सुआल पथाई कुमाऊनी विवाह परम्परा का अभिन्न हिस्सा है. सुआल पथाई का कार्यक्रम विवाह से एक या तीन अथवा पांच दिन पहले वर व कन्या दोनों के यहां होता है. Suwal Pathai Song
सुआल पथाई की इस विशिष्ट परम्परा में आटे से बने सुआल और लड्डू बनाये जाते हैं. कन्या और वर पक्ष दोनों इसे एक दूसरे को भेजते भी हैं. Suwal Pathai Song
सुआल पथाई के समय परिवार की सुहागन स्त्रियां पिछौड़ा ओढ़ती हैं इस दौरान महिलायें पारम्परिक परिधान पहनती हैं और गीत के साथ सुआल पथाई की परम्परा को पूर्ण करती हैं.
इन गीतों में शुभ कार्य की सूचना के साथ लोगों को निमंत्रण देने की बात कही जाती है. सामान्य रूप से मंगल कार्य के गीतों में राम और सीता के प्रसंगों का प्रयोग किया जाता है.
सुआल पथाई के गीतों में भी राम और सीता का जिक्र आता है, इसके साथ ही इसमें निमंत्रण देने की बात भी कही जाती है. सुआल पथाई के दौरान गाया जाने वाला एक गीत पढ़िये :
लाडू जो बाटू मैं कण कणो.
सासू बुलाऊं मैं आपणी, जेठाणी बुलाये मैं आपणी.
देराणी बुलाऊॅ मैं आपणी, लाडू जो बाटू मैं कणकणी.
नन्द बुलूलो मैं आपणी, पड़ोसी बुलूलो मैं आवणी.
लाडू जो बाटू मैं कणकणी.
को ए ऊ ताई मोलाई सोहागिनी ए.
को ए ऊ ताई हिलाली सोहागिनी ए.
रामीचन्द्र ताई मोलाला, लछीमन ताई मोलाला ए.
सीता देही ताई हिलाली, बहूराणी ताई हिलाली सोहागिनी ए.
इस गीत का सार यह है कि मैं लड्डू बनाने जा रही हूं, अपनी सास, जेठानी आदि को बुलाया है लड्डू बनाने के लिये. कौन लड्डू बनाने के लिये कढ़ाई लायेगा कौन सुहागिन लड्डू बनाने के लिये उसमें सूजी भुनेगी. रामचंद्र और लक्ष्मण कढ़ाई खरीदेंगे और कढ़ाई में लड्डू के लिए आटा भूनेगी.
कुमाऊं में पारम्परिक विवाह प्रथा की जानकारी के लिये यहां देखें :
कुमाऊं में पारम्परिक विवाह प्रथा
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