उच्चतम न्यायालय ने कुछ राज्यों द्वारा ठोस कचरा प्रबंधन नीति तैयार नहीं करने पर आज उन्हें आड़े हाथ लिया. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड, महाराष्ट्र, चंडीगढ़ सहित कुछ राज्यों द्वारा कचरा प्रबंधन को लेकर नीति नहीं बनाने पर नाराजगी जताई है. शीर्ष अदालत ने इन राज्यों में निर्माण पर तब तक के लिए रोक लगा दी है, जब तक वे पॉलिसी नहीं बना लेते.
पीठ ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और चंडीगढ़ सहित कुछ राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेशों ने अभी तक 2016 के ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के तहत दो साल बाद भी कोई नीति तैयार नहीं की है. पीठ ने कहा, ‘‘यदि इन राज्यों के मन में जनता के हित और स्वच्छता तथा सफाई के विचार होता तो उन्हें ठोस कचरा प्रबंधन नियमों के अनुरूप नीति तैयार करनी चाहिए ताकि राज्य में स्वच्छता रहे। राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों का दो साल बाद भी नीति तैयार करने के मामले में रवैया दयनीय है”.
गौरतलब है कि देशभर में प्रति वर्ष 62 मिलियन टन कचरा उत्पन्न होता है, जिसमें से 5.6 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा, 0.17 मिलियन टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट, 7.90 मिलियन टन खतरनाक अपशिष्ट और 15 लाख टन ई-कचरा है. भारतीय शहरों में प्रति व्यक्ति 200 ग्राम से लेकर 600 ग्राम तक कचरा प्रतिदिन उत्पन्न होता है. प्रतिवर्ष 43 मिलियन टन कचरा एकत्र किया जाता है, जिसमें से 11.9 मिलियन टन संसाधित किया जाता है और 31 मिलियन टन कचरे को लैंडफिल साइट में डाल दिया जाता है. नगर निगम अपशिष्ट का केवल 75-80 प्रतिशत ही एकत्र किया जाता है और इस कचरे का केवल 22-28 प्रतिशत संसाधित किया जाता है.उत्पन्न होने वाले कचरे की मात्रा मौजूदा 62 लाख टन से बढ़कर वर्ष 2030 में लगभग 165 मिलियन टन तक पहुँचने की संभावना है.
इस मामले में सुनवाई के दौरान न्यायालय के निर्देशानुसार हलफनामा दाखिल नहीं करने पर पीठ ने आंध्र प्रदेश पर पांच लाख रुपए का जुर्माना लगाया. साथ ही टिप्पणी की कि केंद्र को भी यह मालूम नहीं है कि राज्य ने इस बारे में नीति तैयार की है या नहीं. पीठ ने कहा कि यदि राज्य अपने नागरिकों के हितों को ध्यान में रखते, तो अब तक नीति तैयार कर ली जाती.
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