उत्तराखण्ड की अनूठी विवाह परम्पराएँ
बहुप्रचलित पूर्णतः वैदिक अनुष्ठान, संस्कार तथा स्थानीय रीति-रिवाज के साथ किये जाने वाले अंचल विवाह परम्परा के अलावा भी उत्तराखण्ड की विशेष विवाह परम्पराएँ हुआ करती थीं. इस तरह के विवाह विशेष... Read more
फूलों का मौसम आ गया
पहाड़ में इन दिनों वनों में लाल-लाल बुरांश के फूल खिल गए हैं. हरे-भरे वनों में जहां नजर डालो, लगता है बुरांश के पेड़ों ने लाल ओढ़नी ओढ़ ली है. बचपन में सुना वह गीत कानों में गूंजने लगा हैः (... Read more
नवरात्र का समय था. हम कुछ दोस्त माँ के दर्शन के लिए गार्जिया मन्दिर गए थे. मन्दिर में दर्शनों के लिए श्रद्धालुओं की लंबी कतार लगी थी. हम सब भी उस कतार में शामिल हो गये. मौसम सुहाना था. बहुत... Read more
नैनीताल का मालिकाना पर्सी बैरन के छल से अंग्रेजों ने नरसिंह थोकदार से हथियाया
सन 1842 में शिकार के शौक़ीन मि. पर्सी बैरन के द्वारा नैनीताल का पता लगा लेने तक यहां पर एक झोपड़ी तक नहीं हुआ करती थी. इस समय नैनीताल झील और इसके आसपास का जंगल थोकदार नरसिंह के अधिकार क्षेत्... Read more
अभिलाषा पालीवाल के ऐपण कला में अद्भुत प्रयोग
हल्द्वानी में रहने वाली अभिलाषा पालीवाल की ऐपण कला पारंपरिक ऐपण कला और आधुनिक पेंटिंग का अद्भुत सम्मिश्रण हैं. देहरी और दीवारों के अलावा भी अभिलाषा की कल्पना की उड़ान ऐपण कला को नया आसमान दे... Read more
हल्द्वानी शहर के निकट कई अन्य बस्तियां भी हुआ करती थीं. जो अब विकसित हो गई हैं. गोरा पड़ाव में गोरे अपना पड़ाव डाला करते थे. भोटिया पड़ाव में जाड़ों में जोहार शौका यानी भोटिया समुदाय अपनी भे... Read more
राजनीति के क्षेत्र में हल्द्वानी क्षेत्र की एक ऐसी महिला का जिक्र करना आवश्यक हो जाता है जो एक साधारण परिवार की साधारण अध्यापिका से असाधारण हो गयी. और 24 साल तक उत्तर प्रदेश विधान परिषद की स... Read more
एक थे चरणजीत शर्मा. मूल रूप से वे हरियाणा के रहने वाले थे लेकिन एक अर्से से वे यहीं के होकर रहे गये थे. यहां आने से पूर्व वे रानीखेत में लीसे का व्यापार किया करते थे. इस व्यापार में लीसे की... Read more
वह विकास यात्रा जिसके बाद ‘एन. डी. तेरे चारों ओर लीसा, लकड़ी, बजरी चोर’ नारा प्रचलित हुआ
सन् 60-70 के दशक में साम्यवादी विचारधारा के नाम पर बहुत से पाजी लोगों का जमघट मैंने यहां देखा. वे काम बिल्कुल नहीं करना चाहते थे और कहते थे कि पूंजीपतियों की सम्पत्ति बांट ली जानी चाहिए. वे... Read more
अल्मोड़ा में स्कूली दिनों की यादें
उम्र साढ़े तीन साल, कद करीब 3 या 4 फुट. पता नहीं कैसी दिखती थी मैं. बस यह जरूर याद है कि शिशु मंदिर की कक्षा में ‘शिशु’ कक्षा सर्वप्रथम कक्षा थी. ग्राउंड फ्लोर में होती थी वह क्ल... Read more
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