दो बाघों की कथा -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं तुम्हें बताऊंगा नहीं बताऊंगा तो तुम डर जाओगे कि मेरी सामने वाली जेब में एक बाघ सो रहा है लेकिन तुम डरो नहीं बाघ को इस कदर ट्रेंड कर रखा है मैंने... Read more
यथार्थ के दलदल में डूब जाएगा उनका गृहविज्ञान
गृहविज्ञान -सुन्दर चंद ठाकुर वे कौन सी तब्दीलियां थीं परंपराओं में कैसी थीं वे जरूरतें सभ्यता के पास कोई पुख्ता जवाब नहीं गृहविज्ञान आखिर पाठ्यक्रम में क्यों शामिल हुआ. ऐसा कौन सा था घर का व... Read more
आसमान में धान बो रहा हूँ: विद्रोही की कविता
नई खेती -रमाशंकर यादव ‘विद्रोही’ मैं किसान हूँ आसमान में धान बो रहा हूँ कुछ लोग कह रहे हैं कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता मैं कहता हूँ पगले! अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है त... Read more
ग्राहक विष्णु खरे दो बार चक्कर लगा चुकने के बाद तीसरी बार वह अंदर घुसा. दूकान ख़ाली थी सिर्फ़ एक पाँच बरस का ख़ुश बच्चा आईने के सामने कुर्सी पर बैठा हुआ था जिसका बाप लम्बी बेंच से आधी निगाह... Read more
(विष्णु खरे – 1940 से 2018) दिल्ली में अपना फ़्लैट बनवा लेने के बाद एक आदमी सोचता है (कविता सुनें) पिता होते तो उन्हें कौन सा कमरा देता? उन्हें देता वह छोटा कमरा जिसके साथ गुसलखाना भी... Read more
लड़कियों के बाप
विष्णु खरे समकालीन सृजन परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण नाम रहे. मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा जिले में 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे ने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की डिग्री ली. इन्दौर से प्रक... Read more
सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे
बाबा नागार्जुन की एक पुरानी कविता (Poem of Baba Nagarjun) सच न बोलना मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को,डंडपाणि को लठ्ठ चाहिए बिगड़ी बात बनाने को!जंगल में जाकर देखा, नहीं एक भी बांस दि... Read more
भूख सोचता रहा, भूख खाता रहा, दिल्ली आके रुका
पड़ताल – इब्बार रब्बी सर्वहारा को ढूँढ़ने गया मैं लक्ष्मीनगर और शकरपुर नहीं मिला तो भीलों को ढूँढ़ा किया कोटड़ा में गुजरात और राजस्थान के सीमांत पर पठार में भटका साबरमती की तलहटी पत्थर... Read more
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