“स्पोर्ट्समैन स्पिरिट कहाँ है तुम लोगों की?” पिता कमर पर हाथ रखकर बोल रहे थे. मिंयादाद ने अभी-अभी चेतन शर्मा की आख़िरी बॉल छक्के के लिए उड़ा दी थी और हम सब टीवी फोड़ सकने का इरादा तो नहीं रखते थे पर हवाई एक्शन लगभग वही दिखा रहे थे. हमें न समझ आया कि पिताजी क्या कहना चाहते थे. Tribute to Footballer Chunni Goswami by Amit Srivastava
हम तब भी ज़्यादा कुछ नहीं समझते थे जब वो आँखे छोटी कर बहुत इज़्ज़त भरी हल्की मुस्कान से कहते- “अगर तुमने ध्यानचंद को खेलते देख लिया होता तो समझ सकते कि खेल के मैदान में जादू पैदा कैसे होता है.” Tribute to Footballer Chunni Goswami by Amit Srivastava
हालांकि बाद-बाद में, तब जब सचिन का आगमन हो चुका था टीम में, पिता क्रिकेट देखने लगे थे अन्यथा उनमें हॉकी और फुटबॉल के प्रति एक दीवानगी थी. आज भी है. और स्पोर्ट्समैनशिप का गुण भी. हम शायद आज तक नहीं समझ सके उस गुण को. आपको दूरदर्शन पर आने वाला गीत ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा याद है?’ तो ठहरियेगा.
1964 में एक एथलेटिक क्लब ने खूब उदारता और शान के साथ अपनी प्लैटिनम जुबली मनाई. विश्व प्रसिद्ध हंगरी के ‘ताताबैनिया फुटबॉल क्लब’ जैसी बहुत सी अंतराष्ट्रीय टीमें कलकत्ता आईं और इस क्लब के अलावा ईस्ट बंगाल और भारतीय टीम के साथ उनके शानदार प्रदर्शन मैच हुए. एक क्रिकेट मैच भी भारतीय टीम और कॉमनवेल्थ की टीम के बीच खेला गया. कॉमनवेल्थ की टीम में उस समय के महानतम बल्लेबाज सर गैरी सोबर्स के साथ-साथ लांस गिब्स और मुश्ताक़ मुहम्मद भी शामिल थे. सोचिए क्या समां रहा होगा. टेनिस मैच भी हुए. इंग्लैंड के माइक सैंगस्टर, ऑस्ट्रेलिया के बॉब हेविट जैसे खिलाड़ियों के साथ भारतीय डेविस कप के खिलाड़ी आमने-सामने हुए. यही नहीं जर्मनी की एक बढ़िया एथलेटिक टीम भी आई और भारत के चोटी के एथलीट्स के साथ उनके खेल का आयोजन हुआ. अभी-अभी सम्पन्न हुए टोक्यो ओलंपिक में पाकिस्तान को हराकर सोना जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम से खेलने के लिए फ्रांस की टीम आई और शानदार मैच हुआ.
किसी एथलेटिक क्लब के द्वारा ये एक शानदार और उदार आयोजन था. खेल भावना का उत्कृष्ट और उच्चतम प्रदर्शन. वो क्लब था मोहन बगान ! मोहन बगान फुटबॉल के लिए जाना जाता है. किसी एक खेल तक महदूद न रहकर हर खेल को उतनी ही शिद्दत से अंगीकार करने की भावना ही स्पोर्ट्समैनशिप स्पिरिट है. जो सिर्फ क्लब में ही नहीं इसके खिलाड़ियों में भी कूट-कूट कर भरी हुई थी. Tribute to Footballer Chunni Goswami by Amit Srivastava
15 अगस्त 1889 को कीर्ति मित्र के ‘मोहन बगान विला’ में एक मीटिंग बुलाई गई जिसकी अध्यक्षता भूपेंद्र नाथ बोस ने की. वही बीएन बोस जो बाद में कभी इंडियन नेशनल कांग्रेस के चेयरपर्सन भी रहे. उस विला के नाम पर ही एक क्लब की नींव रक्खी गई जिसे पहले ‘मोहन बगान स्पोर्ट्स क्लब’ और एक साल बाद ही ‘मोहन बगान एथलेटिक क्लब’ का नाम मिला. पिछले सवा सौ सालों के भरे-पूरे इतिहास में इस क्लब ने भारतीय फुटबॉल और पूरे खेल जगत को कितने ही सुनहरे सितारे, खेलने का हुनर और लम्हे दिए हैं.
पिछले तीस दिनों में फुटबॉल या यूँ कहें कि खेल जगत के दो बहुत चमकीले सितारे चले गए और हमें पता भी न चला. 20 मार्च को पी के बैनर्जी और 30 अप्रैल को इस क्लब की देश को सबसे खूबसूरत सौगात चुन्नी गोस्वामी.
स्ट्राइकर के तौर पर खेलने वाले चुन्नी गोस्वामी ने 50 से ज़्यादा अंतर्राष्ट्रीय मैच में देश का प्रतिनिधित्व किया. 1962 के एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक और 1964 के एशिया कप में देश को रजत दिलाने वाले चुन्नी भारतीय फुटबॉल के इतिहास के अब तक के सबसे जादुई स्ट्राइकर्स में से जाने जाते हैं. 22 सालों तक एक ही क्लब से जुड़े रहने वाले सुबिमल उर्फ चुन्नी गोस्वामी ने इंग्लैंड के ‘टोटनम फुटबॉल क्लब’ जैसे नामी क्लबों से खेलने का ऑफर भी ठुकरा दिया था. अपने क्लब के लिए, अपने देश के लिए. Tribute to Footballer Chunni Goswami by Amit Srivastava
एक और जादुई बात. चुन्नी शानदार क्रिकेटर भी थे. 1962 से 1973 तक लगभग एक दशक तक बंगाल की तरफ से रणजी ट्रॉफी स्तर का क्रिकेट खेलने वाले चुन्नी शानदार ऑल राउंडर थे. क्रिकेट के अलावा हॉकी और लॉन टेनिस खेलने वाले एक टर्म के लिए कलकत्ता के शेरिफ भी चुने गए थे.
मुझे चुन्नी गोस्वामी का सिर्फ नाम पता था और वो भी इसलिए क्योंकि ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ में एक ट्रेन का सीन है जिसमें से बंगाल की कुछ बहुत महत्वपूर्ण हस्तियां उतरती दिखती हैं. उनमें से एक थे चुन्नी गोस्वामी. फुटबॉल के जादूगर. बंगाल की शान, फुटबॉल की शान, क्रिकेट की शान, क्लब की शान, हमारे देश की शान.
उन्हें श्रद्धांजलि.
–अमित श्रीवास्तव
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अमित श्रीवास्तव. उत्तराखण्ड के पुलिस महकमे में काम करने वाले वाले अमित श्रीवास्तव फिलहाल हल्द्वानी में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात हैं. 6 जुलाई 1978 को जौनपुर में जन्मे अमित के गद्य की शैली की रवानगी बेहद आधुनिक और प्रयोगधर्मी है. उनकी तीन किताबें प्रकाशित हैं – बाहर मैं … मैं अन्दर (कविता) और पहला दखल (संस्मरण) और गहन है यह अन्धकारा (उपन्यास).
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