1955-56 की एक काव्य संध्या में देव साहब ने नीरज को सुना. उनकी कविता उन्हें इतनी भायी कि उन्होंने नीरज के सामने सीधे प्रस्ताव रख डाला, अगर कभी फिल्मी गीत लिखने का मन हो, तो मैं आपके साथ काम क... Read more
बैठी हूँ कब हो सवेरा रुला के गया सपना मेरा
Posted By: Sudhir Kumaron:
रुला के गया सपना मेरा बैठी हूँ कब हो सवेरा वही है गमे दिल वही है चंदा तारे वही हम बेसहारे आधी रात वहीं है और हर बात वही है फिर भी ना आया लुटेरा… कैसी ये जिंदगी साँसों से हम ऊबे के दिल... Read more
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