लोककथा : ह्यूंद की खातिर
पुरानी बात है जब दो वक्त की रोटी जुटाना ही बड़ी बात थी. उन्नत बीज और सही जानकारी न होने की बजह से खेतों में कठिन परीश्रम करने के बावजूद भी पैदावार कम ही होती. परन्तु लोग अभाव में रहते हुये भ... Read more
लोककथा : दुबली का भूत
सम्पूर्ण हिमालयी क्षेत्रों में स्थायी निवास के साथ-साथ प्रायः एक अस्थाई निवास बनाने का चलन है, जिसे छानी या खेड़ा कहा जाता है. इन छाानियों में कभी खेती-बाड़ी बढ़ाने के लिए तो कभी हवा पानी बद... Read more
शेर और गधे की उत्तर आधुनिक लोककथा
एक शेर था, जिसका नाम था -गधा. कभी-कभी उसे ‘ऐ गधे!’ करके भी पुकारा जाता था. एक बार वो जंगल में शिकार पर निकला. उसे हिरन बहुत पसंद थे. उनका माँस बहुत नरम और स्वादिष्ट होता था, और उ... Read more
बुरा मान गए हमारे पितर
चौमास बीता. श्राद्ध भी बीत गए. आस पास के बृत्ति ब्राह्मणों के साथ घर के बड़े बूढ़े, कच्चे बच्चे सब श्राद्धों का खाना खा के तृप्त थे. खेतों सग्वाडो में कद्दू पक के पीले पड़ गए. ककड़ियां पीली लाल... Read more
धौली और नन्दा की कथा
कार्तिग के महीने गांव के ऊपर नीचे की सारियां फसल काटने के बाद खाली हो जाती. आसमान बरसात के बाद गहरा नीला ये स्यो (सेब) जैसे बड़े बड़े तारों से अछप रहता. हम सब बच्चे चौड़ी फटालों वाले आँगन में अ... Read more
रामी बलोद्याण की कथा
बरसाती झड़ी की एक सुबह से मैंने दादी से रट लगाई दूध का हलवा बना. वो बोली आज पिस्युं नी च बाबा (गेहूं का आटा). दो चार दिनों से घाम नहीं आया. बिसगुण कहाँ सुखाये. बिना गेहूं सुखाये जान्द्री में... Read more
मेहनती बहू और रात के अएड़ी की कथा
भरपूर चढ़क रूढ़ (गर्मी) पड़ रही थी. माटु, ढुंगी, पेड़, पत्ती, अल्मोड़ी, घिलमोड़ी, पौन-पंछी, कीट-पतंगारे, सांप-बाघ सब रूढ़ से बेहाल. सरग में दूर-दूर तक बादल का एक छींटा तक नहीं दिख रहा था. बिचारे पे... Read more
ह्यूंद का चोर और लागुली की काखड़ियाँ
इन दिनों भादो-असोज के चटक नीले आसमान से बिखरते घाम से हरे गलीचे सी बिखरी घास, पेड़ों की टहनियों से लिपटे पत्ते, एक दूसरे से उलझी लिपटी झाड़ियाँ सब हलके पीलेपन से ढंकने लगी थीं. ठागरों के सहारे... Read more
जोगी और गौरा की कथा
दिन भर रुक रुक कर बारिश और उसके साथ बर्फ पड़ती रही.माँ और दादी नंगे पैर पनदेरे से गागर में पानी सारते रहे.पूरे घर के लिए और गाय बाछी के लिए. दोनों के पैर ठंडी से नीले हो गए. दादा जी ने ओबरे म... Read more
Popular Posts
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा
- विसर्जन : रजनीश की कविता
- सर्वोदयी सेविका शशि प्रभा रावत नहीं रहीं
- भू विधान व मूल निवास की लहर
- उत्तराखंड हिमवंत के देव वृक्ष पय्यां
- मुखबा गांव का आतिथ्य
- प्रकृति व महामाया का पर्व नवरात्रि
- प्रसूताओं के लिए देवदूत से कम नहीं ‘जसुमति देवी’
- असोज की घसियारी व घास की किस्में
- ब्रह्माण्ड एवं विज्ञान : गिरीश चंद्र जोशी
- परम्परागत घराट उद्योग
- ‘गया’ का दान ऐसे गया
- कोसी नदी ‘कौशिकी’ की कहानी
- यो बाटा का जानी हुल, सुरा सुरा देवी को मंदिर…
- कुमौड़ गांव में हिलजात्रा : फोटो निबन्ध
- शो मस्ट गो ऑन
- सेंट जोसेफ कॉलेज नैनीताल : देश का प्रतिष्ठित स्कूल