पहाड़ और मेरा जीवन – 50 (पिछली क़िस्त: दसवीं बोर्ड परीक्षा में जब मैंने रात भर जागकर पढ़ा सामाजिक विज्ञान ) मुझे मुंबई में रहते हुए दस साल होने वाले हैं. यहां की कभी-कभी भयानक रूप ले लेने वा... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -49 (पिछली क़िस्त: ये रहा मेरे हाथ लगी ग्यारहवीं की डायरी का पहला पन्ना) कक्षा पांच में कक्षा में तीसरे नंबर पर आ जाने के बाद से पढ़ाई को लेकर मुझमें जो जुनून पैदा हो गया... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 48 (पिछली क़िस्त: पुराने दोस्त पुरानी शराब से ज्यादा जायकेदार होते हैं) पुरानी चीजें सहेजकर रखना मुझे मुश्किल काम लगता है क्योंकि अव्वल तो पुरानी चीजें खुद ही खराब हो जा... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 47 (पिछली क़िस्त: और मैं बन गया एनसीसी गणतंत्र दिवस कैंप में ऑल इंडिया कमांडर ) पिछले दिनों बेटी को आगे की पढ़ाई के लिए छोड़ने अमेरिका गया. एक समय था जब अमेरिका जाने की... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 46 (पिछली क़िस्त: मुझे जिंदा पाकर मां ने जब मुझ पर की थप्पड़ों की बरसात) एनसीसी से अपने संबंध के बारे में मैं बता ही चुका हूं. मैंने एनसीसी के कुल सात कैंप अटैंड किए. तीन... Read more
आनंद से भरे जीवन के लिए कुछ शर्तिया नुस्खे
क्या आप अपने जीवन को जांच-परखकर बता सकते हैं कि वह खुशहाल है या नहीं. जाहिर है ऐसा करने के लिए आपको कुछ मानक बनाने होंगे अन्यथा आपके लिए यह तय कर पाना बहुत मुश्किल है कि आप असल में एक खुश जी... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -45 पिछली क़िस्त : बद्रीदत्त कसनियाल- जिनके सान्निध्य में कब पत्रकार बना, पता ही न चला पिछली क़िस्त में आपने मेरे हल चलाने और गांव का जीवन जीने के बारे में पढ़ा. इस बार मै... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -44 पिछली क़िस्त : पहाड़ों में पैदल चलने के बिना जिंदगी का जायका ही क्या जो लोग पिथौरागढ़ से जुड़े हैं और जिनकी पत्रकारिता में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है, वे बद्रीदत्त कसनियाल... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -43 पिछली क़िस्त : हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना मेरे पिताजी ने पिथौरागढ़ के मिशन इंटर कॉलेज से दसवीं पास की थी और उसके त... Read more
हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना
पहाड़ और मेरा जीवन – 42 पिछली कड़ी: एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई हम सबकी जड़ें गांवों में हैं, लेकिन सबने वहां का जीवन नहीं देखा. मैं अपने गांव के बहुत करीब रहा, ल... Read more
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