भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की
30 अगस्त 1923 को जन्मे मशहूर गीतकार शैलेन्द्र का असल नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र था. (Remembering Lyricist Shankar Shailendra) 1947 में भारतीय रेलवे की माटुंगा, मुम्बई वर्कशॉप में एक एप्र... Read more
द गर्ल नेक्स्ट डोर की छविवाली विद्या सिन्हा नहीं रही. (Obituary to Vidya Sinha) मध्यवर्गीय कामकाजी युवती के किरदारों के जरिए उन्होंने दर्शकों पर एक अमिट छाप छोड़ी.इंडस्ट्री में तब के चलन के... Read more
वासु चटर्जी की फिल्म: चमेली की शादी
कुछ फिल्में दर्शकों को आज भी बेहद रोमांचित करती हैं. इस तथ्य पर गहनता से विचार करें कि, ऐसा क्यों होता है. क्यों यह फिल्म सोंधी सी लगती है? एक मोहल्ले की कॉमन सी प्रेम-कथा, किन तत्त्वों को ल... Read more
सिनेमा: पहले दिन के पहले शो का देशी रोमांच
आज से तीस साल पहले तक जब डिजिटल तकनीक का कोई अता-पता नहीं था हर शुक्रवार को फ़िल्म रिलीज़ होना एक बड़ी सांस्कृतिक कार्रवाई जैसा था. कई बार फ़िल्म के प्रचार के लिए साइकिल रिक्शे पर बड़े होर्डिंग ल... Read more
बाली उमर का सिनेमा प्रेम और सच बोलने का कीड़ा
लड़के, पढ़ने के लिए देहात से शहर जाते थे. आसपास के इलाकों में अव्वल तो कोई इंटर कॉलेज नहीं था. अगर था भी, तो तब तक उसमें साइंस नहीं खुला था.लड़कों की मजबूरी थी, रोज का तीस किलोमीटर आना-जाना.... Read more
जॉनी: लोग हमें हमारे जूतों से पहचानते है
जॉनी राजकुमार का भी एक ज़माना था. फुटबाल के साइज़ जितना उनका ईगो था. वो सर्व सुलभ कलाकार नहीं थे. उनको वही साइन करने की हिम्मत करता था, जिसमें बड़े-बड़ों के नखरे सहने का माद्दा हो. और दिल-गुर्दा... Read more
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