आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ खै जा
आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ खै जा,मैकेणी म्येर इजैकी की खबर दी जा.आ कौआ आ, घुघुती कौ बड़ ली जा,मैकेणी म्येर घर गौं की खबर दी जा.आ कौआ,अपण दगड़ी और लै पंछी ल्या,सबुकैं घुघुती त्यारै की खबर दी आ. इ... Read more
क्या पिछौड़ा, ऐपण, अल्पना आदि का ‘फैशन ट्रेंड’ सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित करता है?
विरासतों का सृजनात्मक उपयोग और मौलिकता उत्तराखंड में महिलाओं द्वारा पहना जाने वाला परिधान पिछौड़ा, परम्परागत रूप से कुमाऊं मूल के लोगों की विशिष्ट संस्कृति को प्रतिबिंबित करता है... Read more
मां आज भी सभी सिक्कों को डॉलर ही कहती है
ब्रह्म ने पृथ्वी के कान में एक बीज मंत्र दे दिया हैउसी क्रिया की प्रतिक्रिया मेंजब बादल बरसते हैं,तो स्नेह की वर्षा होने लगती हैऔर पृथ्वी निश्चल भीग उठती है.आज भी बादलों के गरजने औरधरती पर फ... Read more
दुर्गा भवन स्मृतियों से
जब हम किसी से दूर हों रहे होते हैं, तब हम उसकी कीमत समझने लगते हैं. कुछ ऐसा ही हो रहा है आज भी. कुछ ही पलों के बाद हम हमेशा के लिए यहां से दूर हो जाएंगे. फिर शायद कभी नहीं मिल पाएंगे इस जगह... Read more
काफी समय बाद बस से यात्रा की. यात्रा देहरादून से रानीखेत की थी. मैदान से पहाड़ों की बसों में बजाए जाने वाले गीत कुछ इस प्रकार होते हैं— उदाहरण के तौर पर देहरादून से हरिद्वार तक देशी छैल... Read more
कुमाऊनी झोई का स्वाद लाजवाब है
झोई अथवा झोली यानि कि कढ़ी हमारे कुमाऊं के भोजन में विभिन्न प्रकार से बनती है. कम से कम एक सप्ताह हम अपनी अलग-अलग झोई के स्वाद ले कर सभी को चख सकते हैं. गरीब से लेकर अमीर तक सबके घर में बनने... Read more
आमा के जीवन की यादें मेरे लिए कहानी बन जाती थी
वे घुमंतु नहीं थे और न ही बंजारे ही थे. वे तो निरपट पहाड़ी थे. मोटर तो तब उधर आती-जाती ही नहीं थी. हालांकि बाद में 1920 के आसपास मोटर आने लगी लेकिन शुरूवात में अधिकतर जनसामान्य मोटर को... Read more
जो तेरा गवर्नर, वो मेरा डिप्टी होता है यादों में लगभग 30 – 32 साल पीछे लौट जाऐं तो बहुत सी स्मृतियाँ लौट आती हैं और कभी फुर्सत हो जाय तो लिखने का मन भी करता है. बचपन में हमारे घर में ए... Read more
Popular Posts
- उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ
- जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया
- कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी
- पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद
- चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी
- माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम
- धर्मेन्द्र, मुमताज और उत्तराखंड की ये झील
- घुटनों का दर्द और हिमालय की पुकार
- लिखो कि हिम्मत सिंह के साथ कदम-कदम पर अन्याय हो रहा है !
- पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप
- डुंगरी गरासिया-कवा और कवी: महाप्रलय की कथा
- नेहरू और पहाड़: ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ में हिमालय का दर्शन
- साधारण जीवन जीने वाले लोग ही असाधारण उदाहरण बनते हैं : झंझावात
- महान सिदुवा-बिदुवा और खैंट पर्वत की परियाँ
- उत्तराखंड में वित्तीय अनुशासन की नई दिशा
- राज्य की संस्कृति के ध्वजवाहक के रूप में महिलाओं का योगदान
- उत्तराखण्ड 25 वर्ष: उपलब्धियाँ और भविष्य की रूपरेखा
- आजादी से पहले ही उठ चुकी थी अलग पर्वतीय राज्य की मांग
- मां, हम हँस क्यों नहीं सकते?
- कुमाउनी भाषा आर्य व अनार्य भाषाओं का मिश्रण मानी गई
- नीब करौरी धाम को क्यों कहते हैं ‘कैंची धाम’?
- “घात” या दैवीय हस्तक्षेप : उत्तराखंड की रहस्यमयी परंपराएँ
- अद्भुत है राजा ब्रह्मदेव और उनकी सात बेटियों के शौर्य की गाथा
- कैंची धाम का प्रसाद: क्यों खास हैं बाबा नीम करौली महाराज के मालपुए?
- जादुई बकरी की कहानी
