बिशन गुरु की मार और ईश्वर से चवन्नी की गुजारिश
जब मैं पहली बार शहर के स्कूल पहुँचा सन 1955 तक मैंने गाँव के स्कूल में पढ़ा जो चारों ओर से ऊँची-नीची पहाड़ियों से घिरे खुले पठारनुमा शिखर पर एक तपस्वी की तरह हर वक़्त हमारी आँखों के सामने मौजूद... Read more
दुर्दशा का शिकार महादेवी वर्मा सृजन पीठ
मेरे पास अनेक संदेश आ रहे हैं कि क्या महादेवी वर्मा सृजन पीठ बंद हो गयी है? उसे किसने बंद किया और क्यों किया? क्या यह एक सरकारी संस्था थी? क्या इसका कोई स्वायत्त ढांचा था? मेरा इस संस्था के... Read more
फ्रैंकफर्ट में जहाज बदला और हंगरी के स्थानीय समय के अनुसार पूर्वाह्न साढ़े दस बजे, जिस वक़्त भारत में दोपहर के दो बज रहे होंगे, मैं उस नई दुनिया में पहुंचा जिसे साक्षात महसूस करते हुए भी जिसकी... Read more
अपने बचपन के गाँव को ठीक-ठीक आज न स्मरण कर पाने का एक बड़ा कारण शहर आने के बाद उत्तराखंड राज्य को लेकर चलनेवाला जन-आन्दोलन और उसमें कुछ हद तक मेरी अपनी हिस्सेदारी भी थी. (Uttarakhand poor des... Read more
महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण छायावादी आन्दोलन के चार बड़े नामों में से एक थीं. इस समूह में उनके अलावा जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त और महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ थे... Read more
मेरा और खड़कुवा का बचपन
खड़कुवा और मेरी मांओं ने हमें ऐसे ही मिट्टी लिपे फर्शों पर जन्म दिया था और हमें गाँव किनारे के उसी पोखर पर नहलाया था जहाँ आज भी औरतें अपने बच्चों को नहलाती हैं. फर्क यह आ गया है कि अब वहाँ प्... Read more
नैनीताल की मिसेज बनर्जी
‘हमारा जैसा बोलेंगा तो हिंदी कैसे बनेगा राष्ट्रभाषा, बोलो?’ ठीक तारीख याद नहीं है, 1978-79 के किसी महीने में एक दिन सुना कि मिसेज रेनू बनर्जी की लगभग छिहत्तर साल की उम्र में मृत्यु हो गई है.... Read more
1841 में पीटर बैरन द्वारा बसाये गए इस नैनीताल शहर (history of Nainital) में ठीक 146 साल और अपने स्कूल शेरवुड काॅलेज की पढ़ाई छोड़ने के करीब अठारह सालोें के बाद 1987 की शरद् ऋतु में सांसद-अभिने... Read more
भगवान तुलसीदास गलत नहीं लिख सकते
बुआजी के एक विधुर जेठ थे, जिन्हें घर के सब लोग ‘बड़े बाबजी’ पुकारते थे. मझोले कद के बड़े बाबजी एक गुस्सैल अधेड़ थे, जिनकी भौंहें हमेशा तनी रहती और बिना बात गुस्सा करना उनका शगल था. कभी असावधानी... Read more
बंपुलिस… द एंग्लो इंडियन पौटी – बटरोही की कहानी
काफल ट्री में नियमित कॉलम लिखने वाले लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ का जन्म 25 अप्रैल 1946 को अल्मोड़ा के छानागाँव में हुआ था. अब तक अनेक कहानी संग्रह, उपन्यास व लघु उपन्यास लिख चुके... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा