अतीत को छोड़ दो, बंधनों को तोड़ दो
जन्म के वक्त हम सभी शरीर और दिमाग के स्तर पर एक जैसे होते हैं, लेकिन हम जीवनकाल में अपने शरीर और दिमाग का अपनी-अपनी तरह से इस्तेमाल करते हैं और मृत्यु के वक्त इस दुनिया में अपनी अलग पहचान छो... Read more
क्या आप अपने मोबाइल से ज्यादा ताकतवर हैं?
मेरे परिचितों में कई लोग हैं जो विपश्यना के लिए दस-दस दिनों के कैंपों में जाते हैं. इन कैंपों में उनसे मोबाइल ले लिया जाता है. उन्हें किसी निश्चित वक्त में घर वालों को जरूरी संदेश भेजने या ब... Read more
खुश होना या दुखी होना हमारा चुनाव है
हमें खुश होना है या दुखी होना है, यह चुनाव हमेशा हमारे हाथ में रहता है. सामान्यत: हमें लगता है कि दुख या खुशी हमारे पास चलकर आते हैं. वे घटनाओं और सूचनाओं के जरिए हम पर आकर बरसते हैं. निस्सं... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 63 (पिछली क़िस्त: और मैंने कसम खाई कि लड़कियों के भरोसे कॉलेज में कोई चुनाव नहीं लड़ूंगा कॉलेज में मैं तीन विषय पढ़ रहा था – पीसीएम यानी फीजिक्स, कैमिस्ट्री और मैथ. लेक... Read more
और मैं जुल्फ को हवा देता हुआ स्कूल से कॉलेज पहुंचा
पहाड़ और मेरा जीवन- 61 (पिछली क़िस्त: गरीब के गुरूर को मत जगाना कभी, मैंने चश्मे वाले को यूं दी जबर धमकी) पिथौरागढ़ के जिस राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय की बाडंड्री से सटे सद्गुरू निवास के... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 60 (पिछली क़िस्त: वह भी क्या कोई उम्र थी पिताजी ये दुनिया छोड़कर जाने की) मैं किस सिलसिले में गया हुआ था वहां यह याद नहीं आ रहा पर बात यह दिल्ली की है और बारहवीं के बाद... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 59 (पिछली क़िस्त: बीना नायर का वह सबके सामने मेरे दाहिने गाल को चूम लेना) पिता के साथ बड़वाह से जो मैं ट्रेन में सवार हुआ, तो मन में बीना नायर से मिले चुंबन की उमंग थी.... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 58 (पिछली क़िस्त: मनोज भट उर्फ गब्बू से पढ़े गणित के ट्यूशन के नहीं दिए गए पैसों का किस्सा बारहवीं की परीक्षाओं के बाद ऐसी स्थिति बनी कि कुछ महीने एकदम खाली थे. तय हुआ क... Read more
जब संपादकीय टिप्पणी के साथ ‘जनजागर’ के मुखपृष्ठ पर मेरी कविता प्रकाशित हुई
पहाड़ और मेरा जीवन – 38 (पिछली कड़ी: एक शराबी की लाश पर महिलाओं के विलाप ने लिखवाई मुझसे पहली कविता ) आठवीं से नवीं में आने के सफर के दौरान मुझे खुद में दो बदलाव साफ दिखाई दिए- पहला तो मैं छ... Read more
पहाड़ और मेरा जीवन – 37 (पिछली कड़ी: पहाड़ और मेरा जीवन – 36 :पहाड़ ने पुकारा तो मैं सहरा से लौट आया) पिथौरागढ़ में डिग्री कॉलेज के बगल में सदगुरु निवास मेरे लिए चार साल तक निवास रहा। हमारे प... Read more
Popular Posts
- अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ
- पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला
- 1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक
- बहुत कठिन है डगर पनघट की
- गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’
- गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा
- साधो ! देखो ये जग बौराना
- कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा
- कहानी : फर्क
- उत्तराखंड: योग की राजधानी
- मेरे मोहल्ले की औरतें
- रूद्रपुर नगर का इतिहास
- पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय और तराई-भाबर में खेती
- उत्तराखंड की संस्कृति
- सिडकुल में पहाड़ी
- उसके इशारे मुझको यहां ले आये
- नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार
- भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू
- ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए
- सर्दियों की दस्तक
- शेरवुड कॉलेज नैनीताल
- दीप पर्व में रंगोली
- इस बार दो दिन मनाएं दीपावली
- गुम : रजनीश की कविता
- मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा