वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
रामगंगा घाटी की स्थानीय बोली में आभूषणों को ‘हतकान’ कहा जाता है, इससे ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में यहाँ के लोग कान और हाथों के आभूषणों से ही परिचित थे। इन दोनों अंगों को अलंकृत करने वाले... Read more
“सम्यक् प्रकारेण विरोधाभावान् अपास्य समभावान् जीवनोपयोगिनः करोति इति संस्कृतिः” अर्थात संस्कृति वह है जो मानवता को विकृत करने वाले भावों को निरस्त करके उनके स्थान पर जीवनोपयोगी भावों को प्र... Read more
उत्तराखण्ड में मृतात्माओं से जुड़े लोकविश्वास
उत्तराखण्ड अद्वितीय प्राकृतिक सुन्दरता और अनूठी लोकसंस्कृति से समृद्ध है. यहाँ के समाज में प्रचलित ढेरों किस्से-कहानियाँ मन को आनन्दित तो करते ही हैं, ये अलिखित इतिहास भी हैं. रोमांच से भर द... Read more
उत्तराखण्ड में लोकविश्वास
“मामा आ गए-मामा आ गए,” चहकती हुई शारदा माँ के पास आई. माँ बोली, “मैं ना कहती थी, कोई मेहमान आने वाला है. आज सुबह से मुंडेर पर बैठ कौआ काँव-काँव किए जा रहा है.” (Folk... Read more
वेशभूषा से किसी भी इलाके के स्थानीय निवासियों की पहचान होती है. ये वेशभूषाएं पारंपरिक तौर पर पीढ़ी-दर-पीढ़ी पहनी जाती हैं. ये पारंपरिक परिधान औए वेशभूषाएं कैसी होंगी यह कई बातों से तय होता ह... Read more
भारतीय इतिहास लेखन में क्षेत्रीय इतिहास की भूमिकाः उत्तराखण्ड के संदर्भ में
भारत के प्रथम ऐतिहासिक ग्रंथ राजतरंगिणी के रचियता कल्हण ने ठीक ही कहा है— श्लाध्यः स एव गुणवान् रागद्वेष बहिष्कृता भूतार्थकथने यस्य स्थेयस्येव सरस्वती अर्थात्, ‘वही गुणवान प्रशंसन... Read more
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