आखिर बाबू को आश्रय देने वाले लोग कैसे रहे होंगे
पिताजी सन् 1949 में लखनऊ आ गए थे. उन्होंने ने ही बताया था कि घर से ( गराऊँ, बेरीनाग ) बड़बाज्यू अलमोड़ा तक पैदल छोड़ने आए थे. उन दिनों अलमोड़ा से आगे मोटर रोड नहीं थी. हमारे यहाँ के लिए पैदल रास... Read more
केमू में सफ़र और बीते ज़माने की याद
के०एम०ओ०यू० यानी कुमाऊं मोटर्स ओनर्स यूनियन. पहाड़ में सड़क परिवहन की सबसे पहली पंजीकृत संस्था. पुराने लोगों को याद होगा, तब यही एकमात्र साधन था पहाड़ों के सुदूर गाँवों में सड़क मार्ग से पहुँचने... Read more
अपनी आमा की बहुत याद आती है मुझे
बात सन् 1982 के शुरुआती दिनों की है जब आमा लोहे के सन्दूक में पूरा पहाड़ समेटकर वाया बरेली यहाँ आयी थी. साल – डेढ़ साल ही रही होंगी बरेली में ! वर्ष 1970 से पूर्व दो – तीन बार गर्... Read more
भीमताल और टूट चुके पत्थर का दर्द
शायद 69-70 के दशक की बात होगी, मैं तब भीमताल के एल. पी. इंटर कॉलेज में आठवीं या नवीं का छात्र रहा होउंगा. जून के आख़िरी सप्ताह या फिर जुलाई की शुरुवात थी. शाम के वक्त अचानक एक खबर सुनी, बाज़ार... Read more
अपने बचपन के गाँव को ठीक-ठीक आज न स्मरण कर पाने का एक बड़ा कारण शहर आने के बाद उत्तराखंड राज्य को लेकर चलनेवाला जन-आन्दोलन और उसमें कुछ हद तक मेरी अपनी हिस्सेदारी भी थी. (Uttarakhand poor des... Read more
मेरा और खड़कुवा का बचपन
खड़कुवा और मेरी मांओं ने हमें ऐसे ही मिट्टी लिपे फर्शों पर जन्म दिया था और हमें गाँव किनारे के उसी पोखर पर नहलाया था जहाँ आज भी औरतें अपने बच्चों को नहलाती हैं. फर्क यह आ गया है कि अब वहाँ प्... Read more
1977 में मैं करीब दस साल का था. दो साल पहले जब इमरजेंसी लगी थी, हम लोग अल्मोड़ा में रहते थे. इमरजेंसी की सबसे ठोस स्मृति के तौर पर मुझे याद आता है कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक वकील साहब, जि... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 8 (पिछली क़िस्त : अमीर अंकलों की खैरात से जब दिल्ली में मैंने मौज उड़ाई ) (पोस्ट को लेखक सुन्दर चंद ठाकुर की आवाज में सुनने के लिये प्लेयर के लोड होने की प्रतीक्षा करें.... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 7 दिल्ली की डीटीसी बसों में मैंने एक समय के बाद टिकट लेना बंद ही कर दिया. मां जब मुझे बस के किराए के लिए तीस पैसे देती, तो मैं मन ही मन सोचने लगता कि तीस पैसे का आज क्या... Read more
पहाड़ और मेरा बचपन – 6
(पिछली क़िस्त से आगे. पिछली क़िस्त का लिंक – पहाड़ और मेरा बचपन दिल्ली की कुछ और यादें मेरे स्मृतिपटल पर इतनी साफ अंकित हैं कि उनका ब्योरा दिए बिना आगे बढ़ना अनुचित होगा. सिर्फ इसलिए नहीं... Read more
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