काफल तोड़ने वाले लड़के और बूढी चुड़ैल की लोककथा
एक इन्दरू मोल्या था. उसके माँ बाप नहीं थे. वह गायों के साथ रहता था. एक दिन वह गाय चरा रहा था तभी उसकी इच्छा काफल खाने की हई. वह काफल के पड़ पर चढ़ गया और काफल खाने खाने लगा, तभी एक डक्... Read more
ऐसा कुछ कर जाएं यादों में बस जाएंऐसा कुछ कर जाएं यादों में खो जाएंयारा दिलदारा मेरा दिल कर दा दिल कर दा(Collage Memoir by Prbhat Upreti) बचपन से ही मेरे अंदर अशोक की तरह वीरता क्रूरता और दया... Read more
दो सैंणियों वाले कव्वे की रीस: उत्तराखंडी लोककथा
एक कव्वा था. उसकी दो सैंणियाँ थीं. एक नई जवान देखणंचाणं थी, दूसरी उतनी सुन्दर तो नहीं थी. पर होशियार सीप वाली थी. देखणंचांण जवान सेंणी को कव्वा ज्यादा भल मानता था. दोनों पत्नियों में बनती थी... Read more
ग्यांजू: एक जोशीले सरल पहाड़ी की लोककथा
वह एक तो शरीर से टेढ़ा-मेढ़ा बेढब था, दूसरा दिमाग से पैदल था. कोई भी बात उसकी समझ में देर में आती थी या आती ही नहीं थी. काम ऐसा करता कि उसके ईजा बौज्यू उससे कुछ काम कराते ही नहीं थे. उसकी ईज... Read more
एक तगड़े शर्मीले डोटियाल की कथा
नेपाल के डोटी गाँव से आया एक प्यारा-सा तगड़ा शरमीला किशोर ग्रामीण सोर घाटी में मजदूरी करता था. बोझा वह तब से ढोता था जबसे उसके मूंछों का क्या, उसको अपने शरीर का भी पता न था. उसे सिखाया गया क... Read more
जिंदे को लात, मरे को भात: एक उत्तराखंडी लोककथा
एक गांव में एक बहुत बूढ़ा अपने छोटे लड़के, बहू और अपनी औरत के साथ रहता था. उसके दो लड़के और भी थे, पर वे नौकरी की तलाश में बाहर चले गए थे और वहीं बस गये थे. बूढा अपने समय में बहुत प्रतिष्ठित... Read more
चट्टान से गिरकर अकाल मृत्यु को प्राप्त पहाड़ी घसियारिनों को समर्पित लोकगाथा ‘देवा’
बहुत सुन्दर गाँव था. खूब गधेरा पानी. अपनी बंजाणी घना जंगल और थी उसी गाँव में एक सुन्दर निर्मल झरने की तरह लड़की देवा. सारे गाँव की बेटी. हमेशा उसके पास एक हँसी रहती थी. दुखी से दुखी उस हँसती... Read more
‘हरी भरी उम्मीद’ की समीक्षा : प्रभात उप्रेती
सारे भारत में जनजातीय इलाकों में जो कौम बसती थी उनको रोजी-रोटी जिंदगी, जंगलों से चलती है. उनका उन पर परम्परागत हक था. बैंकर बनिये अंग्रेज आये, मुनाफे के लिए जंगल कटाये. जब जंगल कम होने लगे त... Read more
च्यूरे का पेड़ आज भी शिवजी के वरदान को निभा रहा है
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये क्लिक करें – Support Kafal Tree गरीब तो बहुत होते हैं पर वह निहंग किस्म का गरीब किसान निपट्ट दरिद्र. क्या करता कम कम खेत भी पानी जानवर की कमी से बंजर बने थ... Read more
कभी छत में आने की फुर्सत तो निकालो प्यारे
मेरे दार्शनिक बाबूजी कहते थे, जिंदगी में सुखी रहोगे अगर ये अंदर बिठा लो ‘ये भी न रहेगा’. इस सूत्र ने मुझे सुख में उछलने न दिया. दुःख मिला तो काढ़ा बना कर इम्यून सिस्टम मजबूत करने के ल... Read more
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