उत्तराखण्ड में जागर के धार्मिक अनुष्ठान का बहुत बड़ा महत्त्व है. जागर के दौरान व्यक्ति शरीर में इष्टदेव का अवतरण होता है. यह देवता लोगों की समस्याओं के कारण बताता है और उनका निदान भी करता है. जागर के सन्दर्भ में नौताड़ का अर्थ है ‘नवातारण’. कुमाऊंनी भाषा में किसी लोकदेवता के मानुष शरीर में पहली बार अवतरित होने को नौताड़ कहा जाता है. यह अवतरण किसी जगर, नौर्ते या बैंसी के अवसर पर हुआ करता है.
इसमें वह व्यक्ति पूर्व मान्य डंगरिये के साथ ही नाचने लगता है. पुराने डंगरिये लोग उसकी परीक्षा लेने के लिए उसके शरीर पर चिमटे-चाबुकों से मारते हैं. धूनी कि अग्नि में तपाकर लाल-लाल की गयी फौड़ी से उसे दागते हैं. मान्यता है कि उस शरीर अगर देवता का अवतरण हुआ है तो उस पर इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. ऐसी स्थिति में मान लिया जाता है कि उस व्यक्ति के शरीर में देवता अवतरित हो चुके हैं.
इस देवता विशेष की पहचान उसके नृत्याभिनय के द्वारा कर ली जाती है. हाथ में तीर-कमान लिए डेढ़ पैर से नाचता हुआ एड़ी होता है. दोनों हाथों की ऊँगलियों को मोड़कर कुष्टरोगी की भंगिमा वाला सैम, आग में तपाई गयी फौड़ी को चाटने का अभिनय करता हरज्यू, कंधे में झोला टाँगे जोगी गंगनाथ माने जाते हैं.
इस नौताड़ी डंगरिये को पुराने डंगरिये द्वारा स्नान कराकर दीक्षित करने के बाद डंगरिये के रूप में मान्यता दे दी जाती है. इसके बाद यह नौते, बैंसी आदि करने के लिए अधिकृत कर दिया जाता है.
उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डी. डी शर्मा के आधार पर
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