पहाड़ और मेरा जीवन – 62 (पिछली क़िस्त: और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा) मैंने ऐसा फैसला क्यों लिया इसकी अब तो ठीक-ठीक वजह बताना मुश्किल है, लेकिन बीएससी फर्स्ट इयर में जब... Read more
और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा
पहाड़ और मेरा जीवन- 61 (पिछली क़िस्त: गरीब के गुरूर को मत जगाना कभी, मैंने चश्मे वाले को यूं दी जबर धमकी) पिथौरागढ़ के जिस राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की बाडंड्री से सटे सद्गुरू निवास के... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 60 (पिछली क़िस्त: वह भी क्या कोई उम्र थी पिताजी ये दुनिया छोड़कर जाने की) मैं किस सिलसिले में गया हुआ था वहां यह याद नहीं आ रहा पर बात यह दिल्ली की है और बारहवीं के बाद... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 59 (पिछली क़िस्त: बीना नायर का वह सबके सामने मेरे दाहिने गाल को चूम लेना) पिता के साथ बड़वाह से जो मैं ट्रेन में सवार हुआ, तो मन में बीना नायर से मिले चुंबन की उमंग थी.... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 58 (पिछली क़िस्त: मनोज भट उर्फ गब्बू से पढ़े गणित के ट्यूशन के नहीं दिए गए पैसों का किस्सा बारहवीं की परीक्षाओं के बाद ऐसी स्थिति बनी कि कुछ महीने एकदम खाली थे. तय हुआ क... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -44 पिछली क़िस्त : पहाड़ों में पैदल चलने के बिना जिंदगी का जायका ही क्या जो लोग पिथौरागढ़ से जुड़े हैं और जिनकी पत्रकारिता में थोड़ी बहुत दिलचस्पी है, वे बद्रीदत्त कसनियाल... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन -43 पिछली क़िस्त : हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना मेरे पिताजी ने पिथौरागढ़ के मिशन इंटर कॉलेज से दसवीं पास की थी और उसके त... Read more
हल चलाना, नौले से फौले में पानी भरकर लाना और घोघे की रोटी मक्खन, नून के साथ खाना
पहाड़ और मेरा जीवन – 42 पिछली कड़ी: एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई हम सबकी जड़ें गांवों में हैं, लेकिन सबने वहां का जीवन नहीं देखा. मैं अपने गांव के बहुत करीब रहा, ल... Read more
एक कमरा, दो भाई और उनके बीच कभी-कभार होती हाथापाई
पहाड़ और मेरा जीवन – 41 पिछली कड़ी: आपकी एक छोटी-सी पहल कैसे आपका मुकद्दर संवार सकती है आज कुछ लोग इस बात पर शायद यकीन न करें, पर सच यही है कि मैं कक्षा नौ से लेकर बारहवीं करने तक अपनी मां स... Read more
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