भगत सिंह (28 सितम्बर 1907 से 23 मार्च 1931) हाल ही की बात है, मेरा एक दोस्त दिल्ली से आया था. उसने शहर पहुंचने के बाद पता जानने के लिए मुझे फोन किया. उसने बताया कि वह चौराहे पर एक बड़े से बुत... Read more
भगतसिंह ! इस बार न लेना काया भारतवासी की
30 अगस्त 1923 को जन्मे मशहूर गीतकार शैलेन्द्र का असल नाम शंकरदास केसरीलाल शैलेन्द्र था. (Remembering Lyricist Shankar Shailendra) 1947 में भारतीय रेलवे की माटुंगा, मुम्बई वर्कशॉप में एक एप्र... Read more
सांझी शहादत, सांझी विरासत: हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र
(23 दिसम्बर, 1929 को क्रान्तिकारियों ने ब्रिटिश वायसराय की गाड़ी को उड़ाने का असफलप्रयास किया. गाँधीजी ने इस घटना के विरोध में एक लेख ‘बम की पूजा’ लिखा, जिसमें उन्होंने वायसराय को देश का शुभचि... Read more
जनता के साथ धोखा हैं भगत सिंह पर बनी फिल्में
भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्में बुद्धिजीवियों और इतिहासकारों के मध्य भी चर्चा का विषय बनी रहीं. इसलिए कि स्वतंत्रता आंदोलन के उस कालखंड (1925-31) पर फिल्माया गया एक क्रांतिकारी का जिंदगीनामा... Read more
Popular Posts
- भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़
- यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले
- कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता
- खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार
- अनास्था : एक कहानी ऐसी भी
- जंगली बेर वाली लड़की ‘शायद’ पुष्पा
- मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम
- लोक देवता लोहाखाम
- बसंत में ‘तीन’ पर एक दृष्टि
- अलविदा घन्ना भाई
- तख़्ते : उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की कहानी
- जीवन और मृत्यु के बीच की अनिश्चितता को गीत गा कर जीत जाने वाले जीवट को सलाम
- अर्थ तंत्र -विषमताओं से परिपक्वता के रास्तों पर
- कुमाऊँ के टाइगर : बलवन्त सिंह चुफाल
- चेरी ब्लॉसम और वसंत
- वैश्वीकरण के युग में अस्तित्व खोते पश्चिमी रामगंगा घाटी के परम्परागत आभूषण
- ऐपण बनाकर लोक संस्कृति को जीवित किया
- हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना