लोक से जुड़ी किसी भी चीज की एक विशेषता होती है कि वह अन्तराष्ट्रीय स्तर पर किसी न किसी रूप में मौजूद रहती है. फिर चाहे वह संगीत हो नृत्य हो या खेल हो. उदाहरण के लिये उत्तराखंड में मुख्यतः लड़कियों द्वारा खेले जाने वाले खेल गुट्टी, ग्वाट, दाणि या पांछि को ही लीजिये यह पूरे विश्व में अलग-अलग नामों से खेला जाता है.
पांच पत्थरों से खेला जाने वाला यह खेल जापान, चीन, स्पेन, इटली, अफ्रीका, सिंगापुर आदि देशों का पारंपरिक लोक खेल रहा है. सभी देशों में आज इसकी वही हालत है जो अपने पहाड़ में है. भारत में भी इसे राजस्थान, तमिलनाडु, केरल, बंगाल, जैसे न जाने कितने राज्यों की कितनी लड़कियां इस खेल को खेलकर बड़ी हुई हैं.
गुट्टी को अलग-अलग देशों में अलग नाम से से खेला जाता है जैसे ब्राजील में जोगो दा बुगालाह, क्यूबा में याकवि, पेरू में याक्स, अर्जेंटीना में पान्जाना, मैक्सिकों में पक्साक, साउथ अफ्रीका में क्लिप-क्लिप, यूसए में जैक्स, दक्षिणी कोरिया में गोन्जी आदि. विश्व का कोई भी देश ऐसा नहीं है जिसमें ‘गुट्टी’ नहीं खेला जाता है.
गुट्टी को वैश्विक स्तर पर फाइव स्टोन गेम या नेकेलबोन्स नाम से जाना जाता है. यह एक समय सम्मानित खेल है जो प्राचीन ग्रीस, रोम और इससे भी पहले खेला गया था. विश्व के अधिंकाश हिस्सों में इसे पांच पत्थरों से खेला जाता है.
कुछ हिस्सों में यह भेड़ या बकरियों के टखने या घुटने की हड्डियों से भी खेला जाता था. कभी-कभी इटली में यह आड़ू की सूखी गुठलियों से भी खेला जाता था.
गुट्टी (five stone game) कौशल और समन्वय का खेल है. इसे खेलने के लिये कम से कम दो खिलाड़ी और पांच समरूप पत्थर की जरुरत होती है. यह खेल कई राउंड में पूरा होता है. खेल की शुरुआत पांचों पत्थरों को जमीन पर फेंक कर होती है.
पहले राउंड में पांचों फैलाये पत्थर में से एक पत्थर उठा लिया जाता है और एक हाथ से उस पत्थर को हवा में उछाला जाता है और उसी हाथ से जमीन से एक पत्थर उठाया जाता है. एक-एक कर बांकि के पत्थर भी उठाये जाते हैं बगैर किसी और पत्थर को हिलाये.
अगले राउंड में इसी तरह पत्थर फैलाने के बाद एक पत्थर हवा में उछाला जाता है और दो पत्थर उठाये जाते हैं. अगले में तीन और उसके अगले में चारों को एक साथ उठा कर जमीन में हाथ मारा जाता है.
यहां तक पूरे विश्व में यह खेल इसी तरह खेला जाता है इसके बाद अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग अलग तरीके से खेला जाता है.
खेल का अगला हिस्सा होता है कोठा. इसमें अंगूठे और उसके साथ की दो अन्य उंगलियों की मदद से एक हाथ से कुन्नि ( कोठा ) बनायी जाती है. (चित्र में देखिये) इस कुन्नि को यह पूरा राउंड ख़त्म होने तक हिलाया नहीं जा सकता है. दुसरे हाथ से एक पत्थर हवा में उछाला जाता है और फिर उसी हाथ से एक-एक कर पत्थर कुन्नि में डाले जाते हैं. इसके बाद दो फिर तीन और फिर चारों को कुन्नि में डालना होता है.
इसके बाद प्रतिद्वंद्वी एक पत्थर को चुनता है. पहाड़ में इस हिस्से को कुत्ता या बाघ चुनना कहते हैं. इसमें प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी द्वारा बताये गये पत्थर को छोड़कर बाकि सभी को कुन्नि में डालना होता है. इस क्रम में कोई भी पत्थर बाघ या कुत्ता से नहीं टकराना चाहिये. बाघ या कुत्ता को आखिर में हाथ के बने कुन्नि में डालना होता है बाघ को एक ही ही बारी में बाक्स के अंदर डालना होता है.
खेल के अंतिम हिस्से में पांचों पत्थरों को हाथ में लेकर एक साथ उछाला जाता है और हाथ के पिछले हिस्से हिस्से पर दाणि को रखा जाता है. इसके बाद सभी को एक साथ उछाल कर हाथ में पकड़ना होता है. उत्तराखंड में खेल के इस हिस्से को झपट्टा कहते हैं.
आज गुट्टी कोई नहीं खेलता है. हाँ कभी-कभी सड़क किनारे गरीब बच्चियां जरुर गुट्टी खेलती दिख जाती हैं. देखिये विश्व के अलग-अलग हिस्सों में कैसी दिखती हैं उत्तराखंड की ‘गुट्टी’
-गिरीश लोहनी
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