परंपरा से संजोया शिल्प व कौशल, भले ही वह मिट्टी के बर्तन हों या ऊन से बने परिधान, सजावट के वह सामान जिन्हें अपने ड्राइंग रूम में रख समृद्ध वर्ग अपनी रूचि को खास बना डालता है. लोक थात से जुड़ी ऐसी विविधता जनजाति समुदाय के कौशल की अनेक सफलता कथाओं से समृद्ध है.दशकों से देश में आर्थिक विकास बनाम प्रकृति संरक्षण का जो असमंजस उभरा है उसने यदि किसी समुदाय को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाया है तो वह जनजाति समुदाय है जो अपनी दैनिक अवश्यकताओं के साथ अपने द्वारा निर्मित विशिष्ट वस्तुओं के लिए प्रकृति से प्राप्त उपादानों पर निर्भर रहा है.
(Tribal Development Report Hindi)
जंगलात के कानून और वन अधिनियम की बेलोच नीतियों ने अनुसूचित जनजातियों की आजीविका एवं रहन-सहन के स्तर को हमेशा ही जीवन निर्वाह रेखा पर टिके रहने को बाध्य किया है. यह तो जनजाति समुदाय की विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को बनाए बचाये रखने की विशिष्ट योग्यता व पुरुषार्थ है, भले ही वह दुर्गम हिमालय के दुरूह इलाकों के वासी हों या तपते पठार के रहवासी उन्होंने अपने आप को तमाम भौगोलिक कारणों से उपजी कठिनाइयो व शासन प्रशासन की असंगत नीतियों को झेल अपनी अस्मिता का परिचय दिया भले ही वह सीमाओं की सुरक्षा के अभेद्य प्रहरी के स्वरूप में हों और या फिर अपनी उन विशेषताओं के द्वारा जो उनके रहन सहन उनके खानपान उनके वस्त्र विन्यास एवम उनके द्वारा निर्मित उपादानों में साफ झलकती है. यह उनका नवप्रवर्तन है. उनकी मौलिक विधियों से उपजा हुआ जिसके लिए अपने आसपास मिलने वाले कच्चे माल का प्रयोग किया जाता रहा. यह वह मध्यवर्ती तकनीक रही जिसने कभी प्रकृति को विनिष्ट नहीं किया बल्कि उसे सजाया-संवारा पोषित किया.
जनजाति समुदाय के मध्य उपक्रम शीलता को पुर्नजीवित करने के लिए अनुसूचित जनजाति हेतु अब ‘वेंचर कैपिटल फण्ड’ की जिस प्रणाली का शुभारम्भ किया गया है उसके फलक काफी विस्तृत हैं. वह कई व्यवसायों से सम्बंधित की गई है जिसमें विनिर्माण क्षेत्र, एलाइड क्षेत्र, स्टार्ट अप व तकनीकी रूप से आपस में संबंधित कई इकाईयां इस प्रकार से संयोजित करने की कोशिश की गई है कि वह परम्परा से चली आ रही वस्तु, मदों व सेवाओं के उत्पादन के साथ इनके द्वारा परिसंपत्ति का सृजन कर सके.
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परंपरागत शिल्प व कौशल को बनाए बचाये रखने की यह एक बेहतर कोशिश है. देश के दुर्गम क्षेत्र व प्रदेशों में जलवायु से अनुकलन करती जनजातियों के द्वारा स्वयं अर्जित ज्ञान की परम्परा में ऐसे महत्वपूर्ण उपक्रम छुपे हुए हैं जिन्हें अक्सर समुचित परिवेश न मिला.इससे उनके विलुप्त होने का संकट बढ़ता गया. स्वयं के प्रयोग तक सीमित होते ये उपादान उस श्रृंखला प्रभाव की आस लगाए रहे जिससे इन्हें एक बेहतर बाजार मिलता. वन नीति व वन अधिनियम अक्सर इनके लिए कच्चा माल आपूर्ति के मार्ग में रोड़े अटकाते रहे. इससे विस्तार प्रभाव पनप ही न पाया. सबसे महत्वपूर्ण है प्रदर्शन प्रभाव जो बाजार में कारखानों से निकली सस्ती व गिफिन वस्तुओं की मांग वृद्धि में ही सहायक हुई. हाथ से बनी, पेड़ पत्तियों के रंग से सजी, काष्ट, रेशे, कपास, जूट, ऊन से बनी अनगिनत वस्तुएँ तो स्थानीय रूप से उगा अनाज, मसाले, फल भेषज जिनकी सूची बहुत लम्बी है और विविधता पूर्ण भी.परम्परागत ज्ञान से संपुटित पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ऐसी अनेक वस्तुएँ जो अब विलुप्ति के कगार पर पंहुच गईं.
नई दिल्ली में मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने “आदि महोत्सव 2024” का शुभारम्भ करते हुए जनजाति व्यवसाय के परंपरागत उपक्रम को पुर्नजीवन प्रदान करने के लिए जिन योजनाओं का श्रीगणेश किया उससे यह आस बंधती है कि जनजातियों द्वारा संरक्षित लोक थात को वर्तमान बाजार की स्थितियों में पाँव पसारने का समुचित अवसर व प्रोत्साहन देगी . ऐसी योजनाओं का श्री गणेश किया गया है जिनसे परंपरागत शिल्प व कारीगरी को प्रोत्साहन मिल सके. इस कौशल की विशाल पूंजी व निर्माण की बारीकी अनुसूचित जन जाति के सयानों व कामगारों के पास सुरक्षित है. इनका सम्यक उपयोग कर तेजी से फैलता देश का फैशन डिज़ाइन, क्राफ्ट व सज्जा बाजार नवीन मौलिक छवि संजोने में समर्थ बन सकता है.
आदि महोत्सव के शुभारंभ के साथ अनुसूचित जनजाति के लाभर्थियों के लिए इसका पोर्टल खोल दिया गया है. इससे देश के समस्त जनजातिगत क्षेत्रों में विविध व्यवसाय जो परंपरागत ज्ञान व शिल्प से संपुटित हैं इसे व्यवसायिक रूप से संचालित करने की योग्यता विकसित कर सकें.
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इस योजना में लाभर्थियों को दस वर्ष की अधिकतम अवधि तक के लिए दस लाख रूपये से पांच करोड़ रूपये का छूट युक्त वित्त चार प्रतिशत की दर पर उपलब्ध कराया जायेगा. वहीं महिलाओं एवम अक्षम व्यक्तियों के लिए यह तीन दशमलव सात पांच प्रतिशत की दर पर उपलब्ध रहेगा.
नई दिल्ली में मेजर ध्यान चंद नेशनल स्टेडियम में आयोजित जनजाति उत्सव 18 फरवरी 2024 तक चलेगा जिसमें विभिन्न राज्यों के एक हजार से अधिक दस्तकार अपने शिल्प व कौशल से निर्मित वस्तुओं का प्रदर्शन करेंगे.इस उत्सव में तीन सौ स्टॉल लगाए गये हैं जिसमें जनजाति लोक – विधा, उनकी लोकथात, संस्कृति व जीवन यापन के विविध पक्ष जैसे कला, हस्तनिर्मित पात्र, सजावट का सामान, पारम्परिक वस्त्र, जैविक अनाज मसाले, जड़ी बूटी एवम आहार की प्रदर्शिनी व बिक्री की जाएगी.
तेजी से बढ़ रहे शहरीकरण व विकास के लिए किये जा रही अंतरसंरचना के निर्माण से प्रदूषण की विकराल समस्या पैदा हुई है तो इसके साथ जलवायु के बदलाव ने देश के परिस्थितिकी तंत्र को बुरी तरह झकझोर दिया. नगर-महानगरों के साथ कस्बों व गावों में भी इसके दुष्प्रभाव देखे जा रहे हैं. ऐसे समय में जनजाति व वन समुदाय अपनी रहन-सहन की प्रणालियों व विशिष्ट जीवन पद्धति जो प्रकृति के साहचर्य व अनुकूलन से संबंधित हैं अपनी दिनचर्या व पेशेगत विविधताओं के स्वरूप को बनाए-बचाये रखने में समर्थ रहीं हैं. असमंजस भरी विकास नीतियों व वन अधिनियम संशोधन से इस वनवासी समुदाय में जीवन यापन हेतु शहरों की ओर प्रवास बढ़ा है जहाँ वह अपनी कार्यकुशलता से भिन्न कामों वाले व्यवसाय अपनाने को मजबूर भी हुए हैं.
देश में जनजाति विकास की दशा को समझने के लिए उन योजनाओं और पहलुओं पर विचार जरुरी है जो केंद्र व राज्य सरकारों द्वारा समय समय पर चलाई गईं. पंचवर्षाय योजनाओं में इनके प्रति किया गया व्यय विषमता पूर्ण था जिनसे कोई सुस्पष्ट नतीजे नहीं मिले. अब यह संकल्पना ध्यान में रखी जा रही है कि जनजातीय समुदायों का विकास एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है जिसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, आजीविका व सामाजिक न्याय जैसे विविध आयाम शामिल किये जाने आवश्यक हैं. हाल के वर्षों में सरकार ने जनजातीय समुदायों के उत्थान हेतु कई विशिष्ट योजनाएँ और पहल आरम्भ की हैं जिनमें से कुछ का उल्लेख निम्नानुसार है.
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एकलव्य मॉडल आवासीय स्कूल (ईएमआरएस) जिन्हें जनजातीय बच्चों के लिए गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है. ये विद्यालय जनजातीय बच्चों को आधुनिक सुविधाओं सहित उत्कृष्ट शिक्षा प्रदान करने के लक्ष्य से संबंधित हैं.
वन बंधु कल्याण योजना जो जनजातीय समुदायों के समग्र विकास के लिए आरम्भ एक पहल है जिसका उद्देश्य जनजातीय इलाकों में शिक्षा,पानी, सेहत, सड़क, संपर्क मार्ग व रोजगार की दशा सुधारना तथा आजीविका से सम्बंधित सुविधाओं को बढ़ाना है.
ट्राइबल सब प्लान (टीएसपी)जिसके अधीन जनजातीय इलाकों में विकास कार्यक्रमों के लिए विशेष रूप से आरक्षित बजट का प्राविधान करना है. इसका लक्ष्य जनजातीय समुदायों के जीवन स्तर को सुधारने के लिए एक दूसरे से संबंधित विकास कार्यक्रमों को तालमेल के साथ लागू करना है.
प्रधानमंत्री जनजातीय शिक्षा सहयोग योजना (पीएमजेएसएस वाई) का उद्देश्य जनजातीय छात्रों को उच्च शिक्षा के अवसर देने की पहल है जिसमें उन्हें छात्रवृति, शिक्षा ऋण व अन्य आर्थिक सहायता प्रदान की जाती है. राष्ट्रीय जनजाति कल्याण पहल के अंतर्गत जनजातीय समुदायों के लिए कई ऑन लाइन कोर्स व ई-लर्निंग मॉडयूल शुरू किये गये जिनका उद्देश्य तकनीकी शिक्षा और रोजगार उन्मुख प्रशिक्षण को बढ़ावा देना रहा.
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इन योजनाओं के अतिरिक्त केंद्र व राज्य की स्वास्थ्य, पेय जल, बिजली, सड़क व डिजिटल कनेक्टिविटी जैसी बुनियादी ढांचे के विकास की योजनाएँ संचालित की जा रहीं हैं. यह महसूस करते कि जनजाति गत क्षेत्र बहुत पिछड़े हैं व देश के विविध इलाकों में सिमटे इन भागों में साक्षरता व सामाजिक स्तरीकरण का पक्ष भी विचलन युक्त है अर्थात कुछ जनजातियां बड़ी तेजी से सामाजिक व आर्थिक मुख्य धारा के साथ तालमेल करने में समर्थ हुईं तो कुछ अभी काफी पिछडी दशा में हैं भले ही उनके पास परंपरागत पेशों की कुशलता विद्यमान है. ऐसे में यदि उन्हें समुचित वित्त प्रदान कर बाजार की समझ से परिचित कराया जाय तो उनकी काम काज की दशाएं बेहतर हो सकती हैं.
इसी विचार से प्रेरित हो जनजाति समस्याओं के मंत्रालय द्वारा “आदि महोत्सव” के साथ पूंजी कोष की सुविधा आरम्भ की गई जिसे आईएफसीआई वेंचर के अधीन रखा गया. जिससे जनजाति समूह वीसीएफ-एसटी स्कीम के पूरे लाभ उठा सकें. इच्छुक उपक्रमियों को इस स्कीम के बारे में जानकारी व दिशानिर्देश की समुचित व्यवस्था की पहल की जा रही है.
इस योजना का कोष सेबी से पंजीकृत वेंचर कैपिटल की पहल है जिसका प्रबंध आईएफसीआई वेंचर द्वारा किया जाना है जो कि भारत सरकार के उपक्रम आईएफसीआई लिमिटेड का सहायक गठबंधन है. इस स्कीम को वीसीएफ -एसटी स्कीम का नाम दिया गया है जिसमें निवेश करने वाले दो निवेशक एमटीए तथा ट्राइबल कोआपरेटिव मार्केटिंग डेवलपमेंट फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडिया (टीआरआईएफई डी) होंगे. सरकार द्वारा उपक्रम व नव प्रवर्तन की स्फूर्ति हेतु जनजाति द्वारा किये जा रहे व्यवसायों को समुचित वित्त की सुलभ आपूर्ति करना इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि परंपरागत तकनीक का नई प्रोद्योगिकी से जुड़ना मध्यवर्ती तकनीक के उन्नयन हेतु एक बड़ा कदम साबित होगा. देश-विदेश में परंपरागत वस्तुओं की मांग जैविक उत्पादों पर अधिक आश्रय की चेतना से निरन्तर बढ़ रही है. विकास योजनाओं को व्यावहारिक बनाते हुए उनके क्रियान्वयन की सफलता तो अंततः इस बात पर ही निर्भर होगी कि सरकार और जनजातीय समुदाय आपस में तालमेल बनायें रखें तभी जनजातीय इलाकों का संतुलित विकास सम्भव होगा.
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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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