सन् चौहत्तर के आस-पास की बात है. कोटद्वार में कर्मभूमि के संपादक स्व० भैरवदत्त धूलिया के घर में टिंचरी माई और पीताम्बर डेवरानी बैठे थे. माई किसी वजह से अस्थिर थीं. बातें करते-करते उठतीं और ज... Read more
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