भाई साहब, त्योहारों से ऐन पहले सड़क किनारे के बिजली के ख़म्भों पर चढ़ जाते हैं. आप यह मत सोच लेना कि भाई साहब बिजली विभाग से हैं और लोगों की असुविधा को ध्यान में रखकर लाइनें दुरस्त करने के काम में लग जाते हैं. दरअसल भाई साहब राजनीति में हैं और खम्भे पर चढ़ना लोगों से संवाद स्थापित करने का उनका एक तरीका है. वे लोगों को एक साथ आगामी दो-तीन महीनों में आने वाले त्योहारों की बधाई दे देते हैं.
भाई साहब की विवशता समझने की जरूरत है. उनके पास इतना समय नहीं होता कि वे एक-एक आदमी के घर जाकर उन्हें बधाई दें. वे लोगों के घर जाने के बजाय एडवरटाइजिंग कम्पनी के ऑफिस में चले जाते हैं और वहां पोस्टर का डिजायन, अपनी तस्वीर, भाषा तथा कलर आदि को सेट करने में समय लगाते हैं. इतनी मेहनत के बाद आगामी त्योहार की बधाई देते हुए भाई साहब के पोस्टर पूरे इलाके में लग जाते हैं. पोस्टर में भाई साहब की हाथ जोड़े हुए मुस्कराती हुई खूबसूरत सी फोटो होती है. फोटो में वे काफी विनम्र, सुंदर-सुशील तथा अपनी उम्र से करीब दस साल छोटे नजर आते हैं. उनकी छवि देखकर क्षेत्र की जनता निहाल हो जाती है.
आपने भी अपने आस-पास के भाई साहब लोगों को खम्भे से शुभकामनाएं देते हुए देखा होगा. इस तरह से जनसेवा करने वाले भाई साहब लोग अब गली-गली में नजर आते हैं और हमारी-आपकी शिकायत भी खत्म हो जानी चाहिए कि वे नजर नहीं आते. आपका जब भी उनसे मिलने का मन है, खम्भे की ओर नजर उठाकर देखिये, आपको वे हाथ जोड़कर मुस्कराते हुए नजर आयेंगे. भाई साहब का मानना है कि लोगों के पास जाने के बजाय एडवरटाइजिंग कम्पनी जाने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि जनता से दूरी और नजदीकी एक साथ बनी रहती है. दूरी ऐसे कि आप लोगों से सशरीर नहीं मिलते. नजदीकी ऐसे कि पोस्टर के जरिये लोग आपको अपने आस-पास पाते हैं.
भाई साहब होशियार हैं. वे जानते हैं, लोगों से मिलने जायेंगे तो लोग अपनी समस्याएं सुनाने लगेंगे. हर आदमी की दो-तीन समस्या तो होगी ही. कुछ ‘समस्याबाज’ किस्म के लोग तो जबरदस्ती की समस्या लेकर बैठ जाते हैं. दस आदमियों से मिल लिए तो बीस समस्याएं सुनने को मिलेंगी. भाई साहब, लोगों की समस्याएं सुनकर दिमाग खराब करने के लिए राजनीति में थोड़ा हैं. यहां खुद अपनी समस्याएं नहीं सुलझ रही. उन्हें सुलझाएं या लोगों की सिरदर्दी मोल लें. भाई साहब का साफ मानना है कि लोगों को अपने काम खुद निपटाने चाहिए. अरे भाई, तमाम ऑफिसों में अधिकारी-कर्मचारी किस लिए हैं ? उनके पास जाओ. थोड़ा कष्ट उठाओ भाई. राजनीति में हम अपना कष्ट बढ़ाने थोड़ा आये हैं. ये अलग बात है कि भाई साहब जिससे भी मिलते उसकी परेशानियों के बारे में जरूर पूछते. यह भी कहना नहीं भूलते कि कोई भी समस्या हो तो बताना जरूर!
यदि आप पोस्टर को ध्यान से देखें तो भाई साहब आपको अपनी ही ओर देखते हुए ही नजर आयेंगे. मैं सड़क पर भाई साहब के जितने भी पोस्टर देखता हूँ. हर जगह रुककर उन्हें ‘नमस्कार’ कर देता हूँ. भाई साहब ने इतना पैसा हम लोगों से संवाद स्थापित करने के लिए ही तो खर्च किया है. क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि जहां पर भाई साहब का पोस्टर दिखे वहीं पर उनकी शुभकामनाओं का जवाब दे दिया जाये ?
कितने बेवकूफ रहे होंगे, हमारे वे पुराने नेता जिन्होंने राजनीति को देश तथा समाज सेवा का पर्याय माना और अपना पूरा जीवन राष्ट्र निर्माण में लगा दिया. बड़ी-बड़ी संस्थाएं बनायी. कैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, पानी की व्यवस्था हो इसकी चिंता की. भाई साहब के लिए राजनीति सेवा का नहीं रोजगार का जरिया है. ऐसा धंधा जहां सिर्फ मुंह से बोलना है, करना कुछ नहीं ! करने के लिए अधिकारी-कर्मचारी हैं तो !
भाई साहब ने राजनीति में जाने की तभी सोच ली थी, जब उन्होंने देखा कि एक ओर तो वे लोग हैं जो आंख फोड़-फोड़कर पढ़ने-लिखने के बावजूद क्लर्की के लिए हजारों की लाईन में लगे रहते हैं, फिर भी रोजगार का सपना पूरा नहीं कर पाते हैं. कुछ लोग रोजगार में आ भी जाते हैं तो जिंदगीभर अपने अफसरों तथा नेताओं की डांट खाते रहते हैं. इनसे अच्छे तो वे लोग हैं, जो पढ़ने-लिखने के बजाय यारबाजी में ध्यान देकर कालेज के चुनावों में खड़े होते हैं और देखते ही देखते ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत, ब्लॉक प्रमुख तथा विधायक होते हुए स्कूटर, मोटरसाइकिलों को छोड़कर स्कार्पियो, फोर्ड एण्डवर तथा होंडा फार्च्यूनर में चलने लगते हैं. इन पढ़ने-लिखने वालों को डांटने-फटकारने की हैसियत पा लेते हैं सो अलग.
लेकिन राजनीति के इस चोखे धंधे में भाई साहब अकेले नहीं हैं. उनके जैसे और भी बहुत हैं, इसलिए कम्पटीशन भी ज्यादा है. इसलिए लोगों को शुभकामनाएं देने के लिए भी जल्दी-जल्दी खम्भे पर चढ़ना पड़ता है ताकि लोग भूल न जायें. भाई साहब अपने स्वर्णिम भविष्य के प्रति आश्वस्त हैं. उन्हें किसी से कोई खतरा नहीं है. उन्हें खतरा है तो सिर्फ उन पढ़े-लिखे लोगों से जो कभी-कभी देश और जनता के लिए काम करने के इरादे से राजनीति के इस बगीचे में उतर जाते हैं, (जिसे कीचड़ कहकर वे उन्हें भयभीत किये रहते हैं) और ख़म्भों पर चढ़कर लोगों को शुभकामनाएं देने के बजाय उनसे मिलकर बधाई देने लगते हैं. जो एक-दूसरे की बुराई के जादूभरे खेल को खेलते रहने के बजाय समस्याओं के समाधान की ओर ध्यान देने लगते हैं.
भाई साहब, ऐसे लोगों को देखते ही घबरा जाते हैं और अपने दुश्मनों के साथ मिलकर इस असली दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के अभियान में जुट जाते हैं. फिलहाल तो भाई साहब खंभे से मुस्करा रहे हैं और उनको चुनौती दे सकने वाले लोग राजनीति को गंदा कहकर उससे दूर हैं.
दिनेश कर्नाटक
भारतीय ज्ञानपीठ के नवलेखन पुरस्कार से पुरस्कृत दिनेश कर्नाटक चर्चित युवा साहित्यकार हैं. रानीबाग में रहने वाले दिनेश की कुछ किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं. ‘शैक्षिक दख़ल’ पत्रिका की सम्पादकीय टीम का हिस्सा हैं.
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18 Comments
Anonymous
आज की राजनीति और राजनेताओं पर सटीक व्यंग्य।
Anonymous
खंभे पर चड़कर शुभकामनाएं देते भाई साहब” व्यंग वर्तमान समय की पोस्टर राजनीति पर करारा कटाक्ष है।
श्री दिनेश कर्नाटक जी के व्यंग के विषय आजकल के ज्वलंत समस्याओं पर हैं। सधे और कम शब्दों में समाज की विभिन्न समस्याओं को व्यंग के माध्यम से सामने लाने का अच्छा प्रयास है।
डॉ चन्द्र शेखर पाटनी
खंभे पर चड़कर शुभकामनाएं देते भाई साहब” व्यंग वर्तमान समय की पोस्टर राजनीति पर करारा कटाक्ष है।
श्री दिनेश कर्नाटक जी के व्यंग के विषय आजकल के ज्वलंत समस्याओं पर हैं। सधे और कम शब्दों में समाज की विभिन्न समस्याओं को व्यंग के माध्यम से सामने लाने का अच्छा प्रयास है।
डॉ अनुपम आनन्द
आपकी व्यंग्य शैली बेजोड़ है।आजकल के भाई साहबों के सामाजिक,वैचारिक और आंतरिक खोखले पन का सटीक चित्रण।
पहले भाई साहब लोग चौराहों व चाय की दुकानों पर चार छह चमचो के साथ दिखाई पड़ जाते थे किंतु चौराहों का चौड़ीकरण हों जाने से वह अड्डा छिन गया,तो भाईसाहब लोग अपना राजनैतिक भविष्य स्वर्णिम बनाने के लिए चौड़े चौराहों के ऊंचे खम्भो पर विराजमान हो गए है।
घोर सामाजिक,सांस्कृतिक गरीबी।जाने कहाँ जाने वाले है हम????????।
Anonymous
बहुत खूब।सटीक व्यंग्य।
Anonymous
भाई साहब इतने शानदार है कि दो तीन त्यौहार भी एक साथ निबटा देने वाले ठैरे।।
Anonymous
वाह क्या बात है sir शानदार
Prakash
कितने बेबकूफ रहे होंगे पुराने नेता——–।भाई साहब के लिये राजनीति सेवा नही रोजगार है—–। बहुत खूब । समय व सन्दर्भ के साथ पूरा इंसाफ । बेहतरीन पकड़ के साथ लिखा गया है । थोडी शरद जोशी की याद आ गयी ।मैं किसी को किसी के समकक्ष नही रख रहा हूँ ।बीमारी तो पूरे समाज मे नजर आती है।पतन तो नेता व वोटर दोनो मैं नजर आता है ।हम भी कितनी ही क्रांतिकारी सोच क्यो न रखे अपनी हिस्सेदारी से बच नही सकते । जिम्मेदारी लेने वाले तो गिने चुने है । मुझे लगता है आपको बधाई मीडियम पेशर से गुगली गेंदबाज बननेकी दी जानी चाहिए ।
Anonymous
Very nice comment
दिनेश कर्नाटक
आप की उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए आभार
Anonymous
बहुत ही शानदार। कर्नाटक जी वर्तमान में जो राजनीति हमारे समाज में चल रही है उसका असली रूप आपने अपनी लेखनी से मजबूत तरीके से दर्शाया है। में आपकी लेखनी को नमन करता हूँ।
Anonymous
बहुत ही करारा कटाक्ष…बहुत खूब कर्नाटक जी…
ये अपने नेता लोग तो चिकने घड़े है…
हाथ आने वाले नहीं हैं…???
Anonymous
Wah gajab ka vyang hai bhai sahab….. Maja aa gaya
Anonymous
Kamal का stambh likha hai bhai sahab, bdhai
Anonymous
भाई साहब स्टीक और एकदम नवाचारी । बधाई
सोहन majila
Anonymous
यथार्थ। वर्तमान राजनीतिग्यो का सटीक चित्रण..।
Anonymous
काफ़ल ट्री ब्लाग में दिनेश जी का कालम भाई साहब कमाल है।देश-समाज की तीखी पड़ताल।दिनेश जी के लेखन की रैंज़ व्यापक है।उपन्यास,कहानी रचने में तो वह कमाल है हीं;यह नवाचारी प्रयास है।काफल ट्री कबाड़ख़ाने की कमी पूरी करेगा।यह ब्लाग उम्मीद ज़गाता।
Anonymous
काबिले तारीफ़। सारगर्भित , संक्षिप्त पर सटीक।