आंगन की भीढ़ी में बैठे-बैठे हरूवा सुबह से पांच बीड़ी फूंक चुका था. बेटी की शादी में महज 10 दिन रह गए थे. पहाड़ियों का एक अलग ही लॉजिक होता है, टेंशन के समय में बीड़ी फूकने से काम करने की थोड... Read more
दूर पहाड़ के अपने गांव से पढ़ने के लिए मैं शहर नैनीताल चला गया था लेकिन मन में बसा गांव और बचपन के वे संगी-साथी भी मन में मेरे साथ ही चले आए थे. चले आए थे तो रह-रह कर मुझे गांव की, बचपन की ब... Read more