गांव जाता था तो मुझे मां जैसी ही ताई, चाची, दीदी, बुआएं भी लगती थीं. मैं हैरान होता था कि आख़िर ये कौन सी चीज़ है जो इन लोगों को एक दूसरे में विलीन कर रही है. फिर मुझे यह दिखा- दुनिया का उजा... Read more
हिंदी कवि मंगलेश डबराल को गुज़रे एक साल हुआ. नौ दिसंबर 2020 को कोरोना महामारी से उनकी जान गई. प्रस्तुत संस्मरणनुमा वृत्तांत, कवि के कमरों के हवाले से है, जहां कवि बचपन से लेकर देह के आख़िरी... Read more
कहानी से भागता, बिखरता और टूटता सेक्रेड गेम्स सीजन 2 : बेशक सेक्रेड गेम्स भाग दो, गायतोंडे, सरताज, परोलकर, माजिद, राव, बत्या, गुरुजी जैसे किरदारों की तरह ही अपनी गहन छटपटाहटों, हिंसाओं, अपरा... Read more
हत्यारे ही सूत्रधार हैं ‘सेक्रेड गेम्स’ में
‘वो बात सारे फ़साने में जिसका ज़िक्र न था’, वो बात ये है कि सेक्रेड गेम्स (Sacred Games) नाम की वेब सीरीज़ के सीज़न वन के आठ एपिसोड जाने अनजाने एक समुदाय की बैशिंग की एक समांतर पटकथा को फ़ॉल... Read more
इस समय जरूरी है बांधों को लेकर उत्तराखंड के जनमानस के द्वंद्वों को सामने लाना. जो इतने भीषण और बहुआयामी और टेढ़े-मेढ़े हो गए हैं कि किसी एक सिद्धांत या कसौटी पर उन्हें कसना-परखना मुमकिन नहीं... Read more
प्रमोद कौंसवाल की कविता
वो अपनी ही कविता के एक लुटेपिटे हैरान से थकान से चूर खून और गर्द से भरे चेहरे वाले आदमी सरीखे हैं -शिवप्रसाद जोशी हिंदी के युवा कवि प्रमोद कौंसवाल का पहला कविता संग्रह 90 के दशक में आया था.... Read more
गंगा की धारा और लोगों की ज़िंदगियां
गंगा के उद्गम गोमुख और गंगोत्री से कुछ किलोमीटर नीचे उत्तरकाशी की तरफ़ यानी डाउनस्ट्रीम, तीन अहम जलबिजली परियोजनाएं थीं. केंद्र की लोहारी नागपाला और राज्य सरकार की पालामनेरी और भैरोंघाटी. लो... Read more
क्या आपको भी अपने गाँव का घर बुलाता है?
मेरे घर रह जाना -शिवप्रसाद जोशी “मेरी सबसे सतत और सजीव स्मृतियां लोगों के बारे में उतनी नहीं हैं जितनी कि अराकाटका के उस घर के बारे में हैं जहां मैं अपने नानी नाना के साथ रहता था. ये ऐसा बार... Read more
“साब सीएम तो तिवारीजी ही थे”
उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री, आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल और पूर्व केंद्रीय वित्त और विदेश मंत्री नारायण दत्त तिवारी नहीं रहे. उन्होंने लंबी बीमारी के बाद 93 साल की उम्र में दिल्ली के एक... Read more
बहुत कम समय भी रहता है देर तक
मन का गद्य -शिवप्रसाद जोशी एक हल्की सी ख़ुशी की आहट थी. लेकिन जल्द ही ये आवाज़ गुम हो गई. फिर देर तक एक बेचैनी बन गई. जैसे उस ख़ुशी को समझने का यत्न करती हुई. क्यों थी वो. क्या थी वो. बेचैनी... Read more
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