: उनके साथ के शायर जब वे दिल्ली जाते तो कहते कि इंदौर छोड़कर दिल्ली में बस जाओ. यह अदब का मरकज़ है. तब राहत का जवाब होता
मेरी दिल्ली मेरा रानीपुरा है
गली में कुछ सुखनवर बैठते हैं.
पूँजीवाद के दुलारों की वे जमकर खबर लेते थे उनका मानना था कि पसीने के इंसाफ के साथ कुछ की पुरानी दुश्मनी है.
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई मांगे .
राहत साहब की नज़रों में मुशायरा अदब व तहजीब की नुमांदगी करने का आयोजन है. वहाँ मसखरेबाजी नहीं, तमीज़ और इल्म के खातिर आयें.
(Tribute to Rahat Indori)
इंदौरी साहब के दुनिया छोड़ जाने पर गीतकार गुलजार कहते हैं – कोई अभी अभी वह जगह खाली कर गया जो केवल मुशायरे की थी.उर्दू शायरी के आज के मुशायरे की महफिल राहत इंदौरी के बग़ैर पूरी नहीं है. एक वही थे जो इतनी बेहतरीन शायरी करते थे.
उन्होंने बहुत सी फिल्मों में गाने भी लिखे जिनमें मुन्नाभाई एमबीबीएस, खुद्दार, करीब, बेगम जान प्रमुख है. उनके गीतों को आवाज़ देने वाले गायकों में कुमार शानू, श्रेया घोसाल, सुनीधि चौहान, अनुराधा पौड़वाल,उदितनारायण और अरिजीत सिंह मुख्य हैं. आजीवन देश की खैरियत में अपनी खैरियत की तमन्ना पाले शायर इंदौरी की दिली – पाकीज़ाई देखने के काबिल है.
(Tribute to Rahat Indori)
मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे
हिन्दुस्तान लिख देना.
चार संतानों समीर, शिबली, फैज़ल और सतलज इंदौरी के पिता जनाब राहत इंदौरी सत्तर बरस की ऊमर जीकर 11अगस्त को दुनिया से जुदा हुए. उनकी कोई ख्वाहिश अधूरी न रह हुई जाये.
जनाज़े पर मेरे लिख देना यारों
मुहब्बत करने वाला जा रहा है
(Tribute to Rahat Indori)
इस लेख के लेखक संतोषकुमार तिवारी प्रेमचंद साहित्य के अध्येता हैं. पेशे से अध्यापक व दो कविता संग्रह के रचनाकार संतोष नैनीताल के रामनगर में रहते हैं.
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Rayat Indorie was a true mushlim not nationalist. Recently he wrote against the foundation stone of a temple at Shri Ram Janambhoomi in Ayodhya. He also criticised Our beloved Prime minister late Atal ji and used very filthy language.
Severals are dying, if he died who care of it.