पिरूल के व्यावसायिक उपयोग से फायदे ही फायदे
उत्तराखण्ड में 500 से 2200 मीटर की ऊॅचाई पर बहुतायत से पाये जाने वाले चीड़ के पेड़ों की पत्तियों को पिरूल नाम से जाना जाता है. उत्तराखण्ड वन सम्पदा के क्षेत्र में समृद्ध तो है ही, साथ ही चीड... Read more
उत्तराखण्डी गीतों में ‘अस्यारी को रेटा’ का मतलब
उत्तराखण्ड का लोकमानस जिस प्रकार अपनी सभ्यता व संस्कृति की एक अलग पहचान रखता है, उसी तरह यहां के लोकसाहित्य का भी अपना अनूठा स्वरूप है. मेरे पिछले लेख में उल्लेख था कि किस प्रकार एक ही शब्द... Read more
जब से हमने होश संभाला, कुमांऊनी का गाना – ‘चैकोटकि पारबती तीलै धारू बोला बली, तीलै धारू बोला’ अथवा ‘ओ लाली हो लाली हौंसिंया, बसन्ती लाली तीलै धारू बोला’ जैसे गीत सुनते आये हैं. अब तो रोचक बन... Read more
भले कुमांउनी भाषा न होकर अभी तक बोली ही मानी जायेगी, क्योंकि न तो इस का मानकीकरण हुआ है और न व्याकरण. लेकिन लिपिबद्धता की सीमितता के बावजूद वाचिक परम्परा से पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित इस का... Read more
नैनीताल को कुदरत ने जिस खूबसूरती की नियामत से नवाजा है, उतने ही दिलचस्प एवं अजीबोगरीब यहां के बाशिन्दों को तरह-तरह के किरदार भी दिये. ये चरित्र और उनकी स्मृति केवल गुदगुदाते ही नहीं, कभी-कभी... Read more
भवाली में रामलीला की परम्परा
पिछली सदी के साठ के दशक का एक कालखण्ड ऐसा भी रहा, जब भवाली की रामलीला में पिता हरिदत्त सनवाल दशरथ के पात्र हुआ करते थे और राम तथा लक्ष्मण का किरदार उनके पुत्र पूरन सनवाल व महेश सनवाल निभाते... Read more
एक दौर था नैनीताल में – काली अचकन और सफेद चूड़ीदार पजामे में एक आकर्षक व्यक्तित्व आपको शाम के वक्त मालरोड पर हाथ में एक हस्तलिखित पर्चा थमाकर “कल गोष्ठी में जरूर आईयेगा’’ कहकर ग... Read more
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