औपनिवेशिक मूल्यों की तलछट पर बिछा एक लाचार समाज भारत को आज़ादी तो 1947 में मिल चुकी थी; मगर आज लगता है, आम आदमी तक पहुँचने में उसे पूरे सात दशक लग गए – 1950 से लेकर 2020 तक. दो-चार साल इधर य... Read more
अल्मोड़ा 10 नवंबर, बीते शनिवार 9 नवंबर को यहां जननायक डॉ शमशेर सिंह बिष्ट की याद में किताब पर चर्चा और लेखक से मुलाकात का कार्यक्रम आयोजित किया गया. Gahan Hai Yah Andhkara यह कार्यक्रम यहां... Read more
‘गहन है यह अन्धकारा’ में दूर कहीं उजास दिखता है
पुलिस के पास ढेरों कहानियां होती हैं. हर तबके की, हर तरह की. कहानी बनाना भी आ जाता है और वक्त-जरूरत पर मैदानी सड़क को पहाड़ी-मोड़ देना भी. एक कमी रह जाती है कि अपनी रामकहानी नहीं सुना पाते क... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा