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पहाड़ का जीवन कृषि आधारित रहा है. कृषि के लिये पहाड़ी न जाने कितने बरसों से पशुओं पर निर्भर रहे. अपने आंगन में पशुओं से बात करते पहाड़ी आज भी दूर-दराज के गांव में मिल जायेंगे. पशुओं में भी गाय और बैल पहाड़ियों के खूब प्यारे रहे.
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अपने पशुओं से पहाड़ियों का यह स्नेह उनके लोक जीवन में ख़ूब देखा जा सकता है. गढ़वाल और कुमाऊं में अपने पशुओं के प्रति आभार व्यक्त करने के लिये त्यौहार हुआ करते हैं. परम्पराओं के तौर पर आज भी ग्रामीण इलाकों में इसे खूब निभाया जाता है.
गढ़वाल में आज इगास मनाया जा रहा है. पहले लोग इगास के दिन अपने हाथ की राखियाँ तोड़ते और उसे अपनी गाय की पूंछ पर बांधते. आज के दिन गौवंश के लिये पौष्टिक आहार बनाया जाता जिसे स्थानीय भाषा में पींडा कहा जाता है. जब जानवरों के लिये पींडा रखा जाता है तो एक बड़े पत्ते में हलुआ पूरी आदि रखा जाता है जिसे ग्वाल ढिंडी कहा जाता है. ग्वाल ढिंडी ग्वाले जाने वाले बच्चों का पुरस्कार है.
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आज के दिन बैलों की सींग पर तेल लगाया जाता और उनके गले में माला पहना कर उन्हें पूजा जाता. बैलों को पूजने से जुड़ी एक लोककथा कुछ इस तरह है –
ब्रह्मा ने सृष्टि रची और रचा मनुष्य. धरती पर अकेले जाने की बात पर मनुष्य ने सवाल किया. मनुष्य ने सवाल किया कि वह किसकी सहायता से इतनी बड़ी धरती में जियेगा. ब्रह्मा ने अपने रचे सबसे ताकतवर शेर को बुलाया. शेर कहां मानता. अब बाकी जानवरों की बारी थी पर ब्रह्मा की किसी ने मानी. तब बारी आई बैल की और बैल व मनुष्य एक-दूसरे को खूब भाये.
बैल की यह बात ब्रह्मा को खूब पंसद आई. ब्रह्मा ने बैल को वरदान दिया कि तुझे मनुष्य पूजेंगे, तेल से तेरी मालिश करेंगे और तुझे दावत देंगे.
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