मेरे स्कूल का सुनहरा साल
पचास साल हो गये हैं, मेरे स्कूल की स्थापना के. स्वर्ण जयंती साल है 2022. पचास साल पहले 22 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रदेश, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री श्री कमलापति त्रिपाठी जी... Read more
साइकिल, उस्ताद और शिक्षा
अपने जमाने में चलन ऐसा नहीं था कि तीन साल का हो जाने पर बच्चे को तिपहिया साइकिल दिलायी जाए और छः साल का होने पर दुपहिया साइड सपोर्टर साइकिल. ड्राइविंग का शौक हमने तार और रबर के पहिये चला कर... Read more
भँवर एक प्रेम कहानी, हाल ही में प्रकाशित उपन्यास है. उत्तराखण्ड के सेवानिवृत्त पुलिस महानिदेशक, अनिल रतूड़ीजी, इस कृति के लेखक हैं. साहित्य, संगीत और संस्कृति के प्रति लेखक का अनुराग उनके से... Read more
गुरूजी और जोंक
बीसवीं शताब्दी के पहले साल में अपर गढ़वाल में आधुनिक शिक्षा की अलख जगाने वाले इसी ख्याति प्राप्त विद्यालय में छायावादी कवि चंद्रकुँवर बर्त्वाल भी पढ़े थे. यहाँ के सुदीर्घ बांज-वृक्षों को वो... Read more
इगास लोकपर्व को राजपत्र में स्थान मिलने के मायने
आज का दिन ऐतिहासिक बन गया है. इक्कीस साल के उत्तराखण्ड में, इसके किसी लोकपर्व को पहली बार राजपत्र में स्थान मिला है. आज उत्तराखण्ड में इगास का राजकीय अवकाश है. इससे पूर्व हरेला को भी राजपत्र... Read more
गढ़वाली हिंगोड़: हॉकी और गोल्फ का पुरखा
इक्कीसवीं सदी में ओलम्पिक हॉकी का पहला पदक भारत ने हाल ही में जीता है. जर्मनी को हराकर, कांस्य पदक. पिछली सदी में भी आखिरी बीस साल ओलम्पिक पदक का सूखा ही रहा. एक दौर वो भी था, जब भारत फील्ड... Read more
समळौण्या होती सैकोट के सेरों की रोपाई
गढ़वाल के उन गिने-चुने गाँवों में से एक है सैकोट जिनकी उपजाऊ ज़मीन पहली नज़र में ही मन को भा जाती है. खेती ऐसी जैसे कुदरत ने गाँव के आगे हरियाला आँगन बना के दिया हो. सिंचित हरी-भरी खेती वाला... Read more
उत्तराखण्ड: यहाँ हर दिन है नवजात
उत्तराखण्ड का गढ़वाल-कुमाऊं दुनिया का शायद एकमात्र ऐसा भूभाग है जहाँ हर रात्रि सद्यःप्रसूता होती है और हर दिन नवजात शिशु. जी हाँ, यहाँ रात ब्याती है और दिन जन्म लेता है इस तरह हुआ न हर दिन न... Read more
अपनी बोली के शब्दों को पीछे धकेलते पहाड़ी
अपनी पृथक पहचान के लिए सृजित पृथक उत्तराखण्ड राज्य के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले पहाड़ी जनमानस में आज स्वाभाविक प्रश्न उठ रहा है कि क्या मात्र प्रशासनिक एंव विधायी शक्तियों के विकेन... Read more
पहाड़ की माईजी से सुनिये घुघूती ना बासा
कुछ गीत होते हैं, जो अपने मूल में तो लोकप्रिय होते ही हैं पर उनके परिवर्तित रूप भी खूब आकर्षित करते हैं. वैश्विक महामारी के इस समय में इन्हें म्यूटेंट के रूप में भी समझा जा सकता है.(Ghughuti... Read more
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