पहाड़ियों की एक ख़ास बात यह है कि वह सभी से परिवार का रिश्ता बांध लेते हैं फिर क्या देवता क्या प्रकृति. मसलन कुमाऊं और गढ़वाल की देवी नंदा देवी को ही लीजिए पहाड़ियों ने देवी नंदा से बेटी का रिश्ता बना रखा है. जब मां नंदा पहाड़ों में पूजी जाती है तो बाहरी लोगों के लिए अंदाज लगाना मुश्किल हो जाता है कि यह किसी देवी को पूजा जा रहा है या घर में बेटी के आगमन की ख़ुशी मनाई जा रही है. पहाड़ों में नंदा की विदाई ऐसे ही होती है जैसे विवाह के समय घर से बेटी की.
(Things about Pahadi People)
जगत के आराध्य देव शिव के साथ भिना यानी जीजा का रिश्ता लगाने वाले पहाड़ियों की बात ही निराली है. पहाड़ियों का यह निरालापन प्रकृति के साथ उनके संबंध में भी दिखता है. प्रकृति से पहाड़ियों का नाता उनके त्योहारों में खूब दिखता है. पहाड़ियों की परम्पराओं में प्रकृति का रंग इस कदर घुला रहता है जैसे दोनों एक दूसरे के लिए ही बने हों.
पहाड़ी समाज में बच्चों को सुनाई जाने वाली लोककथाओं में भी इस रिश्ते को खूब देखा जा सकता है. इस सबके अलावा पहाड़ में गाये जाने वाले बालगीतों में बच्चों का उनने आस-पास के पेड़-पौधे, नदी-जंगल आदि से परिचय कराया जाता है. इन गीतों को घर में आमा-खूब मयाली आवाज में गाते हैं और अपने बच्चों के भीतर प्रकृति प्रेम के पहले बीज बोते हैं.
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मसलन इन दिनों ठण्ड का मौसम है तो पहाड़ी बच्चे अपने बादल भिना और घमुलि दीदी यानी धूप से इल्तिजा करते नज़र आयेंगे. इन दिनों अपनी मीठी जबान में पहाड़ी बच्चे कहते नजर आयेंगे-
बादल भिना पर-पर जा, घमुलि दीदी यथ-यथ आ…
प्रकृति से रिश्ता बनाने का यह अनूठा तरीका अब बीते जमाने की बात हो गया है. अब न बच्चों के खेल रहे न बच्चों के गीत, है तो बस दुनिया-जहान की जानकारी रखने वाला मोबाइल है.
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