इन चार उपवासों से बनाएं जीवन को और बेहतर
अगर आप अपने लिए शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य की कामना करते हैं, तो आपको चार तरह के उपवास रखने होंगे. जी हां, ये चार उपवास आपमें एक खास आध्यात्मिक विश्वास को जन्म देंगे.... Read more
अतीत को छोड़ दो, बंधनों को तोड़ दो
जन्म के वक्त हम सभी शरीर और दिमाग के स्तर पर एक जैसे होते हैं, लेकिन हम जीवनकाल में अपने शरीर और दिमाग का अपनी-अपनी तरह से इस्तेमाल करते हैं और मृत्यु के वक्त इस दुनिया में अपनी अलग पहचान छो... Read more
क्या आप अपने मोबाइल से ज्यादा ताकतवर हैं?
मेरे परिचितों में कई लोग हैं जो विपश्यना के लिए दस-दस दिनों के कैंपों में जाते हैं. इन कैंपों में उनसे मोबाइल ले लिया जाता है. उन्हें किसी निश्चित वक्त में घर वालों को जरूरी संदेश भेजने या ब... Read more
खुश होना या दुखी होना हमारा चुनाव है
हमें खुश होना है या दुखी होना है, यह चुनाव हमेशा हमारे हाथ में रहता है. सामान्यत: हमें लगता है कि दुख या खुशी हमारे पास चलकर आते हैं. वे घटनाओं और सूचनाओं के जरिए हम पर आकर बरसते हैं. निस्सं... Read more
दुखी रहना कहीं आपकी आदत तो नहीं बन गया है
थोड़ा-सा अटपटा तो लग सकता है, पर सच यही है कि हम अपनी मर्जी से ही दुखी होते हैं. कोई हमें दुखी होने को कहता नहीं. और असल में दुखी होने की कोई वजह भी नहीं होती, क्योंकि दुख तो आपके सोचन... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 65 (पिछली क़िस्त: वो मेरा ‘काटो तो खून नहीं’ मुहावरे से जिंदा गुजर जाना तेरी बज्म से उठते हुए डर लगता है, ये शहर मुझे अपना घर लगता हैहरेक उसकी आंख में डूबने को है आतुर,... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 64 (पिछली क़िस्त: सुंदर लाल बहुगुणा से जब मिला मुझे तीन पन्ने का ऑटोग्राफ ) कोई अगर मुझसे यह पूछे कि क्या कभी मेरा ऐसा मन किया कि जमीन फटे और मैं उसमें समा जाऊं, तो मैं... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 63 (पिछली क़िस्त: और मैंने कसम खाई कि लड़कियों के भरोसे कॉलेज में कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा कॉलेज में मैं तीन विषय पढ़ रहा था – पीसीएम यानी फीजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथ. लेक... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 62 (पिछली क़िस्त: और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा) मैंने ऐसा फैसला क्यों लिया इसकी अब तो ठीक-ठीक वजह बताना मुश्किल है, लेकिन बीएससी फर्स्ट इयर में जब... Read more
और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा
पहाड़ और मेरा जीवन- 61 (पिछली क़िस्त: गरीब के गुरूर को मत जगाना कभी, मैंने चश्मे वाले को यूं दी जबर धमकी) पिथौरागढ़ के जिस राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की बाडंड्री से सटे सद्गुरू निवास के... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा