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3 Comments

  1. उमेश तिवारी 'विश्वास'

    ‘सवाल यह है कि इस हारने-जीतने की दौड़ में किसी दूसरे की क्यों रूचि हो?’ पर जैसा कि इतिहास का स्वभाव है वह हार-जीत को बड़े महत्व के साथ रेखांकित करता है। मज़ा आ गया गुरुजी!

  2. Dr मृगेश पांडे

    अद्भुत. दोनों मेरे गुरू.

  3. Pradyumna

    सारांश : “अपने मुँह मियां मिठू बाना”
    महाराज !! इस लेख में आपका अभिमान ज्यादा और त्रिपाठी जी की की प्रशंसा कम दिख रही है। .
    हैरान हूं कि आप उम्र के इस दौर में भी प्रतिद्वंदिता की पुरानी सीढ़ी पर लौट रहे हैं।

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