दूनागिरी पर्वत उपत्यका में बसी द्वाराहाट की नयनाभिराम कौतुक भरी पर्वत घाटी धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से समृद्ध होने के साथ ही सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से भी विशिष्ट बनी रही है. महाभारत... Read more
तराई और उसके रहवासियों का इतिहास
कहा जाता है कि प्राचीन महाकाव्य काल में उत्तराखंड का तराई -भाभर इलाका ऋषि मुनियों की तपोस्थली थी. सीतावनी में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम बताया गया. मान्यता है कि सीता माता ने यहीं अपना वनवास ब... Read more
वैशाख आते ही रवि की फसल, गेहूं की सुनहरी बालियाँ पहाड़ के उपराऊ सीढ़ी दार खेतों से ले कर तलाऊँ के सेरों में पसर जाती है. साग-सब्जी जरूर जाड़ों की वनस्पति थोड़ा सिमटती है. तमाम स्थानीय देवी... Read more
उत्तराखंड सीमांत और नेपाल की विभाजक है काली नदी. 1815 के बाद ब्रितानी हुकूमत ने नेपाल को कालीपार सीमा से बांध दिया. इस घटना पर मोलाराम ने लिखा: डोटी मांहि गोरषा बैठे, कालीवार इंगरेज हि बै... Read more
बेमौसम जब साग सब्जी खेतों में नहीं उगती या फिर मौसम की गड़बड़ी से दूसरी जगह से सागपात लाना मुमकिन न हो तब पहाड़ में ‘सुखौट ‘से काम चलाया जाता. सुखौट का मतलब हुआ धूप में सुखाई सब्... Read more
एक था डॉक्टर एक था संत…
कुछ विवादस्पद सवालों से भरी है अम्बेडकर -गाँधी के ‘जाति, नस्ल और जाति के विनाश’ पर हुए संवाद से उपजी अरुन्धति रॉय की किताब, “एक था डॉक्टर एक था संत” जो उनकी Caste,... Read more
सब ओर प्रकृति में हरियाली सज जाती है. नई कोंपलों में फूल खिलने लगते हैं. चैत मास लग चुका है. ऋतु रैण की परंपरा रही थी बरसों पहले तक. जब गाँव-गाँव बादी या नैका हारमोनियम, सारंगी ढोलक की ताल... Read more
भयो बिरज झकझोर कुमूँ में, लोक जीवन के अनुभवी चितेरे व लोकथात के वरिष्ठ जानकार डॉ. प्रयाग जोशी विरचित कुमूँ की 205 होलियों का अद्बभुत संग्रह है. कुमाऊं में आज भी ‘बैठि ‘,... Read more
गढ़वाल के मुख्य शिव मंदिर
अद्भुत भारत धर्मपूजा में ए. एल बाशम लिखते हैं कि – वैदिक देवता रूद्र से शैव संप्रदाय का विकास हुआ. इनके ईष्ट देव शिवजी जो विनाश के प्रतीक थे तो सरलता की प्रतिमूर्ति भी. तभी वह शम्भु य... Read more
मध्य हिमालय की जंगलों में मिलने वाली वनस्पति स्वस्थ बनाये रखने, निरोग रहने व दीर्घायु प्रदान करने के लिए गुणकारी मानी गईं. इन वनस्पतियों के एकल प्रयोग या कइयों के साथ मेल... Read more
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